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शारदीय नवरात्र में पूर्णिया की शक्तिपीठों पर भी लगता है भक्तों का तांता

दुर्गा पूजा में सार्वजनिक स्थलों पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजन की परंपरा चली आ रही है पर जिले में कई ऐसे शक्तिपीठ भी हैं जहां पूरे साल मां दुर्गा और उनके अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है.

पूरणदेवी, पूर्णेश्वरी काली, माता स्थान व जगदम्बा मंदिरों में मन्नतें लेकर आते हैं लोग, नवरात्र के नौ दिनों तक चलता है पूजन अनुष्ठान, भक्त करते हैं मनोयोग से साधनापूर्णिया. दुर्गा पूजा में सार्वजनिक स्थलों पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर पूजन की परंपरा चली आ रही है पर जिले में कई ऐसे शक्तिपीठ भी हैं जहां पूरे साल मां दुर्गा और उनके अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है. शारदीय नवरात्र में इन शक्तिपीठों पर भक्तों का सुबह से रात तक तांता लगता है. भक्त यहां मन्नतें लेकर आते हैं और असीम आस्था के साथ पूजन अनुष्ठान के देवी को प्रसन्न करने की कोशिशें करते हैं.

श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है पुरणदेवी मंदिर

दसों विद्याओं की महादेवी के रुप में जिले के पूर्णिया सिटी स्थित पुरणदेवी मंदिर प्रसिद्ध है. इसे लोग शक्तिपीठ भी कहते हैं. यह मान्यता है कि देवी सबकी मुरादें पूरी करती हैं. हालांकि यहां सालों भर भक्तों का आना-जाना लगा रहता है पर नवरात्र में भक्तों की भीड़ काफी बढ़ जाती है. नवरात्र में यहां रोज पूजन अनुष्ठान के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं पहुंचती हैं और दीप जलाती हैं. दुर्गा पूजा के दौरान इस मंदिर की रौनक देखते ही बनती है. भक्त भले ही शहर के पंडालों में मां दुर्गा का दर्शन न करें पर यहां आकर मां का दर्शन अनिवार्य रुप से करते हैं.

पूर्णेश्वरी काली मंदिर में लगता है आस्था का मेला

शहर के पूर्णिया सिटी में सौरा नदी के तट पर अवस्थित मां पूर्णेश्वरी काली का विशाल मंदिर आस्था की स्थली है जहां नवरात्र में आस्था का मेला लगता है. काली मंदिर 200 सौ वर्ष पुराना है. यह पूर्णिया में लोक आस्था का प्रतीक बना हुआ है. पूर्णिया में लोग कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले यहां पूजा करने आते हैं. ऐसी अवधारणा है कि अमावश्या तिथि को आयोजित विशेष पूजा अनुष्ठान से मन्नत मांगने वालों का मन्नते पूरी होती हैं. इस मंदिर की ख्याति, बंगाल, उड़ीसा एवं नेपाल तक है. इस मंदिर की पहचान एक दर्शनीय स्थल के रुप में बनी हुई है. यही वजह है कि नवरात्र के दिनों यहां दिन-रात भक्तों का तांता लगा रहता है. पूजा के बाद हर कोई माता का भोग लेना नहीं भूलता.

गुप्त काली मंदिर में लगता है भक्तों का जमावड़ा

जिले से महज दस किमी. की दूरी पर स्थित कसबा में माता का एक गुप्त काली मंदिर है जिसकी गुफा में मां वैष्णो देवी समेत कई देवी-देवता हैं. ऐसा माना जाता है कि यह 52वां शक्तिपीठ है जहां मां के पार्थिव शरीर की पूजा की जाती है. गुप्त काली मंदिर के नाम से मशहूर इस मंदिर में 108 देवताओं की मूर्ति है. कहा जाता है कि यहां भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए आपको मां वैष्णो देवी के मार्ग में पड़ने वाली अर्घ कुमारी जैसी संकरी गुफा से होकर गुजरना पड़ता है. गुफा के बगल में माता वैष्णो देवी का मंदिर है, जहां मां वैष्णो देवी सहित दस महाविद्याएं हैं. इसके बाद नीचे गुप्त काली मंदिर है जहां माता का शरीर पड़ा हुआ है.

कामाख्या मंदिर में करते हैं भक्त पूजन अनुष्ठान

जिले के कृत्यानंद नगर प्रखंड स्थित कामाख्या स्थान गांव में मां कामाख्या का मंदिर है. इसका निर्माण काल मुगलकालीन बताया जाता है. माता यहां क्षेम-करनी के रूप में विराजमान हैं. मान्यता है कि असम के कामरू कामाख्या मंदिर से मां यहां आई थीं, जिसके बाद यहां मुगल काल में ही उनके मंदिर का निर्माण किया गया था. कहते हैं यहां कुष्ठ रोगी का इलाज दैवीय कृपा से होता है. इसे भी शक्तिपीठ के रुप में माना जाता है. नवरात्र के दौरान यहां दूर-दराज से भक्त पहुंचते हैं और पूजन अनुष्ठान के बाद मन्नतें भी मांगते हैं. नवरात्र के दौरान इस मंदिर की रौनक भी बढ़ जाती है. यहां तंत्र साधना करने वाले भी नवरात्र के दौरान जुटते हैं.

माता स्थान में दूर दराज से आते हैं भक्त

जिला मुख्यालय से महज दस किलोमीटर दूर चूनापुर स्थित माता मंदिर नवरात्र के दौरान दर्शनीय स्थल बन जाता है. यहां दूर दराज के श्रद्धालु मन्नतें लेकर आते हैं. यह मान्यता है कि निराश होकर आने वाले भक्त सच्चे मन से पूजा करने के बाद आशा और खुशी के साथ लौटते हैं. यही वजह है कि नवरात्र के दौरान विशेष भीड़ जुटती है जबकि सालों भर यहां पूजा-अर्चना की जाती है. कहा जाता है कि करीब एक सौ वर्ष पुराने इस मंदिर में बीमार स्वस्थ हो जाते हैं और दुखियों की फरियाद सुनी जाती है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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