छपरा. माताओं ने अपने संतान के लंबी आयु की कामना के लिए 24 घंटे निर्जला रहकर जीवित्पुत्रिका व्रत रखा. कई जगहों पर सामूहिक कथा का भी आयोजन हुआ. जहां मुहल्ले की महिलाओं ने एकजुट होकर जीवित्पुत्रिका व्रत कथा का श्रवण किया. सुबह में नदी घाटों पर भी स्नान के लिए महिलाएं पहुंची थी. हालांकि इस बार सरयू नदी में बाढ़ की स्थिति होने के कारण माताओं ने घाट पर जाने से परहेज किया. आसपास के तालाबों में स्नान ध्यान कर पूजा अर्चना की. धार्मिक मान्यता के अनुसार यह व्रत संतान की लंबी आयु तथा सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है. माताएं इस दिन निर्जला व्रत रखकर भगवान जीमूतवाहन का विधिवत पूजन-अर्चन करती हैं. यह व्रत बच्चों की प्रसन्नता, उन्नति के लिए रखा जाता है. तथा इस व्रत को रखने से संतान की उम्र लंबी होती है. जीवित्पुत्रिका या जिउतिया व्रत की यह कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है. जिसके अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद अश्वथामा अपने पिता की मृत्यु की वजह से बहुत क्रोध में था. वह अपने पिता की मृत्यु का पांडवों से बदला लेना चाहता था. एक दिन उसने पांडवों के शिविर में घुस कर सोते हुए पांडवों के बच्चों को मार डाला. उसे लगा था कि यह पांडव हैं. लेकिन वो सब द्रौपदी के पांच बेटे थे. इस अपराध की वजह से अर्जुन ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसकी मणि छीन ली. इससे आहत अश्वथामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया. लेकिन उत्तरा की संतान का जन्म लेना जरूरी था. जिस वजह से श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरी संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया. भगवान श्री कृष्ण की कृपा से गर्भ में मरकर जीवित होने के वजह से इस बच्चे को जीवित्पुत्रिका नाम दिया गया. तभी से संतान की लंबी उम्र के लिए हर साल जिउतिया व्रत रखने की परंपरा को निभाया जाता है.
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