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2030 तक रेबीज से होने वाली मौतों के खात्मे का लक्ष्य

गांव से लेकर शहरों तक, सभी जगह कुत्तों के आतंक की खबरें लगातार आती रहती हैं. विश्व में कुत्तों के काटने से होने वालीं कुल मौतों में से भारत का आंकड़ा सबसे अधिक है.

संवाददाता, कोलकाता

गांव से लेकर शहरों तक, सभी जगह कुत्तों के आतंक की खबरें लगातार आती रहती हैं. विश्व में कुत्तों के काटने से होने वालीं कुल मौतों में से भारत का आंकड़ा सबसे अधिक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, कुत्तों के काटने से होने वाले रेबीज के कारण विश्व में सालाना 59,000 लोगों के मौत होने का अनुमान है और इसमें भारत में सालाना 20,565 मौतें होती हैं. यानी एक-तिहाई से अधिक 35 फीसदी मौतें केवल अपने देश में हो रही हैं.

वहीं, पश्चिम बंगाल में प्रत्येक वर्ष रेबीज से 35-50 लोगों की मौत होती है. देश में 2030 तक रेबीज से होने वालीं मौतों का आंकड़ा खत्म करने के लिए विशेष अभियान शुरू किया गया है. इस अभियान से विश्व स्वास्थ्य संगठन का ‘जीरो बाय 30’ लक्ष्य पूरा करने में मदद मिलेगी, जिसके अंतर्गत 2030 तक रेबीज से होने वालीं मौतों का अंत करने का लक्ष्य स्थापित किया गया है.

कुत्तों के काटने के मामले बढ़े

आंकड़ों के अनुसार, पिछले तीन वर्षों की तुलना में कुत्ता द्वारा काटने की संख्या लगातार बढ़ रही है. जहां साल 2021 में 17 लाख से अधिक और 2022 में 21 लाख से अधिक लोगों को कुत्तों ने काटा था, वहीं 2023 में 30.5 लाख लोगों को कुत्तों ने काटा है. करीब एक-तिहाई मामले बढ़े हैं. इस तरह पिछले तीन वर्षों कुत्ताें का आतंक बढ़ा है.

क्या कहना है विशेषज्ञों का

कॉर्निंग के इस अभियान में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और सेल्फ एम्प्लॉयड वीमेंस एसोसिएशन (सेवा) अपना सहयोग देंगे. इस संबंध में कॉर्निंग इंडिया के प्रबंध निदेशक सुधीर पिल्लई ने कहा कि कॉर्निंग में हम समाज का सहयोग करने और शिक्षा की शक्ति में यकीन रखते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के जीरो बाय 30 अभियान में हमारा यह सहयोग जागरूकता और रोकथाम की मदद से रेबीज के मामलों में कमी लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अतिरिक्त निदेशक (वायरल वैक्सिंस) डॉ आशीष सहाय ने कहा कि रेबीज की रोकथाम का एकमात्र तरीका टीकाकरण है, इसलिए हम सभी लोगों तक टीका पहुंचाने और इसे किफायती बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं. सेवा की निदेशक, रीमा नानावटी ने कहा कि यह अभियान स्थानीय समुदायों, खासकर महिला समूहों को रेबीज़ के खिलाफ सशक्त बनायेगा, क्योंकि महिलाओं और समुदायों के पास रेबीज की रोकथाम के बारे में जानकारी होना आवश्यक है. यह अभियान हमें ज्यादा जोखिम वाले लोगों तक पहुंचने में मदद करेगा, ताकि इस बीमारी से लड़ने के संसाधन और जानकारी हर किसी को उपलब्ध हो सके.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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