Culture : हमारे देश में पेड़-पौधों को पूजने की परंपरा रही है. आज भी यह परंपरा जीवित है, परंतु आज इस परंपरा को केवल ढोया जा रहा है, मन से माना नहीं जा रहा. यदि माना जाता, तो वनोन्मूलन और पेड़ों को काटने से पहले कई बार सोचा जाता. पूर्वजों की तरह ही माना जाता कि पेड़ काटने से पाप लगता है. पेड़ों को न काटने के पीछे भले ही धार्मिक कारण को प्रमुख माना जाता है, परंतु इसके मूल में पेड़-पौधों की सुरक्षा व उनका संरक्षण ही है. अब जब बात पेड़-पौधों की चल ही रही है, तो आइए लगे हाथों हम यह भी जान लेते हैं कि हमारे देश में कितने तरह की वनस्पतियां पायी जाती हैं.
अनेक जलवायु क्षेत्रों में बंटा है भारत, कई दुर्लभ वनस्पतियां पायी जाती हैं यहां
हमारे देश में एक तरफ जहां अत्यधिक गर्मी पड़ती है, वहीं कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां अत्यधिक ठंड पड़ती है. ऐसी विविध जलवायु के कारण ही देश में अनेक प्रकार की वनस्पतियां पायी जाती हैं. इस तरह की जलवायु व इतनी विविध वनस्पतियां दूसरे देशों में बहुत कम देखने को मिलती हैं. जलवायु की विविधता के कारण भारत को आठ वनस्पति क्षेत्रों में बांटा जा सकता है- पश्चिमी हिमालय, पूर्वी हिमालय, असम, सिंधु नदी का मैदानी क्षेत्र, गंगा का मैदानी क्षेत्र, दक्कन, मालाबार और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह.
पश्चिमी हिमालय क्षेत्र : यह क्षेत्र कश्मीर से लेकर कुमाऊं तक फैला है. इस क्षेत्र के शीतोष्ण कटिबंधीय भाग (Temperate Zone), यानी मध्यम तापमान वाले क्षेत्र में चीड़, देवदार, शंकुधारी वृक्षों (कोनिफर) और चौड़ी पत्ती वाले शीतोष्ण वृक्षों के वन बहुतायत में पाये जाते हैं. इससे ऊपर के क्षेत्र में देवदार, नीले चीड़, सनोवर वृक्ष और श्वेत देवदार के जंगल हैं. अल्पाइन क्षेत्र, यानी पर्वतों का क्षेत्र, शीतोष्ण क्षेत्र की ऊपरी सीमा से 4,750 मीटर या इससे अधिक ऊंचाई तक फैला हुआ है. इस क्षेत्र में ऊंचे स्थानों पर श्वेत देवदार, श्वेत भोजपत्र और सदाबहार वृक्ष पाये जाते हैं.
पूर्वी हिमालय क्षेत्र : यह क्षेत्र सिक्किम से पूर्व की ओर शुरू होता है और इसके अंतर्गत दार्जिलिंग, कर्सियांग और उसके साथ लगे क्षेत्र आते हैं. इस शीतोष्ण क्षेत्र (Temperate Zone) में ओक, जयपत्र या कल्पवृक्ष, मेपल, बड़े फूलों वाला सदाबहार वृक्ष (rhododendrons) और एल्डर तथा बर्च के जंगल पाये जाते हैं. यहां कई शंकुधारी पेड़, जुनिपर और बौने विलो भी पाये जाते हैं.
असम क्षेत्र : इस क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र और सुरमा घाटियां आती हैं जिनमें सदाबहार जंगल हैं. बीच-बीच में घनी बांसों तथा लंबी घासों के झुरमुट हैं.
सिंधु नदी के मैदानी क्षेत्र : इस क्षेत्र में पंजाब, पश्चिमी राजस्थान और उत्तरी गुजरात के मैदान शामिल हैं. यह क्षेत्र शुष्क और गर्म, यानी dry and hot है और यहां प्राकृतिक वनस्पतियां मिलती हैं.
गंगा के मैदानी क्षेत्र : इस क्षेत्र के अधिकतर भाग जलोढ़ मैदान हैं और इनमें गेहूं, चावल और गन्ने की खेती होती है. इस क्षेत्र के केवल थोड़े से भाग में ही विभिन्न प्रकार के जंगल हैं.
दक्कन क्षेत्र : यह क्षेत्र भारतीय प्रायद्वीप की संपूर्ण पठारी भूमि से मिलकर बना है. यहां पतझड़ वाले वृक्षों के जंगलों से लेकर तरह-तरह की जंगली झाड़ियों के वन हैं.
मालाबार क्षेत्र : यह क्षेत्र प्रायद्वीप तट के साथ-साथ लगने वाली पहाड़ी तथा अधिक नमी वाली पट्टी है. इस क्षेत्र में घने जंगल हैं. इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण व्यापारिक फसलें जैसे नारियल, सुपारी, काली मिर्च, कॉफी और चाय, रबड़ तथा काजू की खेती भी होती है.
अंडमान क्षेत्र : अंडमान क्षेत्र में सदाबहार, मैंग्रोव, समुद्र तटीय और बाढ़ संबंधी (diluvial) वनों की अधिकता है.
कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक के हिमालयी क्षेत्र (नेपाल, सिक्किम, भूटान, नागालैंड) और दक्षिण प्रायद्वीप में क्षेत्रीय पर्वतीय श्रेणियों में ऐसे देशी पेड़-पौधों की अधिकता है, जो दुनिया में अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं हैं.
चालीस हजार से अधिक प्रजातियों का घर है अपना देश
वन संपदा की दृष्टि से भारत काफी संपन्न है. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार plant diversity, यानी पादप विविधता की दृष्टि से भारत का विश्व में दसवां और एशिया में चौथा स्थान है. भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण संस्था ने अब तक देश के लगभग 70 प्रतिशत भूभाग का सर्वेक्षण किया है और उसने अब तक पेड़-पौधों की 46,000 से अधिक प्रजातियों का पता लगाया है. वैस्कुलर फ्लोरा के अंतर्गत आने वाली 15 हजार प्रजातियां अपने यहां हैं.
कई प्रजातियों पर मंडरा रहा विलुप्ति का खतरा
भले ही भारत अनेक दुर्लभ वनस्पतियों का घर है परंतु कृषि, औद्योगिक और शहरी विकास के लिए वनों की कटाई के कारण अनेक भारतीय पौधे विलुप्त हो रहे हैं. देश के पौधों की लगभग 1,336 प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा है तथा लगभग 20 प्रजातियां 60 से 100 वर्षों के दौरान दिखाई ही नहीं दी हैं. इस बात की अत्यधिक संभावना है कि ये प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं.