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Digital Arrest Explainer: कहीं ‘गंदे काम में पकड़ी गई बेटी’ के सदमे से मां की मौत, तो कहीं व्यवसायी से ठगे 7 करोड़; क्या है डिजिटल अरेस्ट?

Digital Arrest Explainer: स्कैमर्स लोगों को ठगने के लिए डीपफेक तकनीक का इस्तेमाल तेजी से कर रहे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ऑनलाइन धोखाधड़ी को रोकने के लिए जागरूकता बहुत जरूरी है.

Digital Arrest Explainer: पूरे देश में डिजिटल धोखाधड़ी यानि साइबर फ्रॉड के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पहले इन अपराधों की संख्या बहुत कम थी, लेकिन अब प्रत्येक दिन कोई ना कोई बड़ा चौंकाने वाला मामला सामने आ रहा है. हाल ही में उत्तर प्रदेश के आगरा में पेशे से शिक्षिका रहीं एक महिला की मौत हो गई. बताया जा रहा है कि शिक्षिका को एक पाकिस्तानी नंबर से कॉल आया था, जिसमें उन्हें बताया गया कि आपकी बेटी सेक्स रैकेट में फंसी है, और अगर उन्हें तत्काल 1 लाख रुपये नहीं भेजे गए तो बेटी का वीडियो वायरल किया जाएगा, और उसे जेल भेजा जाएगा. हालांकि उनके बेटे ने उन्हें इस जालसाजी के बारे में समझाने का प्रयास किया और बेटी को वीडियो कॉल के माध्यम से दिखाया, लेकिन तब तक फर्जी कॉल का असर इतना हो चुका था कि शिक्षिका को हार्ट अटैक आ गया और 4 घंटे बाद उनकी मौत हो गई.

Digital Arrest Alert: वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन एसपी ओसवाल के साथ सबसे बड़ी ठगी

दूसरी घटना वर्धमान ग्रुप के चेयरमैन एसपी ओसवाल के साथ अब तक की सबसे बड़ी ठगी हुई, साथ में यह साइबर फ्रॉड की बड़ी रिकवरी भी रही. एसपी ओसवाल को एक वीडियो कॉल मिला, जिसमें उनको बताया गया कि कॉल करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के अधिकारी हैं. अपराधियों ने उन्हें एक नकली कोर्ट रूम में डिजिटल अरेस्ट किया, तथा प्रवर्तन निदेशालय (ED) के पेपर और कोर्ट की मुहर लगे वास्तविक प्रतीत होने वाले लेकिन नकली डॉक्यूमेंट्स दिखाया और मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच का दिखावा कर विभिन्न खातों में 7 करोड़ रुपये ट्रांसफर करा लिये. हालांकि कि पुलिस ने इस मामले में तेजी दिखा कर अब तक लगभग 5 करोड़ रुपये रिकवर कर लिया है.

Digital Arrest Alert: कैसे होती है ठगी?

हमने अपने साइबर एक्सपर्ट, साइबर लॉयर और Lex Cyber Attorneys के संस्थापक अंकित देव अर्पण से डिजिटल अरेस्ट के तरीकों पर बात की, तो उन्होंने जानकारी दी कि यह अत्यंत नियोजित तरीके से किया जाता है. इसके अंतर्गत वैसे प्लैटफॉर्म या संस्थान जहां छात्र-छात्राएं आवासीय सुविधा का लाभ लेते हैं जैसे हॉस्टल, पीजी इत्यादि से छात्रों के अभिभावकों या परिजनों का डेटा खरीदा जाता है. पैसों की लालच में ये हॉस्टल वाले इस डेटा को बेच भी देते हैं. इस डेटा का उपयोग कर परिजनों को ऐसे समय जिस समय छात्र के क्लास इत्यादि में रहने की संभावना अधिक होती है, उन्हें वीडियो कॉल किया जाता है. चूंकि प्रोफाइल फोटो में किसी बड़े पुलिस अधिकारी अर्थात एसपी, डीआईजी, आईजी इत्यादि की तस्वीर लगी होती है, और वीडियो कॉल में एक नकली पुलिस स्टेशन बनाया गया होता है, जो अभिभावकों के मन में एक डर पैदा करता है, ऐसे में अपने पाल्य या बेटे बेटी की सुरक्षा को ध्यान में रखकर अभिभावक इन स्कैमर्स की बातों में आ जाते हैं और मानसिक रूप से ढीले पड़कर पैसे ट्रांसफर कर देते हैं.

Digital Arrest Alert: डेटा के लेन-देन पर सतर्कता जरूरी

हमारे साइबर एक्सपर्ट और साइबर लॉयर अंकित देव अर्पण ने आगे बताया, ऐसा नहीं है कि डिजिटल अरेस्ट रैकेट में शामिल घोटालेबाज केवल भोले-भाले लोगों या कामकाजी वर्ग के साधारण लोगों को ही निशाना बनाते हैं, बल्कि सच्चाई यह है कि ऐसे साइबर अपराध के अधिकांश पीड़ित शिक्षित और जागरूक नागरिक हैं. डेटा कलेक्शन के दूसरे तरीके छोटे डेलीवेरी ऐप्लीकेशन, ई-कॉमर्स साइट, सीएसपी सेंटर्स इत्यादि हैं. जहां से छोटे स्तर पर लगातार डेटा की खरीद-फरोख्त हो रही है, और यह इतने छोटे स्तर से बड़े पैमाने पर हो रही है कि इसका पता लगाना बहुत मुश्किल है. ऐसे में डेटा प्रोटेक्शन बिल का आना संभवतः ऐसे मामलों पर लगाम लगा सकता है, और डेटा के आदान-प्रदान पर छोटे स्तर पर भी ध्यान देने की जरूरत है.

Digital Arrest Alert: डिजिटल अरेस्ट के अन्य तरीके भी

एक्सपर्ट्स की मानें, तो डिजिटल अरेस्ट के अन्य तरीके भी हैं. मसलन, फर्जी कूरियर कंपनी से कॉल आना और किसी पार्सल में अवैधानिक वस्तुओं जैसे सिम कार्ड, ड्रग्स, आधार कार्ड, ज्यादा की संख्या में एटीएम कार्ड इत्यादि का मिलना बताया जाता है. चूंकि अधिक लोग पार्सल भेजते और रिसीव करते हैं, तो उन्हें इस बात पर विश्वास हो जाता है कि यह कूरियर उनके द्वारा ही भेजा गया होगा, जिससे वे ऐसी बातों में फंस कर साइबर फ्रॉड का शिकार हो जाते हैं.

Digital Arrest Alert: अवैध सामग्री की तस्करी के नाम पर ठगी

हमारे एक्सपर्ट बताते हैं कि उनके सामने आये एक मामले में साइबर फ्रॉड करने वाले एक गैंग ने भारत से कुवैत जाने वाली फ्लाइट के बुकिंग एजेंट से डेटा खरीदा था. इसके माध्यम से वह फ्लाइट उड़ने के समय पर परिजनों के नंबर पर कॉल कर के यह सूचना देता था कि आपके परिवार के सदस्य को कस्टम अधिकारियों ने अवैध सामग्री की तस्करी के मामले में पकड़ा गया है, और उसकी एक डमी वॉयस जो 5 से 10 सेकेंड की होती थी, उसे सुनाया जाता था. इससे परिजनों को यह विश्वास हो जाता था कि हमारे परिवार के सदस्य को पकड़ा गया है. चूंकि फ्लाइट के समय वे उस व्यक्ति को कॉल कर पाने में समर्थ नहीं होते थे, ऐसे में अधिक चिंतित होकर अपने परिवार के सदस्य को छुड़ाने हेतु बड़ी रकम दे देते थे. बाद में यह पता चलता था कि उनके साथ धोखाधड़ी हुई है.

Digital Arrest Alert: पकड़ना आसान नहीं

इन्हें पकड़ना आसान क्यों नहीं होता? इस सवाल के जवाब में एक्सपर्ट बताते हैं कि आम तौर पर ये गैंग गांव के लोगों को पैसों का लालच देकर उनके नाम से सिम कार्ड लेते हैं और उन्हीं के नाम से बैंक अकाउंट खोलते हैं. साथ ही, एटीएम कार्ड का ऐक्सेस अपने पास रखते हैं जिससे तुरंत ही इन तक पहुंचना बहुत मुश्किल होता है. हालांकि अब साइबर मामलों में पुलिस की कार्यशैली सुधरी है और ऑनलाइन कंप्लेंट और जांच की व्यवस्था होने के कारण ज्यादातर मामलों में औसतन 25% से 40 प्रतिशत तक की राशि रिकवर कर ली जा रही है. बैंकों ने भी ऐसे मामलों में सख्ती दिखाई है. हालांकि अब इसके जानलेवा मामले भी सामने आ रहे हैं, जिसकी कोई रिकवरी नहीं हो सकती है. अतः ऐसे मामलों में घबराने के बजाय सचेत रहें. तुरंत 1930 पर कॉल करें, या www.cybercrime.gov.in पर शिकायत करें. विशेष जरूरत होने पर अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करें. साथ ही, एक दूसरे को जागरूक करने का प्रयास निरंतर करें, क्योंकि साइबर अपराधों के प्रति जागरूकता ही बेहतर विकल्प है.

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