प्राकृतिक जल संसाधनों के सदुपयोग से वाटर एयरोड्रम को विस्तार दिया जा सकता है. इसके माध्यम से न केवल यात्रियों के लिए एक रोमांचित हवाई यात्रा की सुविधा में विस्तार होता है, बल्कि दूर-दराज के द्वीप समूहों, जलाशयों एवं तटीय इलाकों को भी मुख्य भूमि से जोड़ा जा सकता है
हवाई अड्डा विमानपत्तन या एयरोड्रम तो सब जानते हैं, किंतु वाटर एयरोड्रम हवाई यात्रा की मानवीय चाहत को और भी मजबूत करता है. वाटर एयरोड्रम न केवल विमान आवागमन को और शक्तिशाली बनाता है, बल्कि यह प्राकृतिक संसाधन की उपयोगिता को भी बढ़ाता है. नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने क्षेत्रीय हवाई संपर्क योजना के अंतर्गत ऐसे हवाई अड्डों को व्यवस्थित ढंग से शुरू एवं विकसित करने की योजना बनायी है. वाटर एयरोड्रम, जल हवाई अड्डा या सीप्लेन बेस की लागत सामान्य हवाई अड्डे या एयरोड्रम की लागत से बहुत कम आंकी जाती है. इसके लिए विमान धावन पथ एवं अन्य बुनियादी ढांचा बनाने की जरूरत नहीं या कम पड़ती है. अब तक इन वाटर एयरोड्रम की नींव विभिन्न राज्यों में रखी जा चुकी है- अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में स्वराज द्वीप, शहीद द्वीप एवं लॉग द्वीप, असम में गुवाहाटी रिवर फ्रंट एवं उमरांगसो डैम, आंध्र प्रदेश में प्रकाशम बैराज तथा गुजरात में सरदार सरोवर डैम, साबरमती रिवर फ्रंट (अहमदाबाद), एवं शत्रुंजय डैम, पलिताना. द्वारका (गुजरात), मासाबंडर द्वीप (अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह), काजीरंगा (असम) समेत कई जगहों पर वाटर एयरोड्रम बनाने की योजना है.
वाणिज्यिक हवाई जहाजों की तुलना में सीप्लेन बहुत कम ऊंचाई पर उड़ान भरता है. यह पानी और जमीन दोनों जगहों से उड़ान भर सकता है, किंतु इसके पानी से उड़ान भरने एवं उतरने के लिए बहुत कुशल एवं सक्षम पायलट की आवश्यकता होती है. भारत में उड्डयन निदेशालय ने 2018 में वाटर एयरोड्रम के प्रमाणीकरण (लाइसेंसिंग) को ध्यान में रखते हुए एक नियमन जारी किया था. सुरक्षित सीप्लेन संचालन की दिशा में निदेशालय ने अब इन नागरिक उड्डयन नियामक प्रावधानों को नया रूप दिया है. इस संशोधन में बुनियादी ढांचों की प्रक्रिया, पायलट प्रशिक्षण आवश्यकता और नियामक अनुपालन आदि शामिल हैं. दुनिया के अनेक देशों में, विशेषकर द्वीप एवं प्रायद्वीप की श्रेणी के, वाटर एयरोड्रम क्रियाशील हैं. अत: जिन देशों में वाटर एयरोड्रम भूमि हवाई अड्डों से अलग माना जाता है, उनके लिए अंतरराष्ट्रीय मार्गदर्शन की पुस्तिका उपलब्ध है. अब तक वाटर एयरोड्रम का प्रचलन बहुतायत में नहीं है. कुछ ही देशों एवं प्रदेशों जैसे कनाडा, बहामास, ब्रिटेन, इंडोनेशिया, मालदीव, श्रीलंका, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, सिडनी, सऊदी अरब आदि में इन्हें देखा जा सकता है.
प्राकृतिक जल संसाधनों के सदुपयोग से वाटर एयरोड्रम को विस्तार दिया जा सकता है. इसके माध्यम से न केवल यात्रियों के लिए एक रोमांचित हवाई यात्रा की सुविधा में विस्तार होता है, बल्कि दूर-दराज के द्वीप समूहों, जलाशयों एवं तटीय इलाकों को भी मुख्य भूमि से जोड़ा जा सकता है. प्राकृतिक आपदाओं के समय राहत व बचाव में भी वाटर एयरोड्रम कारगर साबित हो सकता है. जल संसाधनों से जुड़े पर्यटन को भी इससे बढ़ावा दिया जा सकता है. सीप्लेन जमीन और पानी दोनों जगहों से संचालित हो सकते हैं. अत: इसमें समुद्री विमान परिवहन के लिए बहुपयोगी होने की क्षमता है. जल केंद्रित क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति देने में वाटर एयरोड्रम महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इसके संचालन से रोजगार के अवसर पैदा होते हैं. वाटर एयरोड्रम से सीप्लेन को संचालित करने हेतु कम से कम तीन सौ मीटर की लंबाई-चौड़ाई वाले जलाशयों की जरूरत होती है, जिससे हवाई पट्टी आदि का निर्माण हो सके. अत: पारिस्थितिकी के लिहाज से संवेदनशील स्थानों पर ऐसी परियोजनाओं के लिए भूमि, जल सतह अधिग्रहण करना और पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करना एक चुनौती होती है.
इसी प्रकार, चूंकि जल हवाई अड्डा और पानी पर चलने वाले जहाज एक ही सतह पर हो सकते हैं, ऐसे में सीप्लेन के उड़ने और उतरने के कारण आसपास के पानी में जहाजों के आवागमन पर असर पड़ सकता है तथा उनकी सुरक्षा प्रभावित हो सकती है. अत: सीप्लेन और पानी जहाजों (नौका इत्यादि) की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जल हवाई अड्डे के स्थल की तर्कसंगतता और सुरक्षा का मूल्यांकन करना बेहद महत्वपूर्ण है. वाटर एयरोड्रम के निर्माण में मौसम विज्ञान, जल विज्ञान, नौगम्य और हवाई क्षेत्र के वातावरण के मुख्य पहलुओं पर विशेष ध्यान देना होता है. जल एयरोड्रम की आवश्यकताएं अलग-अलग हो सकती हैं, जैसे पानी पर संचालन करते समय सभी सीप्लेन को पानी जहाज (नाव) माना जाना, सीप्लेन के पानी पर समुद्री नियमों और हवा में नागरिक उड्डयन नियमों के अधीन होना, विभिन्न विमान बचाव और अग्निशमन प्रक्रियाएं या उपकरण आदि. वाटर एयरोड्रम को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने की जरूरत है. साथ ही, एक वैश्विक मानक बने, जो वाटर एयरोड्रम संचालन में वैश्विक सामंजस्य स्थापित करे. भारत विमानन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि कर रहा है. तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में हवाई परिवहन देश के परिवहन के बुनियादी ढांचे का एक महत्वपूर्ण तत्व है. वाटर एयरोड्रम का विकास आने वाले दिनों में बढ़ेगा और तब घरेलू हवाई मार्गों और इसके उपरांत अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर सार्वजनिक उड़ान के लिए बड़े सीप्लेन संचालित होने की संभावना बढ़ेगी. इसमें कोई दो राय नहीं है. जरूरत है तो समुचित तैयारी की.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)