Darbhanga News: कुशेश्वरस्थान पूर्वी. बाढ़ प्रभावित गांवों में पानी कम गया है, लेकिन यातायात की समस्या जस की तस बनी हुई है. लोग अभी भी नाव से ही तटबंध पर आते-जाते हैं. वहां से मुख्यालय जाने के लिए सवारी पकड़ते हैं. प्रखंड क्षेत्र से होकर गुजरने वाली कमला व जीवछ नदी के जलस्तर में छह दिनों से लगातार हो रही वृद्धि से कुशेश्वरस्थान व कुशेश्वरस्थान पूर्वी प्रखंड के डेढ़ दर्जन से अधिक चौर में बाढ़ का पानी फैल गया. बाली लग चुकी धान की फसल बाढ़ के पानी में डूब गयी है. इससे किसानों को लाखों की क्षति बतायी जा रही है. हालांकि मंगलवार को दर्जिया-फुहिया के पास बने स्लुइस आठ का गेट को खोल दिया गया. उससे जीवछ व कमला नदी के पानी की निकास हो रहा है. पानी की निकासी जल्द हो जाये तो फसल के बच जाने की उम्मीद बढ़ जायेगी. इधर, सुघराइन पंचायत की सभी ग्रामीण सड़क बाढ़ के पानी में डूब गयी है. इससे इस पंचायत के लोगों को आवागमन में परेशानी हो रही है. सुघराइन गांव चारों ओर से बाढ़ के पानी से घिरा हुआ है. मालूम हो कि पिछले दिनों कोसी व कमला बलान नदी में आये उफान से कमला के पश्चिमी व पूर्वी तटबंध के बीच बसे प्रखंड की चार पंचायतों की सैकड़ों एकड़ जमीन में लगी खरीफ फसल पहले ही बाढ़ की भेंट चढ़ चुकी है. सुघराइन पंचायत के सुघराइन, लक्ष्मिनिया, जुरौना, बाघमारा, महिशौथ पंचायत के महिशौथ, रैहपुरा, गढ़ैयपुर, नरकटिया, कुशेश्वरस्थान दक्षिणी पंचायत के अदलपुर, सोहरबा, नगर पंचायत के पिपड़ा सहित प्रखंड के दर्जन से अधिक गांव के चौर में बाढ़ का पानी रहने के कारण सैकड़ों एकड़ में लगी धान की पक रही फसल डूबने लगी है. इससे किसानों में मायूसी छा गयी है. सुघराइन के किसान विवेकानंद राय, राजदीप राय, समसेर राय, सतीश राय, राहुल कुमार, जोगी मुखिया, फूलो साहु, कैलाश राय सहित दर्जनों किसानों ने बताया कि लगातार बाढ़ आने से 1990 के बाद धान की खेती छोड़ दी थी. फुहिया में कमला बलान व करेह नदी का तटबंध मिलने व यहां 12 फाटक के स्लुइस गेट बन जाने से गत दो वर्षों से बाढ़ का पानी आना बंद हो गया था. इस कारण इस साल धान की रोपनी की. बारिश कम होने से रोपनी से लेकर पौधे को हरा-भरा रखने के लिए पंपसेट से पटवन कर इसे बचाया. इसमें काफी खर्च हुआ. समय पर खाद-पानी देने से फसल भी अच्छी है. किसी खेत में बाली निकल आयी है, तो किसी खेत में फसल पकने लगे हैं, लेकिन गत छह दिनों से कमला व जीवछ नदी के जलस्तर में लगातार हो रही वृद्धि से फसल बाढ़ के पानी में डूबने लगी है. हालांकि मंगलवार को स्लुइस गेट खोलने से किसानों को राहत मिली है. ससमय रातों-रात खेत से पानी निकल जाये तो धान की फसल अच्छी हो सकती है, अन्यथा पूरी फसल बर्बाद हो जायेगी. किसान विवेकानंद ने बताया कि कमला और जीबछ नदी का पानी सुघराइन गांव तक स्लुइस गेट बनने के कारण गांव तक ही रुक जाता है. इस कारण आवागमन बाधित हो जाता है. फसल की भी क्षति होगी. वहीं खेतों में बाढ़ का पानी भरने से रबी की फसलों पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ेगा. यहां के किसान मक्का की खेती व्यापक पैमाने पर करते हैं. अक्तूबर प्लांट के मक्का की खेती करने से कम खर्च में अधिक मुनाफा होता, लेकिन अक्तूबर के मध्य में बाढ़ के पानी से खेतों के डूबने से अब यह खेती संभव नजर नहीं आ रही है. इस संबंध में बीएओ धर्मेंद्र प्रसाद गुप्ता ने बताया कि बाढ़ के पानी से अभी तक 3388 हेक्टेयर में लगी फसल की क्षति हुई है. स्लुइस गेट खोल दिये जाने से पानी की निकासी हो रही है. ससमय पानी निकल जायेगा तो फसल हो सकती है, अन्यथा फसल को नुकसान होने पर इसका आकलन कर विभाग को भेज दिया जायेगा.
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