15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जम्मू-कश्मीर के नतीजों के निहितार्थ

Jammu Kashmir Election

माना जा रहा था कि जम्मू इलाके की 43 सीटों में ज्यादातर भाजपा जीतेगी, पर वह 29 सीटें ही जीत पायी. उसे 14 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. वैसे भाजपा का एक धड़ा मान रहा है कि पार्टी की आपसी गुटबाजी और गलत टिकट बंटवारा सफलता की राह में बाधा बन गयी. पार्टी के लिए संतोष की बात यह भी है कि घाटी की कई सीटों पर उसके उम्मीदवार हजार-दो हजार वोटों के ही अंतर से हारे हैं.

ज म्मू-कश्मीर राज्य एवं राम मंदिर में क्या कोई समानता हो सकती है? मोटे तौर पर देखें, तो नहीं हो सकती. लेकिन जब भाजपा के संदर्भ में दोनों को देखें, तो समानता नजर आती है. राममंदिर और जम्मू-कश्मीर भाजपा के मुख्य मुद्दे रहे हैं. लेकिन चुनावी मोर्चे पर दोनों ही मुद्दे कम से कम स्थानीय स्तर पर भाजपा को निराश ही करते रहे हैं. संविधान के अनुच्छेद 370 और कैबिनेट के प्रस्ताव 35ए की वजह से जम्मू-कश्मीर की स्थिति अन्य राज्यों से अलग रही है. यह स्थिति ही वहां के अलगाववाद के नासूर का कारण मानी जाती रही है. भाजपा ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर एक तरह से इस नासूर को ही खत्म कर दिया. ऐसे में इसका चुनावी श्रेय पार्टी को मिलने की उम्मीद होना स्वाभाविक है. लेकिन विधानसभा चुनाव नतीजों ने पार्टी को निराश ही किया है.
यहां पर राममंदिर आंदोलन और उस बीच हुए उत्तर प्रदेश के चुनाव की याद आना स्वाभाविक है. छह दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद अव्वल तो होना चाहिए था कि आगामी चुनाव में भाजपा को अपने दम पर जीत मिलती. पर 1993 के चुनाव में वह सबसे बड़ा दल बनकर उभरी, लेकिन बहुमत से दूर रही. जनवरी 2024 में अयोध्या में भव्य राममंदिर बनकर तैयार हो गया. देश और दुनिया में इसे लेकर अलग तरह का उत्साह देखा गया. इसका चुनाव में फायदा मिलना चाहिए था. लेकिन उलटबांसी देखिए कि कुछ ही महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में अयोध्या वाली फैजाबाद सीट भाजपा हार गयी. इस कड़ी में मुख्य मुद्दे से जुड़े जम्मू-कश्मीर में भाजपा को चुनावी बढ़त न मिलना तीसरा झटका कहा जा सकता है. वहां जिस नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन को बहुमत मिला है, उसका चुनावी वादा है कि राज्य की पुरानी स्थिति बहाल करेंगे, यानी अनुच्छेद 370 को फिर से प्रभावी बनायेंगे. यह बात और है कि यह बहाली जम्मू-कश्मीर की आधी-अधूरी विधानसभा के वश की बात नहीं है. पर इस जीत के जरिये गठबंधन नैतिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर दबाव बनाने की कोशिश तो जरूर ही करेगा. इसका उसे राष्ट्रीय फायदा भले न मिले, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केंद्र में काबिज भाजपा के लिए परेशानी खड़ी करने का जरिया वह बनाता रहेगा.
वैसे भी भारत की राजनीति आज जिस मुकाम पर है, उसमें दलों को सिर्फ अपने सियासी स्वार्थ की चिंता है. उनकी प्राथमिकता में राष्ट्र बाद में आता है. इसलिए अंदरूनी मुद्दों को अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उछालने में दलों को कोई हिचक नहीं होती. विपक्ष के नेता राहुल गांधी के लंदन और अमेरिका के भाषण इसके उदाहरण हैं. दुनिया में भारत का दबदबा भले बढ़ रहा हो, भारत तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था भले हो, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ ताकतें ऐसी भी हैं, जो भारत में उथल-पुथल देखना चाहती हैं. इसके लिए वे प्रयास भी करती रहती हैं. जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन की जीत को ये ताकतें बहाना बनायेंगी और यह नैरेटिव स्थापित करने की कोशिश करेंगी कि जम्मू-कश्मीर की मौजूदा स्थिति उसकी अवाम को ही स्वीकार्य नहीं है. इस बहाने घूम-फिर कर उसी तर्क को बढ़ावा दिया जायेगा, जो पाकिस्तान देता रहा है तथा जिसकी वकालत नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जैसे दल भी करते रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में भाजपा को चुनावी जीत न मिलने के बाद वे फिर उसके नजरिये को गलत साबित करने की कोशिश करेंगे.
जम्मू-कश्मीर, विशेषकर घाटी, में वोटरों के जो विचार सामने आ रहे थे, उससे ऐसे ही नतीजों की उम्मीद थी. जिस घाटी में पत्थरबाजी रुक गयी, जहां आतंकी घटनाओं पर लगाम लग गयी, जहां ढाई दशक से पहले की तरह पर्यटकों की आमद बढ़ी, जहां अमन बढ़ा, वहां के लोग खुलकर कहते रहे कि उन्हें ‘हिंदू राज’ नहीं चाहिए. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की वजह से उन्हें ये सारी सहूलियतें मिलीं, राज्य में बदलाव आया, विकास की नयी बयार बही. फिर भी घाटी के लोगों को न तो मोदी पसंद हैं और न ही भाजपा. कश्मीर घाटी में नवगठित विधानसभा की 47 सीटें आती हैं, जबकि जम्मू इलाके में 43 सीटें हैं. घाटी की सीटों पर भाजपा चुनावी संभावनाओं की कोई उम्मीद भी नहीं लगायी हुई थी. वैसे भी घाटी की 28 सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार भी नहीं दिये थे. जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय का आंदोलन जिस प्रजा मंडल ने चलाया, उसका आधार जम्मू इलाके में ही रहा था. वह एक तरह से भाजपा के पूर्ववर्ती जनसंघ का ही हिस्सा था.
माना जा रहा था कि जम्मू इलाके की 43 सीटों में ज्यादातर भाजपा जीतेगी, पर वह 29 सीटें ही जीत पायी. उसे 14 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा. वैसे भाजपा का एक धड़ा मान रहा है कि पार्टी की आपसी गुटबाजी और गलत टिकट बंटवारा सफलता की राह में बाधा बन गया. पार्टी के लिए संतोष की बात यह भी है कि घाटी की कई सीटों पर उसके उम्मीदवार हजार-दो हजार वोटों के ही अंतर से हारे हैं. फिर भी उसे सोचना होगा कि उससे चूक कहां हुई कि अपने गढ़ में वह शत-प्रतिशत सफलता हासिल नहीं कर पायी. वैसे भाजपा इस बात से राहत की सांस ले सकती है कि हरियाणा में वह धमाकेदार जीत के साथ वापस लौट   रही है.                        (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें