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India Learning From French Crisis : फ्रांस क्यों कर्ज से बर्बाद? भारत के लिए क्या है सीख

क्या महंगे चुनावी वादों से फ्रांस का हुआ बेड़ा गर्क, जानिए क्या है अंदर की कहानी

India Learning From French Crisis : दुनिया में विलासिता, शान-शौकत और खुलेपन की राजधानी संकट में है. जी हां, बात फ्रांस की ही हो रही है. फ्रांस कर्ज संकट से बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है. हालात इतने बदतर हो गए हैं कि फ्रांस के नेताओं को इससे बचने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा है. फ्रांस की इस हालत से दूसरे यूरोपीय देशों के नेता भी दुबले हो रहे हैं कि फ्रांस का यह संकट पसर कर उनके देश को भी अपनी चपेट में न ले ले. चिंता तो अब पूरी दुनिया को होने लगी है कि कहीं फ्रांस का यह संकट 2008 की तरह सब पर मंदी का कहर न बरपा दे.

दुनिया के किसी भी देश की वित्तीय सेहत मापने का सबसे अच्छा पैमाना जीडीपी और कर्ज का अनुपात है. फ्रांस का कर्ज वहां की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का 110 प्रतिशत हो गया है. अर्थात साल भर में वस्तुओं और सेवाओं के कुल उत्पादन के कुल मूल्य से 10 प्रतिशत अधिक की उधारी फ्रांस ने बैंकों और वित्तीय संस्थाओं से ले रखी है. फ्रांस के ऊपर 3.5 ट्रिलियन डॉलर का बकाया है. यानी लगभग तीन लाख अरब रुपये की देनदारी है. इसे चुकाने में फ्रांस की अर्थव्यवस्था समर्थ नहीं हो पा रही है. वह भी तब जबकि फ्रांस कम जनसंख्या और काफी समृद्ध औद्योगिक अर्थव्यवस्था वाला देश है. 

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India learning from french crisis : फ्रांस क्यों कर्ज से बर्बाद? भारत के लिए क्या है सीख 3

India Learning From French Crisis : आखिर क्यों आर्थिक संकट में फंसा फ्रांस 

फ्रांस के नेताओं ने वोट पाने के लिए जनता को लुभावने वादे करने शुरू कर दिए. अगले चुनाव में फिर से वोट पाने के लिए इन वादों को पूरा करने की भी बारी आई. वादा किया है तो निभाना भी पड़ेगा. इसे निभाने के चक्कर में खजाने पर अधिक बोझ पड़ने लगा. लोकलुभावन योजनाओं पर हो रहे बेहिसाब खर्च के लिए आमदनी फ्रांस की अर्थव्यवस्था पैदा नहीं कर सकी. इस कारण अर्थव्यववस्था को गति देने के लिए देश के बाहर के निवेशकों और कर्जदारों की शरण लेनी पड़ी. अब हालात हाथ से निकलते मालूम पड़ रहे हैं. 

कर्ज बोझ से कराह रहे फ्रांस के बारे में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि यह देश 0.7 प्रतिशत से अधिक का विकास दर हासिल नहीं कर पाएगा. जो पिछले साल के निराशाजनक 0.9 प्रतिशत से भी कम है. क्योंकि फ्रांस की अधिकतर कमाई तो ब्याज चुकाने में चली जाती है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि फ्रांस आने वाले दिनों में अपनी बढ़ती आबादी के लिए पेंशन की जरूरतों को पूरा करने में भी नाकाम रहेगा. यूरोपीय संघ के नेताओं ने भी काफी कर्ज लेने के लिए फ्रांस की आलोचना की है. ज्ञात हो कि जापान ने भी अपनी जीडीपी का ढाईगुना कर्ज ले रखा है, लेकिन उसने अपने नगारिकों से ये कर्ज लिए हैं. इसलिए जापान के लिए संकट की स्थिति नहीं है. 

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India Learning From French Crisis: फ्रांस की स्थिति भारत के लिए क्यों खतरे की घंटी?

जिस तरह से लुभावने चुनावी वादों पर खजाना लुटाकर फ्रांस कर्जदार बना है, ठीक उसी तरह भारत के विभिन्न राज्यों में जनता को मुफ्त में बांटने की योजनाएं खूब चल रही हैं. इस कारण कई राज्य संकट में फंस रहे हैं. हाल ही में हिमाचल प्रदेश को अपने कर्मचारियों के लिए वेतन के लाले भी पड़ गए हैं. कई और राज्यों की भी ऐसी ही स्थिति है. रिजर्व बैंक कई सालों से ऐसी स्थिति के लिए चेता रहा है. राज्यों सरकारों की गंभीर वित्तीय सेहत को लेकर हाल के दिनों में कई रिपोर्ट आई है. फिर भी इससे सबक नहीं लिया जा रहा है. अब फ्रांस में बज रही खतरे की घंटी की भी अनसुनी की तो कई राज्य सरकारों के खजाने पर लाल बत्ती जलते देर नहीं लगेगी. 

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