BOKARO NEWS : बोकारो जिले के पेटरवार प्रखंड अंतर्गत पतकी पंचायत के सुदूरवर्ती गांव मिर्जापुर में रविवार को खोरठा भाषा संस्कृति सम्मेलन सह सेमिनार का आयोजन धारा संस्था बोकारो की ओर से किया गया. अध्यक्षता डॉ बीएन ओहदार एवं मंच का संचालन शांति भारत ने किया. सबसे पहले खोरठा भाषा के बीस दिवंगत साहित्यकारों के चित्र पर पुष्पार्चन कर श्रद्धांजलि दी गयी. झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों से आये खोरठा भाषा के वरिष्ठ साहित्यकारों व धनबाद, हजारीबाग व रांची के विश्वविद्यालयों के अधिकारी व प्रोफेसर ने जनजाति व क्षेत्रीय भाषाओं के नौ कलश पर रखे दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की. कार्यक्रम में डॉ दिनेश दिनमनी ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि माय कोरवा भाषा खोरठा में लोक कथा, लोक गीत, मुहावरा, नाटक, उपन्यास, कविता जीवनी, आलोचना, रिपोतार्ज आदि तीन सौ साल पहले से है, जबकि लिखित में 50 साल से अकादमी स्तर पर आठवां क्लास से एमए तक की पढ़ाई व शोध जारी है. खोरठा को द्वितीय राजभाषा में मान्यता मिली है, पर इसे संविधान की आठवीं सूची में शामिल करने की आवश्यकता है. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची के जनजातीय भाषा के को-ऑर्डिनेटर सह खोरठा भाषा के एचओडी डॉ बिनोद कुमार ने कहा कि चिंतन मनन कर साहित्यिक विचार से खोरठा की रचनाओं को लोगों के बीच में लाना है. खोरठा भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की आवश्यकता है. सार्थक व समर्थ भाषा खोरठा का मापदंड परिमार्जन, नियम, मनकीकरण, व्याकरण मे एकरूपता लाना होगा. क्षेत्रवाद भी समस्या है, समन्वय व मानकीकरण की बहुत जरूरत है. टेक्निकल कॉलेज व मेडिकल कॉलेज मे खोरठा की पढ़ाई होना चाहिए. खोरठा भाषा में कहानी, कविता उपन्यास नाटक, आत्मकथा की स्थिति अच्छी है और आगे भी अच्छी रहेगी. इनके अतिरिक्त डॉ गजाधर महतो प्रभाकर, बासुदेव महतो, खोरठा कोकिल सुकुमार, श्याम सुंदर महतो श्याम, इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी के चांसलर छोटू प्रसाद, डॉ मुकुंद प्रसाद, धनंजय प्रसाद, डॉ चंद्र प्रसाद, नेतलाल यादव, डॉ बीएन ओहदार, जीवन जगरनाथ, तारा क्रांति आदि ने संबोधित कर खोरठा भाषा की वर्तमान स्थिति एवं भविष्य के बारे विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला. शाम को खोरठा कवि सम्मेलन एवं रंगा रंग खोरठा गीत व झूमर का आयोजन किया गया. मौके पर विभिन्न खोरठा रचनाओं का वितरण किया गया. इस अवसर पर जिप सदस्य माला कुमारी, पंसस मनीषा कुमारी पूर्व मुखिया नारायण गंझु, श्याम सुंदर केवट रवि, संजय रजवार, नीलेश महाराज, उमाचरण रजवार सहित रांची, रामगढ़, हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, गोमो, गिरिडीह आदि के काफी संख्या साहित्यकार व ग्रामीण उपस्थित थे.
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