फोटो:-3- कार्यक्रम में मौजूद साध्वी श्री स्वर्ण रेखा जी व अन्य. प्रतिनिधि, फारबिसगंज शहर के तेरापंथ भवन में आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी सुशिष्या साध्वी श्री स्वर्ण रेखा जी ठाणा चार की सन्निधि में प्रेक्षा ध्यान कल्याण वर्ष समारोह के शुभारंभ को मनाया गया. प्रेक्षाध्यान एक ध्यान की पद्धति है. गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए आज से 50 वर्ष पहले आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने ध्यान का नवीनीकरण करते हुए प्रेक्षा ध्यान जैसे अवदान को देकर जन-जन की आध्यात्मिक चेतना को व अधिक प्रखरित करने का प्रयास किया है. मन वचन काया की प्रवृत्ति पर निरोध करते हुए अपनी आत्मा में रमण करना ही प्रेक्षा ध्यान है. इस मौके पर अपने मंगल उद्बोधन में साध्वी श्री स्वर्ण रेखा जी ने प्रेरणा देते हुए कहा कि ध्यान भीतर की यात्रा है. मनुष्य बाहरी जगत में तो घूम लेता है. लेकिन अंतर की यात्रा के लिए ध्यान अत्यंत आवश्यक है. ध्यान के बिना ज्ञान भी नहीं होता है. वैज्ञानिक बाहर की खोज करता है तो वहीं साधक भीतर की खोज करता है. अध्यात्म क्षेत्र में ध्यान का बहुत बड़ा महत्व है. आत्मा से आत्मा के लिए ध्यान करना चाहिए. यानि द्रव्य आत्मा के द्वारा हमें विभिन्न प्रकार की आत्माओं की खोज करने के लिए अंत यात्रा करनी चाहिए. ध्यान से पूर्व व्यक्ति को आसक्ति के संग,कषायों का त्याग व इंद्रियों का निग्रह करके व्रतों को धारण करना बहुत जरूरी होता है. साध्वी श्री स्वर्ण रेखा जी ने धर्म सभा में उपस्थित सभी श्रावक श्राविकाओं को पूरे कल्याण वर्ष में प्रतिदिन 05 मिनट ध्यान करने का संकल्प भी करवाया.
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