लोगों को साथ लेकर चलने के सिद्धांत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उनके एक वाक्य से स्पष्ट होती है, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘अगर आप तेज चलना चाहते हैं, तो अकेले चलें. लेकिन अगर आप दूर चलना चाहते हैं, तो साथ-साथ चलें.’ हालांकि वे देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने के मुखिया थे, लेकिन जो भी उनसे मिलता था, उन्होंने कभी भी यह अहसास नहीं होने दिया. वे हमेशा से विनम्रता की एक मिसाल के रूप में जाने जाते रहे हैं.
भारत और दुनिया के सबसे महान उद्योग नेताओं में से एक पद्म विभूषण रतन नवल टाटा का दुखद निधन केवल उद्योग जगत के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण राष्ट्र के लिए बड़ी क्षति है. आजादी से पहले टाटा समूह के संस्थापक जमशेद जी टाटा ने देश में सबसे बड़े स्टील उद्योग की नींव रखी, जिसे आज हम टाटा स्टील के नाम से जानते हैं. जमशेद जी ने भारत के आम लोगों से एक-एक रुपया इक्विटी पूंजी के रूप में इकट्ठा किया और उससे इस बड़ी स्टील कंपनी को स्थापित कर यह दिखा दिया कि देशभक्त भारतीयों द्वारा ही राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है. रतन टाटा का जीवन एवं व्यक्तित्व न केवल हमारे देश के, बल्कि पूरे विश्व के उभरते उद्यमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है. उल्लेखनीय है कि लाभ कभी भी टाटा समूह का एकमात्र उद्देश्य नहीं रहा है और रतन टाटा के दूरदर्शी नेतृत्व में श्रमिकों, गरीबों और दलितों की देखभाल करना हमेशा समूह का मार्गदर्शक सिद्धांत रहा है. अपने दृढ़ निश्चय और प्रतिबद्धता के साथ वे स्टील, ऑटोमोबाइल और विमानन सहित टाटा समूह के विभिन्न व्यवसायों को वैश्विक स्तर पर ले गये.
उनके दूरदर्शी नेतृत्व ने हमेशा ही भारत को गौरवान्वित किया. टाटा समूह को अन्य व्यावसायिक घरानों से जो बात अलग बनाती है, वह यह है कि रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह हमेशा से ही मजदूरों, लोगों और खासकर गरीबों के पक्ष में रहा है. उन्होंने एक बार कहा था कि जब उन्होंने भारी बारिश में बस का इंतजार कर रहे एक गरीब परिवार को देखा, तो उनके दिमाग में एक ऐसी छोटी कार बनाने का विचार आया, जो आम आदमी के लिए सस्ती हो. उन्होंने इस विचार को साकार करते हुए दुनिया की सबसे सस्ती और किफायती कार बनाने का कार्य पूरा किया. जहां उनकी व्यावसायिक सोच में आम आदमी और श्रमिक के प्रति संवेदनशीलता दिखाई देती है, वहीं उनके व्यवहार में सदैव देश के प्रति अथाह प्रेम भी झलकता है. उनके बारे में एक किस्सा प्रसिद्ध है कि पाकिस्तान द्वारा भेजे गये आतंकवादियों द्वारा मुंबई के ताज होटल पर हमला करने के कुछ दिन बाद पाकिस्तान के कुछ उद्योगपति उनसे मिलने के लिए भारत आये, लेकिन रतन टाटा ने उनसे मिलने से मना कर दिया. ऐसी स्थिति में जब भारत सरकार के एक तत्कालीन मंत्री ने उनसे वह मुलाकात करने के लिए आग्रह किया, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से यह कह दिया कि आप लज्जाहीन हो सकते हैं, लेकिन मैं नहीं. जब-जब देश पर आपत्ति आयी, रतन टाटा ने दिल खोलकर योगदान दिया. हाल में कोरोना महामारी के दौरान रतन टाटा ने न केवल 500 करोड़ रुपये का योगदान दिया, बल्कि इसके अलावा टाटा समूह ने कुल 1500 करोड़ रुपये का कुल योगदान कोविड संकट के दौरान दिया. यह राशि देश के किसी भी व्यावसायिक समूह के योगदान से अधिक थी.
लोगों को साथ लेकर चलने के सिद्धांत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उनके एक वाक्य से स्पष्ट होती है, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘अगर आप तेज चलना चाहते हैं, तो अकेले चलें. लेकिन अगर आप दूर चलना चाहते हैं, तो साथ-साथ चलें.’ हालांकि वे देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने के मुखिया थे, लेकिन जो भी उनसे मिलता था, उन्होंने कभी भी यह अहसास नहीं होने दिया. वे हमेशा से विनम्रता की एक मिसाल के रूप में जाने जाते रहे हैं. उन्होंने जब टाटा समूह का नेतृत्व संभाला, तो उस समय अन्य औद्योगिक समूह विभिन्न क्षेत्रों में विस्तार कर रहे थे. रतन टाटा ने अपनी एक अलग राह चुनी और अपने पूर्व स्थापित उद्योगों को गति देने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंपनियों का अधिग्रहण किया. अधिग्रहण के समय वार्षिक इस्पात उत्पादन के मामले में कोरस कंपनी टाटा स्टील से चार गुना बड़ी थी. कोरस दुनिया की नौवीं सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक कंपनी थी, जबकि टाटा स्टील 56वें स्थान पर थी. अधिग्रहण के बाद टाटा स्टील दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इस्पात उत्पादक कंपनी बन गयी. सामान्यतया जब भी कोई विदेशी किसी कंपनी का अधिग्रहण करता है, तो वहां के लोगों और कर्मचारियों में उसके प्रति विरोध होता है, लेकिन इस अधिग्रहण में सबसे गौरवान्वित करने वाली बात यह थी कि कर्मचारियों ने इस बाबत खुशी जतायी क्योंकि टाटा को हमेशा कर्मचारी हित को सर्वोपरि रखने वाली कंपनी के रूप में जाना जाता है. इसी प्रकार, दुनिया की सबसे बड़ी कार कंपनी फोर्ड का भी अधिग्रहण रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने किया, जिसके चलते टाटा मोटर्स ने भारत में ही नहीं, दुनिया में एक बड़ा स्थान बना लिया.
वे हमेशा नीति निर्माताओं के लिए मार्गदर्शक रहे हैं. उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि वे नीति निर्माताओं सहित अन्य लोगों को उनकी गलती के लिए टोक देते थे. रतन टाटा ने टाटा समूह के प्रति अपने दूरदर्शी नेतृत्व से हमेशा ही मजदूरों, उपभोक्ताओं और आम आदमी का स्नेह, प्रशंसा और वफादारी जीती है. सभी बड़े औद्योगिक घरानों में से यह टाटा समूह ही था, जिसने कोविड-19 महामारी के दौरान न केवल अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन दिया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि कोविड-19 के दौरान जान गंवाने वालों के परिवारों को उनकी सेवानिवृत्ति की तिथि तक पूरा वेतन मिलता रहे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
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रतन टाटा : मानवता और कारोबार के संगम
लोगों को साथ लेकर चलने के सिद्धांत के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उनके एक वाक्य से स्पष्ट होती है, जिसमें उन्होंने कहा कि ‘अगर आप तेज चलना चाहते हैं, तो अकेले चलें. लेकिन अगर आप दूर चलना चाहते हैं, तो साथ-साथ चलें.’
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