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गांवों में आज भी जिंदा है नाटक की परंपरा

हाइटेक मनोरंजन के इस युग में गांवों में आज भी नाटक मंचन की परंपरा जिंदा है. बरवाडीह प्रखंड के कुटमू और सरइडीह गांव में करीब 70 वर्ष से नाटक का मंचन हो रहा है.

बेतला. हाइटेक मनोरंजन के इस युग में गांवों में आज भी नाटक मंचन की परंपरा जिंदा है. बरवाडीह प्रखंड के कुटमू और सरइडीह गांव में करीब 70 वर्ष से नाटक का मंचन हो रहा है. नाटक में कोई बाहरी कलाकार नहीं, बल्कि गांव के लोग ही होते हैं. इन दोनों गांव में आज भी लोग नाटक को खूब पसंद करते हैं. नाटक देखने के लिए दूर-दूर से ग्रामीण पहुंचते हैं. रात भर नाटक देखकर ही लोग वापस घर लौटते हैं. इनमें बच्चों और महिलाओं की संख्या भी अधिक होती है. नाटक की लोकप्रियता को देखते हुए दुर्गा पूजा कमेटी द्वारा भी इसे प्रस्तुत करने में कहीं भी कोई कोताही नहीं बरती जाती है. नाटक को लेकर युवाओं में काफी उत्साह रहता है. इसमें हर एक वर्ग के लोगों को जोड़ा जाता है. नाटक के माध्यम से कई धार्मिक और कई सामाजिक कुरीतियों को भी दिखाया जाता है. सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, राजा मोरध्वज , श्रवण कुमार, राजा भर्तृहरि जैसे मार्मिक नाटक का मंचन जब किया जाता है तो लोग रो पड़ते हैं. वहीं नाटक के माध्यम से समाज में पहली बुराइयों को भी दूर करने का प्रयास किया जाता है. दहेज प्रथा, नशाखोरी, अशिक्षा अंधविश्वास सहित अन्य मामलों के उजागर करने के लिए नाटक के माध्यम से कलाकार बेहतर प्रस्तुति करते हैं, जिसका असर ग्रामीणों को जागरूक करने में दिखता है. कुटमू गांव के नाटक के निदेशक बच्चन पाठक ने बताया कि नाटक की जीवंत प्रस्तुति लोगों को सहज ही समझ में आ जाती है. कई बार इसमें स्थानीय भाषा का भी प्रयोग किया जाता है, जिसका लाभ यह होता है कि कम पढ़े-लिखे लोग भी आसानी से सभी बातों को समझ लेते हैं.

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