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महामारी से तीन लोगों की मौत के बाद भी गीधा दलित बस्ती की हालत नारकीय

गंदगी के बीच जीवन जी रहे बस्ती के लोग, सफाई के नाम पर कुछ नहीं हो रहा

कोईलवर.

पिछले तीन दिनों से फैली महामारी और अबतक एक बच्चे समेत तीन लोगों की मौत के बाद भी प्रखंड के गीधा दलित बस्ती के लोग गंदगी और कचरे के बीच जीने को मजबूर हैं. गीधा मुसहर टोली में फैली महामारी में तीन लोगों की मौत के बाद भी स्थिति कुछ खास नियंत्रित नहीं है. बस्ती में दूर-दूर तक गंदगी का अंबार फैला हुआ है. नालियां बजबजा रही हैं. जानवरों के बीच दलित समुदाय के बच्चे नाले पर बैठ कर खाना खाते हैं. महामारी के दूसरे दिन बुधवार को आरा सदर अस्पताल के एसीएमओ कोईलवर पीएचसी के प्रभारी उमेश कुमार, सीएचएम, बीएचएम एवं स्वास्थ्यकर्मियों की टीम दोपहर डेढ़ बजे गीधा दलित बस्ती पहुंची. विगत तीन दिनों में तीन मौतों के बाद इलाके में चर्चाओं का बाजार गर्म है. स्थानीय लोग कई तरह की बातें बना रहे हैं. कोई इसे महामारी से जोड़ कर देख रहा है, तो किसी ने इसे फूड प्वाइजनिंग बताया. कइयों ने तो इसे दैवीय प्रकोप तक बता डाला. हालांकि अब स्थिति नियंत्रण में है. इस दौरान बात करते हुए एसीएमओ ने बताया कि महामारी की खबर मिलते ही स्वास्थ्य विभाग की टीम सक्रिय हो गयी है. मंगलवार को बस्ती के प्रभावित लोगों की स्वास्थ्य जांच की गयी है. इसके साथ ही आवश्यक दवाइयां भी दी गयी हैं. ज्यादा प्रभावित लोगों में से कुछ को सदर अस्पताल भेजा गया था, जो अब ठीक होकर घर आ चुके हैं. उन्होंने बताया कि फिलहाल 19 अक्टूबर तक रोस्टर वाइज स्वास्थ्यकर्मियों की ड्यूटी यहां लगायी गयी है. जरूरत पड़ने पर आगे भी कैंप किया जायेगा.

महामारी के बाद भी गंदगी कायम : इधर महामारी के बाद भी गीधा मुसहर टोला में गंदगी व्याप्त है. नरक के बीच रहने को लोग मजबूर हैं. स्वास्थ्य विभाग द्वारा मंगलवार को ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव किया गया था. स्थानीय स्तर पर सफाई व नाली उड़ाही समेत कोई भी कार्य नहीं कराया गया है. इस बाबत जानकारी लेने के लिए जब स्थानीय मुखिया से संपर्क किया गया तो वे अनुपलब्ध थे. पता करने पर पता चला कि वे पंचायत से बाहर हैं.

अबतक तीन की मौत, सवा सौ घरों में साढ़े छह सौ की आबादी : गीधा पंचायत के वार्ड 07 में मुसहर समुदाय के तकरीबन सवा सौ घर हैं, जिसमें साढ़े छह सौ लोग रहते हैं. इस बस्ती की सफाई, नाली उड़ाही, सड़क निर्माण समेत कोई भी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं. नलजल योजना का पानी सुबह शाम आता है. बाकी टाइम के लिए एकाध चापाकल हैं. ब्लीचिंग पाउडर छिटने के बाबत पूछने पर गांव की ही एक महिला सावित्री बताती हैं कि छह साल पहले महामारी फैला था तो ब्लीचिंग पावडर का छिड़काव हुआ था. उसके बाद फिर अब हुआ है. राजकुमार मांझी बताते हैं कि सड़क से ऊंची नाली बना दी गयी है, जिससे नाली का पानी सड़क पर गिरकर बजबजाता रहता है. आवारा जानवर इधर उधर घूमते हैं. गंदगी इतनी है कि आये दिन बीमारियां फैलती हैं.

तीन की मौत के बाद भी बीमारी पकड़ के बाहर : इधर एसीएमओ ने बताया कि शुरुआती लक्षण डायरिया के ही हैं. मृत महिला पहले से बीमार थी, जिसके शरीर में खून की कमी थी और शायद वह एनीमिया से ग्रसित थी. वहीं, मृतक के बारे में बताया गया है कि वह शराब पीकर घर आया था. मौत के पीछे कई तरह के कारण बताये जा रहे हैं. स्थानीय लोगों में कुछ ने बताया कि पंख सहित एक मुर्गे को आग में पकाया गया था, जिसे खाने के बाद कुछ लोगों की हालत बिगड़ गयी. वहीं, कुछ लोग इसे दैवीय प्रकोप बता रहे है. कई महिलाओं ने बताया कि देवी रूष्ट हो गयी हैं, जिसकी वजह से यह महामारी फैली है. हालांकि डॉक्टरों ने बताया कि डायरिया के शुरुआती लक्षण मानकर इलाज किया जा रहा है जिससे स्थिति नियंत्रण में है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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