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श्रीराम व लक्ष्मण पहुंचे जनकपुर धाम फुलबगीया में हुआ सीता से प्रथम मिलन

भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण व गुरुदेव विश्वामित्र के साथ जनकपुर की ओर चल पड़ते हैं

बक्सर

. रामलीला समिति के तत्वाधान में नगर के विशाल रामलीला मंच पर चल रहे 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव में छठवें दिन सोमवार को वृंदावन से पधारी सर्वश्रेष्ठ रामलीला मंडली श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी ” के सफल निर्देशन में देर रात्रि मंचित रामलीला में अहिल्या उद्धार तथा पुष्प वाटिका प्रसंग का दिव्य मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि भगवान श्री राम द्वारा ताड़का, मारिच, सुबाहु वध के पश्चात धर्म की स्थापना हुई. इधर जनकपुरी से पत्र आता है कि राजा जनक अपनी पुत्री का स्वयंवर कर रहे हैं. जिसे देखने के लिए भगवान श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण व गुरुदेव विश्वामित्र के साथ जनकपुर की ओर चल पड़ते हैं. मार्ग में अहिरौली स्थित एक पत्थर की शिला होती है. श्री राम गुरुदेव से शिला के विषय में पूछते हैं. गुरुदेव ने बताया कि यह शिला गौतम ऋषि की शापित स्त्री है. प्रभु श्रीराम अपने चरण रज से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार करते हैं. और आगे बढ़ने पर गंगा पार पहुंच जाते हैं. वहाँ भगवान श्री राम पंडा-पुजारियों से गंगा के आने का कारण पूछते हैं और उन्हें दान देकर आगे के लिए प्रस्थान करते हैं.

आगे बढ़ने पर वह जनक जी के बगीचे में पहुंच जाते हैं. वहाँ वन का माली जनक जी को विश्वामित्र सहित राम व लक्ष्मण जी के पहुंचने की सूचना देता है. राजा जनक तीनों को ले जाकर सुंदर सदन में ठहराते हैं और सत्कार करते हैं. इधर मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण की इच्छा जान जाते हैं और उन्हें दिखाने के लिए जनकपुर का भ्रमण करते हैं. और जनकपुर की सुंदरता देखते हैं. जहाँ नगर की स्त्रियां झरोखे से श्रीराम के सौंदर्य को निहारती हैं. नगर दर्शन कर दोनों अपने गुरुदेव के पास आते हैं. जहां गुरुदेव अपनी पूजा के लिए पुष्प लाने का आदेश देते हैं. श्री राम-लक्ष्मण पुष्प वाटिका में जाते हैं जहां सीता जी से प्रथम मिलन होता है. श्री राम सीता जी के सौंदर्य का गुणगान करते हैं. सीता जी भी उन्हें निहारती हैं. श्रीराम पुष्प लेकर गुरुदेव के पास लौटते हैं. इधर सीता जी मां गौरी पूजन करने जाती हैं. जहां वह पति के रूप में माता गौरी से श्री राम को पाने का वर मांगती हैं. इसके पूर्व दिन में मंचित कृष्णलीला के दौरान ”मीराबाई चरित्र के प्रसंग का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि, मीरा बाई पूर्व जन्म में बृज की श्यामा नामक गोपी होती है जिसका विवाह बृज में ही रहने वाले सबल नामक ग्वाला से होता है. तब कृष्ण ने क्रोध करते हुए कहा कि आज तुम अपना चेहरा मुझे नहीं दिखा रही हो तो एक दिन ऐसा आयेगा कि तुम हमारा मुख देखने को तरस जाओगी.

इधर बृजवासी इंद्र की पूजा कर रहे थे श्री कृष्ण इंद्र की पूजा रोककर गोवर्धन की पूजा करवाते हैं. यह देख इन्द्र क्रोध में मूसलाधार बारिश करवाते हैं जिससे सारे बृजवासी चिंतित हो जाते हैं. तब श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर धारण करते हुए वृजवासियों को सुरक्षा प्रदान करते हैं. यह देखकर गोपी श्यामा श्री कृष्ण के समीप आकर क्षमा मांगती है. परंतु श्री कृष्ण अपना चेहरा नहीं दिखाते हैं और श्यामा से कहते हैं कि जब तुम अगले जन्म में मीरा बनकर आओगी तब मै तुमसे एक संत के यहां मिलूंगा. दूसरी तरफ दिखाया गया कि राजस्थान के मेंड़ता गाँव में मीरा बाई का जन्म होता हैं. कुछ समय बाद मीरा के गाँव में संत रैदास जी सत्संग करने आते हैं. मीरा अपनी मां के साथ सत्संग में जाती है. और वहां संत के पास गिरधर गोपाल की मुर्ति को देखकर आकर्षित हो जाती है. वह बाबा से गोपाल की मुर्ति को मांगने लगती हैं परन्तु बाबा गिरधर गोपाल देने से मना कर देते हैं. इधर घर आने पर मीरा गिरिधर गोपाल के लिए अन्न जल त्याग देती है. इधर रात्रि में संत को स्वप्न में गोपाल आते हैं और कहते हैं कि मुझे मीरा के पास पहुंचा दो अन्यथा मैं नाराज हो जाऊंगा. संत जागृत अवस्था में आते हैं और मीरा को गिरधर गोपाल सौंपकर चले जाते हैं. मीरा अपने गिरिधर गोपाल को पाकर बहुत प्रसन्न होती है. समयानुसार मीराबाई का विवाह भोजराज के साथ होता है, और जैसे ही वह अपने ससुराल पहुंचती है तो उनका ननद से झगड़ा हो जाता है. उनकी ननद बराबर अपने भाई भोजराज से मीरा की शिकायत करती रहती है. जब भोजराज मीरा को समझाते तो मीरा एक ही बात कहती ”मेरे तो सब कुछ गिरधर गोपाल हैं”. तब मीरा के लिए पूजन-कीर्तन हेतु भोजराज अलग मंदिर बनवाते हैं और भक्ति करने के लिए कहते हैं. कुछ समय बाद भोज का स्वर्गवास हो जाता है. परन्तु, भोज के छोटे भाई विक्रम सिंह को मीरा की यह भक्ति रास नहीं आती है और उनको तरह-तरह की यातना देने लगते हैं. दिखाया जाता है कि, बहन के साथ योजना बनाकर मीराबाई को विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है. जिसमें मीरा के गोपाल की चोरी, सर्पदंश, जहर पिलाना, मीरा के महलों में भूत बनाकर भेजना तथा अन्य कृत्य से मीरा को मारने का प्रयास किया जाता है। परंतु, सब जगह गिरधर गोपाल उनकी रक्षा करते हैं. अंत में घबराकर विक्रम सिंह मीराबाई से क्षमा मांगता है. परन्तु, मीरा जी महल को छोड़कर भक्ति करने वृंदावन चली जाती है. वहां गिरधर गोपाल उन्हें दर्शन देते हैं.

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