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jamshedpur:आलिया भट्ट की जिगरा से जुड़े हैं जमेशदपुर के कुमार अभिषेक ..फिल्ममेकिंग में है अहम भूमिका 

इस शुक्रवार सिनेमाघरों में रिलीज हो रही जिगरा से असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर जुड़े कुमार अभिषेक ने इस इंटरव्यू में माना है कि छोटे शहर के लोगों का संघर्ष थोड़ा ज्यादा होता है.

Jamshedpur:आलिया भट्ट स्टारर  फिल्म जिगरा जल्द ही सिनेमाघरों में दस्तक देने जा रही है. आलिया भट्ट की इस फिल्म से निर्माता के तौर पर करण जौहर जुड़े हुए हैं और निर्देशक की जिम्मेदारी वासन बाला की है. वैसे इस फिल्म का बेहद खास कनेक्शन जमेशदपुर से भी है क्योंकि इस फिल्म से जमेशदपुर के कुमार अभिषेक अस्सिटेंट डायरेक्टर के तौर जुड़े हुए हैं.इससे पहले कुमार अभिषेक विक्की कौशल फिल्म सैम बहादुर का हिस्सा थे. फिल्म जिगरा की शूटिंग और उससे जुड़ी चुनौतियों को उन्होंने उर्मिला कोरी के साथ साझा किया 

सैम बहादुर से ज्यादा मुश्किल थी जिगरा 

सैम बहादुर बड़ी फिल्म थी. उसका बजट भी ज्यादा था, लेकिन जिगरा एक छोटे बजट की फिल्म है. आमतौर पर लोगों को लगता है कि धर्मा प्रोडक्शन की फिल्म है ,तो इसका बजट ज्यादा ही होगा. लेकिन ऐसा नहीं होता है. हर फिल्म का अपना एक बजट होता है. कई बार क्या होता है कि प्रोडक्शन हाउस मेकिंग से ज्यादा बजट फिल्म के प्रमोशन को दे देती है. इस फिल्म के साथ भी यही हुआ. प्रोडक्शन को ज्यादा पैसे मिले नहीं थे,इसलिए लिमिट बजट में शूट करना हमारे लिए मुश्किल था. खासकर वासन बाला के विजन के साथ. जो बहुत ही महत्वाकांक्षी था. ऐसे में उनके विजन को पर्दे पर लेकर लाना. उनके साथ-साथ उनके पूरे क्रू के लिए बहुत चैलेंजिंग था.

भारत को विदेश दिखाने की थी चुनौती 

फिल्म के ट्रेलर को देखते हुए आपको अंदाजा लगता होगा कि यह फिल्म विदेश में शूट हुई है, लेकिन मैं आपको बताना चाहूंगा कि इस फिल्म की 90% शूटिंग भारत में हुई है. वह भी मुंबई में .सिर्फ 10% शूटिंग विदेश में हुई है. विदेश में सिर्फ टॉप व्यू या शहर को दिखाने वाले शॉट की शूटिंग हुई है. इससे आप समझ सकते हैं कि हमको इंडिया में एक पूरा का पूरा विदेश दिखाना था. जिससे हमारी मेहनत बढ़ गई थी. हमें कार, कपड़ों से लेकर आसपास दिखने वालों लोगों पर भी काम करना पड़ा. फिल्म की शूटिंग से पहले हमने रिसर्च किया कि साउथ ईस्ट एशियन कंट्रीज और भारत के बीच कौन सी गाड़ियां कॉमन है, फिर हमने गाड़ियों के ऊपर आर्टवर्क भी किया. इंडिया में टैक्सी की बात करें इंडिका, इंडिगो, वेगनार इस तरह की नार्मल टैक्सी होती है. वहां पर टोयोटा वालिया टैक्सी ज्यादा होती है. आप वहां की टैक्सी में देखेंगे,तो वहां पर आगे में एक एलइडी डिस्पले लगा होता है. हमने उसे चीज को यहां की गाड़ी में इंस्टॉल करवाया था. इंस्टॉल करवाने के साथ-साथ उसमें आने वाले एडवर्टाइजमेंट और उससे जुड़ी चीजों के बारे में भी हमने अच्छा खासा रिसर्च किया था. हमने गाड़ियों के कलर पर भी काम किया. इंडियन गाड़ियां अक्सर ग्रे या व्हाइट होती है जबकि थाईलैंड और सिंगापुर में आपको पिंक और और ब्लू रंग में भी गाड़ियां मिलेगी. तो हमने उस डिटेल पर भी काम किया. बीते साल जून में टीम से जुड़ा था. 3 महीने तक हमारा पोस्ट प्रोडक्शन चला था. उसके बाद फिल्म की शूटिंग हुई. मैं बताना चाहूंगा फिल्म की शूटिंग के दौरान  भी बहुत कुछ बदलाव होते रहते थे, तो हमें उससे भी रोज डील करना पड़ता था.


आलिया ने 70 प्रतिशत एक्शन खुद से किया है 

आलिया और उनकी बहन शाहीन इस फिल्म की निर्मात्री भी है. जिस वजह से आलिया एक्टिंग ही नहीं बल्कि दूसरी चीजों में भी पूरी दिलचस्पी लेती थी. उनके कपड़े क्या होंगे.उनके एक्शन सीन क्या होगा. वह डायलॉग कैसे बोलेंगी. इन सब पर हमारे साथ में बैठकर ब्रेनस्टॉर्मिंग होती थी फिर वह अपने आईडिया देती थी. पॉइंट ऑफ़ व्यू सुनती थी. उसके बाद सीन  की शूटिंग होती थी.आलिया भट्ट के करियर की यह पहली एक्शन फिल्म है. इस फिल्म के एक्शन डायरेक्टर विक्रम  दहिया है. शूटिंग के वक्त सुरक्षा की बहुत ज्यादा एहतियात बरती गयी थी. फिल्म में गाड़ियां उड़ रही हैं. भिड़ रही हैं. इसके साथ चेस भी की जा रही है.इसके साथ हैंड टू हैंड भी फाइट है. आलिया ने ७० प्रतिशत एक्शन खुद से किया है बाकी बॉडी डबल ने किया है.एक्शन में कुछ चीज होती है ,जो नॉर्मल एक्ट्रेस नहीं कर सकती हैं. जैसे कि अगर गाड़ियां उड़ हो रही हैं या आग से निकल रही हैं ,तो उसमें एक्टर नहीं बैठ सकता है. बॉडी डबल ही बैठता है.

कॉरपोरेट जॉब छोड़कर फिल्मों को चुना 

मैं जमेशदपुर में ही पला- बढ़ा हूं. लोयला स्कूल से मेरी एजुकेशन हुई है.मेरे पिता पुलिस में थे ,जिस वजह से उनका ट्रांसफर कई जगहों पर होता रहता था ,लेकिन हमारी पढाई प्रभावित ना हो इसलिए  मेरी माँ हम  भाईयों और बहन के साथ जमशेदपुर में ही रही थी. थिएटर का शौक मुझे स्कूल कॉलेज में ही हो गया था, लेकिन करियर बनाने के बारे में सोचा नहीं था. मैं अपने इंजीनियरिंग करने लिए कर्नाटक के मणिपाल चला गया था. कर्नाटक में ही मैंने सॉफ्टवेयर में जॉब करना शुरू किया लेकिन मेरा मन नहीं लग रहा था.  मैंने फिल्म मेकिंग का एक डिप्लोमा कोर्स जॉब के साथ – साथ किया और वहां के दोस्तों के साथ मिलकर शार्ट फिल्म बनाने लगा जिसे सभी पसंद भी करते लगे. उस वक़्त लगा कि शायद मैं इस फील्ड में आगे बढ़ सकता हूँ और फिर  2018 में मुंबई आ गया.म्यूजिक इंडस्ट्री में कुछ समय काम किया. पहली फिल्म अस्सिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर कुत्ते थी. उसके बाद सैम  परिवार वाले पहले परेशान थे.अब उन्हें लगता है कि आगे भी कुछ अच्छा कर ही लेगा.जिस तरह से लगातार एक के बाद एक बड़ी फिल्मों से मैं जुड़ रहा हूं.

इस वजह से छोटे शहर के लोगों का संघर्ष बड़ा होता है 

अक्सर यह बात सुनने की मिलती है कि छोटे शहर के लोगों को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है. मैं भी कहूंगा कि ये सच है कि छोटे शहर के लोगों को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है. मुंबई में कोई आपको काम नहीं देना चाहता है या जबरदस्ती आपको पीछे धकेलेगा ये बात नहीं है बल्कि बात ये है कि छोटे शहर के होने की वजह से आपको एक्सपोजर कम मिला है, जिससे आपको बहुत सी चीज़ें पता ही नहीं होती है. आपको इंडस्ट्री में कैसे पहुंचना है. वो माध्यम तक पहुंचने में ही आपको  समय लग जाता है,जबकि  बड़े शहरों के लोगों के साथ ऐसा नहीं है. इस बात को कहने के साथ यह भी कहूंगा कि अभी हालात काफी अच्छे हो रहे हैं.छोटे शहरों में भी अब एक्सपोजर मिल रहा है .

क्राइम से अलग छवि झारखंड और बिहार की पर्दे पर लाना चाहूंगा 

 भविष्य की बात करूं तो अस्सिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर फ़िलहाल काम करना चाहूंगा. इससे आर्थिक तौर मदद मिलेगी और इंडस्ट्री में सम्पर्क भी बनेगा. अपनी अगली फिल्म अस्सिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर मैंने मेघना गुलजार की फ़िल्म साइन की है. उनका कहना था कि वह सैम बहादुर वाली ही टीम के साथ जुड़ना चाहेंगी,nजिसके बाद उनकी इस अगली फ़िल्म में भी मेरी एंट्री हो गई है. इसके  साथ  ही मैं अपनी स्क्रिप्ट्स पर भी काम कर रहा हूं. वो पूरा होने के बाद मैं निर्माताओं से अप्रोच  करूंगा. अपनी कहानी में  झारखण्ड और बिहार की कहानी को लाना चाहूंगा. अब तक बिहार और झारखंड को क्राइम में ज्यादा दिखाया गया है. मैं अलग बिहार और झारखण्ड को दिखाऊंगा. मेरा अपना शहर है. जिस बिहार और झारखंड को मैं जानता हूं. वह पर्दे पर लाऊंगा. मुंबई की व्यस्तता के बीच साल में एक बार जमशेदपुर जरूर आता हूं,क्योंकि वहां होना मुझे बहुत सुकून देता है साथ मुंबई में काम करने के लिए एनर्जी भी देता है.

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