Omar Abdullah : उमर अब्दुल्ला केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गए हैं, उन्होंने बुधवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उमर अब्दुल्ला इससे पहले भी 2009 से 2014 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे. लेकिन उस वक्त और आज की स्थिति में काफी फर्क है, उस वक्त जम्मू-कश्मीर एक विशेष दर्जा प्राप्त राज्य था, जबकि आज वह केंद्र शासित प्रदेश है और आर्टिकल 370 भी अब अस्तित्व में नहीं है. 5 अगस्त 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में काफी कुछ बदल चुका है और इस वजह से वहां सरकार चलाना काफी चुनौतीपूर्ण होगा.
अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी के CM हैं उमर अब्दुल्ला
उमर अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य हैं, जो सीएम बने हैं. उनसे पहले उनके दादा शेख अब्दुल्ला और उनके बाद उनके पिता फारुक अब्दुल्ला भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ चुके हैं. उमर अब्दुल्ला दूसरी बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बने हैं और उनके सामने चुनौती यह है कि वे किस तरह प्रदेश में बिना विवाद के शासन चला सकें और प्रदेश के लोगों की अपेक्षाओं को भी पूरा कर सकें. चूंकि जम्मू-कश्मीर को अब एक पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है, इसलिए मुख्यमंत्री विधानसभा से हर निर्णय नहीं करवा पाएंगे, उन्हें एलजी यानी राष्ट्रपति के अनुमति की जरूरत होगी. इन हालात में उमर अब्दुल्ला को परेशानी हो सकती है, यही वजह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उन्हें यह सलाह दी है कि अगर उन्हें आधे राज्य को चलाने में परेशानी हो तो वे अरविंद केजरीवाल से सलाह ले सकते हैं. अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के उपराज्यपाल के बीच तनातनी की खबरें आम हैं. उमर अब्दुल्ला के साथ पांच मंत्रियों ने भी शपथ ली है, जिनके नाम हैं- सकीना मसूद (इटू), जावेद डार, जावेद राणा, सुरिंदर चौधरी और सतीश शर्मा. सुरिंदर चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया है.
किस तरह की राजनीति करता आया है अब्दुल्ला परिवार
उमर अब्दुल्ला का परिवार जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने का पक्षधर रहा है. चुनाव से पूर्ण भी नेशनल काॅन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने और आर्टिकल 370 की वापसी की बात कही थी. फारुख अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला आजाद कश्मीर की मांग करते रहे थे. उन्होंने महाराजा हरिसिंह के शासन का विरोध किया था और आजाद कश्मीर की वकालत की थी. भारत में कश्मीर के विलय के बाद वे जम्मू-कश्मीर के पहले प्रधानमंत्री बने थे. उनपर अलगाववादियों को शह देने का आरोप भी लगा था और वे इस आरोप में जेल भी गए. शेख अब्दुल्ला के परदादा हिंदू थे और उनका नाम बालमुकुंद कौल था. शेख अब्दुल्ला ने अपनी आत्मकथा आतिशे चिनार में इस बात का जिक्र किया है. बावजूद इसके उन्होंने आजाद कश्मीर की मांग की और इसके लिए आंदोलन भी किया. फारुक अब्दुल्ला भी कमोबेश कश्मीर के विशेष दर्जे की वकालत करते रहे हैं. उमर अब्दुल्ला की राजनीति भी कश्मीर से शुरू हुई है और उन्होंने कश्मीरी लोगों के हित को ध्यान में रखते हुए ही राजनीति की है, जबकि उन्होंने शादी एक हिंदू महिला पायल नाथ से की थी. लेकिन इस बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद जिस तरह उमर अब्दुल्ला ने नौशेरा के विधायक सुरिंदर चौधरी को उपमुख्यमंत्री बनाकर उनपर विश्वास जताया है वह उनकी बदल हुई राजनीति का परिचय दे रहा है. उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि वे अपनी सरकार को सबकी सरकार बनाना चाहते हैं, उनका उद्देश्य किसी खास वर्ग की सरकार का ठप्पा लगाना नहीं है. 2024 में हुए विधानसभा चुनावों में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने बढ़िया प्रदर्शन किया और 90 में से 42 सीटें जीतीं हैं. उनकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस को इस चुनाव में छह सीटों पर जीत हासिल हुई है.
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जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाना उमर की प्राथमिकता
2019 में जब आर्टिकल 370 को समाप्त कर दिया गया और जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया तो नेशनल काॅन्फ्रेंस ने इसका जमकर विरोध किया. उमर अब्दुल्ला ने आर्टिकल 370 की फिर से बहाली और प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का वादा करके चुनावी मैदान में ताल ठोका था. अब उनके सामने यह चुनौती है कि वे अपने वादे को पूरा करें. खासकर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का वादा वे पूर्ण करें. शपथ के बाद उमर ने यह कोशिश की है कि वे यह साबित करें कि उनकी सरकार आम जनता की सरकार है, लेकिन वे इसमें कितना सफल हो पाते हैं, यह समय बताएगा. उमर अब्दुल्ला का जन्म ब्रिटेन में हुआ है और उनकी मां एक ब्रिटिश महिला हैं, जो पेशे से नर्स थीं. वे यह नहीं चाहती थीं कि उमर राजनीति में आएं. 1998 में महज 28 साल की उम्र में उमर अब्दुल्ला ने लोकसभा का चुनाव जीता था और सबसे युवा सांसद बने थे.
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