यूं तो बिहार के जिस भी जिले में आप जाएंगे वहां की सुंदरता आपको मोह लेगी. अगर आप कभी किशनगंज जिले में जाएंगे तो वहां के चाय के बागान आपको मंत्र मुग्ध कर देगें. वहीं, भभुआ में मौजूद कैमूर हिल्स आपको अपनी तरफ बिना कहे खींच लेते है. लेकिन इन सबके बीच सूबे में एक जिला ऐसा भी है जिसकी खूबसूरती में कुछ भी कहना उसके साथ नाइंसाफी ही है. क्योंकि इस जिले को उसकी प्राकृतिक खूबसूरती की वजह से उसे बिहार का स्वर्ग भी कहा जाता है. आप इस जिले का महत्व इस बात से समझ सकते हैं कि ये जिला महात्मा गांधी की भी कर्मभूमि रही है. इतना ही नहीं बिहार का इलकौता टाइगर रिजर्व भी इसी जिले में मौजूद है.
चम्पा के पेड़ों से ढ़का हुआ है जिला
बिहार के तिरहुत प्रमंडल अंतर्गत में मौजूद पश्चिमी चंपारण भोजपुरी भाषी जिला है. ये जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है. चंपारण का नाम चंपा+अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्पा के पेड़ों से आच्छादित जंगल. बेतिया जिले का मुख्यालय शहर है. बिहार का यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशिष्ट स्थान रखता है. यह जिला, भारत और नेपाल की सीमा से लगा हुआ है. यह जिला उत्तर में नेपाल, दक्षिण में गोपालगंज, पश्चिम में उत्तर प्रदेश, और पूर्व में पूर्वी चंपारण की सीमाएं लगती हैं.
माता सीता की शरणस्थली
शास्त्रों के मुताबिक, 14 साल के वनवास के बाद जब माता सीता को भगवान श्रीराम ने समाज के कहने पर एक बार फिर से वनवास दिया तो उन्होंने इसी जिले के बाल्मिकीनगर राष्ट्रीय उद्यान के एक छोर पर महर्षि बाल्मिकी के आश्रम में आश्रय लिया था. माता सीता ने यहीं अपने ‘लव’ और ‘कुश’ दो पुत्रों को जन्म दिया था. महर्षि वाल्मिकी ने हिंदू महाकाव्य रामायण की रचना भी यहीं की थी. आश्रम के मनोरम परिवेश के पास ही गंडक नदी पर बनी बहुद्देशीय परियोजना है जहां १५ मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है और यहां से निकाली गयी नहरें चंपारण के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्से में सिंचाई की जाती है.
सूबे का इकलौता टाइगर रिजर्व
बता दें कि बिहार के कुल वन्य क्षेत्र का सबसे बड़ा हिस्सा पश्चिम चंपारण में है. बिहार का एकमात्र बाघ अभयारण्य 880 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैले बाल्मिकीनगर राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है और नेपाल के चितवन नेशनल पार्क से सटा है. बेतिया से 80 किलोमीटर तथा पटना से 295 किलोमीटर दूर स्थित इस वन्य जीव अभयारण्य में संरक्षित बाघ के अलावे काला हिरण, सांभर, चीतल, भालू, भेड़िया, तेंदुआ, नीलगाय, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, अजगर जैसे वन्य जीव पाए जाते हैं. राजकीय चितवन नेशनल पार्क से कभी कभी एकसिंगी गैंडा और जंगली भैंसा भी आ जाते हैं. इस वनक्षेत्र में साल, सीसम, सेमल, सागवान, जामुन, महुआ, तून, खैर, बेंत आदि महत्वपूर्ण लकड़ियां पाई जाती है.
महात्मा गांधी की कर्मभूमि
पश्चिमी चंपारण अपने ऐतिहासिक मंदिरों, बौद्ध स्तूपों, और प्रवासी पक्षियों के लिए भी जाना जाता है. इतना ही नहीं इस जिले का आजादी के आंदोलन में भी अहम योगदान रहा है. स्वतंत्रता आन्दोलन के समय चंपारण के ही एक रैयत राजकुमार शुक्ल के आमंत्रण पर महात्मा गांधी अप्रैल 1917 में मोतिहारी आए और नील की खेती से त्रस्त किसानों को उनका अधिकार दिलाया. गौनहा प्रखंड के भितहरवा गांव के एक छोटे से घर में ठहरकर महात्मा गांधी ने चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की थी. उस घर को आज भितहरवा आश्रम कहा जाता है. आश्रम से कुछ ही दूरी पर रामपुरवा में सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए दो स्तंभ है जो शीर्षरहित हैं. इन स्तंभों के ऊपर बने सिंह वाले शीर्ष को कोलकाता संग्रहालय में तथा वृषभ (सांढ) शीर्ष को दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा गया है.