23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Kojagara: समृद्धि की कामना का लोकपर्व कोजागरा आज, मिथिला में क्यों है पच्चीसी खेलने की परंपरा

Kojagara: मानो देवी भी पृथ्वी पर आनंद की अनुभूति हेतु चली आती हैं. शास्त्रों के अनुसार आश्विन पूर्णिमा की रात जगत की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी जब वैकुंठ धाम से पृथ्वी पर आते समय देखती है कि उनका भक्त जागरण कर रहा है या नहीं इसी कारण रात्रि जागरण को कोजागरा कहा गया है.

Kojagara: पटना. शरादीय नवरात्र के बाद नवविवाहिताओं के लिए खास महत्व रखने वाला लोकपर्व कोजागरा आज बिहार और समेत पूरे उत्तर भारत में घर-घर उत्साह के साथ मनाया जा रहा है. कोजागरा की रात चांद की दूधिया रोशनी पृथ्वी पर पड़ती है, जिससे पृथ्वी का सौंदर्य निखर आता है. मानो देवी भी पृथ्वी पर आनंद की अनुभूति हेतु चली आती हैं. शास्त्रों के अनुसार आश्विन पूर्णिमा की रात जगत की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी जब वैकुंठ धाम से पृथ्वी पर आते समय देखती है कि उनका भक्त जागरण कर रहा है या नहीं इसी कारण रात्रि जागरण को कोजागरा कहा गया है.

नव विवाहित दंपती लेते हैं समृद्ध दाम्पत्य का आशिवार्द

मान्यता है कि आश्विन पूर्णिमा की रात पूनम की चांद से अमृत की वर्षा होती है. मान्यता है कि जो रात भर जागता है वहीं अमृत पान भी करता है. उसके घर ही समृद्धि वास करती है. खास कर नव विवाहित वर अपने विवाह के पहले वर्ष में इस समृद्धि को प्राप्त करें, इसका वो अपने बड़े बुजुर्ग से आशिवार्द लेते हैं, जिसे मिथिला में चुमाउन कहा जाता है. ऐसा करने पर उनका दाम्पत्य जीवन सुखद बना रहता है. इसी कामना को लेकर यह लोकपर्व पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है.

भेंट का चावल और मखाना का खीर से लगता है भोग

कोजागरा जिसे बंगाल में लखि पूजा कहा जाता है, इसमें मुख्य रूप से लक्ष्मी के विभिन्न रूपों का पूजन होता है. कमल के पन्ने जिसे पुरैन कहते हैं, उसपर कौमुदी के बीज भेंट का भात (चावल) और मखान का खीर मां अन्नपूर्णा को भोग लगाया जाता है. कोजागरा के दिन धन से अधिक अन्न का महत्व होता है. लोग सोना और चांदी के सिक्के की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, लेकिन मुख्य रूप से दौलत का अर्थ अन्न की समृद्धि से है न कि धन की समृद्धि से. ऐसी मान्यता है कि कोजागरा की रात अमृत वर्षा होती है, ऐसे में लोग आंगन या छत पर दही को पूरी रात रखते हैं और सुबह उस दही को अमृत मानकर खाते हैं.

Maxresdefault 62
Kojagara: समृद्धि की कामना का लोकपर्व कोजागरा आज, मिथिला में क्यों है पच्चीसी खेलने की परंपरा 2

कोजागरा की राज जुआ खेलने की है परंपरा

कोजागरा की रात जुआ खेलने की परंपरा है. घर-घर लोग पचैसी, तास, लूडो या फिर चौसा खेलते हैं. चांदी के कौड़ी से भाभी के साथ चौसा (पच्चीसी) खेलने के पीछे का कारण आज भी रहस्य बना हुआ है. इस दौरान देवर भाभी के बीच हास परिहास भी चलते रहता है. कहा जाता है कि कोजागरा के दिन जुआ खेलने से साल भर धन की कमी नहीं होती है. अन्य दिनों में चाहे जुआ खेलना जितना भी बुरा माना जाता हो, लेकिन आज की रात जुआ खेलने की परंपरा लोग निभाने से पीछे नहीं रहते.

Also Read: Navratri: सनातन धर्म के साक्त परंपरा में बलि का है खास महत्व, अनुष्ठान से पहले रखें इन बातों का ध्यान

मखाना और बतासा के दाम में हुई बढ़ोतरी

कोजागरा को लेकर मखाना और बतासा सहित अन्य सामान के दाम में बढ़ोतरी हो गई है. भेंट का चावल तो पटना जैसे शहर के बाजार में मिलता ही नहीं है. मखाना भी इस साल 12 सौ से 14 सौ रुपये प्रति किलो मिल रहा है. वहीं बतासा 300 से 600 रुपये किलो, लड्डू 300 रुपये किलो, दही 250 रुपये किलो मिल रहा है. वहीं कोजागरा में पान का महत्व देखते हुए 300 रुपये ढ़ोली तो सुपाड़ी 800 रुपये किलो तक हो गया है. लोगों का कहना है कि महंगाई के कारण अब पर्व त्योहार मनाना भी मुश्किल होता जा रहा है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें