बक्सर. यहां के किला मैदान में रामलीला समिति के तत्वावधान में चल रहे 21 दिवसीय विजया दशमी महोत्सव के दूसरे दिन गुरुवार को रामलीला में नारद मोह प्रसंग तथा श्रीकृष्णलीला में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को जीवंत किया गया. वृंदावन से पधारे राधा माधव लीला मंडल के कलाकारों ने स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी ” के निर्देशन में लीला का मंचन किया. देर रात तक चले रामलीला के नारद मोह प्रसंग में दिखाया गया कि नारद जी हिमालय की कंदराओं में समाधिस्थ होकर तपस्या कर रहे हैं. जिससे देवराज इंद्र का सिंहासन डोल पड़ता है. यह देख देवराज चिंतित हो जाते हैं और देवर्षि नारद का ध्यान भंग करने के लिए कामदेव को उनके समक्ष भेजते हैं. कामदेव समस्त कलाओं का प्रयोग करने के पश्चात भी नारद जी का ध्यान भंग नहीं कर पाते हैं और अंत में उनके चरणों में शरणागत हो याचना करने लगते हैं. नारद जी उन्हें क्षमा कर देते हैं, परंतु कामदेव को पराजित करने का उन्हें अभिमान हो जाता है. अभिमान से वशीभूत हो वे यह बात ब्रह्मा जी, शंकर जी से बताते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचते हैं. इनके अभिमान को देख कर प्रभु माया रूपी नगर की रचना करते हैं. उस माया रूपी नगरी में विश्व मोहिनी नामक सुंदर स्त्री को देख नारद जी मोहित हो जाते हैं और उससे विवाह करने के लिए श्री हरि से सुंदर रूप मांगते हैं. नारायण उन्हें बंदर का रूप प्रदान कर दे देते हैं. यह देख कर सभी लोग नारद का उपहास करते हैं. लिहाजा नारद जी क्रोधित होकर भगवान विष्णु को स्त्री के वियोग में दर-दर भटकने का श्राप देते हैं.देवकी का आठवां पुत्र होगा तेरा काल…. श्रीकृष्णलीला में दिखाया गया कि मथुरा के राजा कंस अपनी बहन देवकी का विवाह वासुदेव से कराने के बाद उसे विदा करने जा रहा था तो मार्ग में आकाशवाणी होती है. तू जिस देवकी को विदा करने जा रहा है उसका “आठवां पुत्र ” तेरा काल होगा… यह सुन कंस अपनी बहन को मारने दौड़ता है. परंतु उसके पिता उग्रसेन के विरोध के पश्चात वासुदेव देवकी को कारागार में डाल स्वयं मथुरा का राजा बन बैठता है. देवकी के प्रथम पुत्र के जन्म होने पर कंस उसे वापस कर देता है. इसी बीच देवर्षि नारद पहुंचते हैं और एक वृताकार आकृति बनाकर उसे समझाया आठवां पुत्र ऊपर या नीचे की गिनती से कोई भी हो सकता है, तब कंस ने देवकी के छ: संतानों को समाप्त कर दिया. सातवां पुत्र गर्भ में ही नष्ट हो गया. आठवें पुत्र के रूप में “श्री कृष्ण ” का जन्म होता है.वासुदेव उन्हें रात्रि में ही यमुना पार गोकुल में नंद-यशोदा के यहां पहुंचा देते हैं. इस दौरान समिति के कार्यकारी अध्यक्ष रामावतार पांडेय, सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा, कृष्णा वर्मा, राजकुमार गुप्ता, उदय सर्राफ जोखन, चिरंजीलाल चौधरी, मंटू सिंह समेत अन्य सदस्य मौजूद रहे.
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