– जहरीली होने के बावजूद शराब निर्माण में माफिया कर रहे इस्तेमाल, औद्योगिक इकाइयों से हो रही लीकेज
औद्योगिक रसायन के रूप में इस्तेमाल होने वाला मेथेनॉल (मिथाइल अल्कोहल) शराबबंदी में बड़ी मुसीबत बन गयी है. मानव शरीर के लिए जहरीला होने के बावजूद माफिया तत्व अवैध ढंग से शराब निर्माण में इसका इस्तेमाल कर रहे हैं. राज्य में मेथेनॉल बनाने वाली कोई यूनिट नहीं है. ऐसे में रबर से लेकर परफ्यूम बनाने वाली औद्योगिक इकाइयां दूसरे राज्यों से इसका आयात कर रही हैं. इसको देखते हुए मेथेनॉल के लीकेज की संभावना लगातार बनी है. हूच ट्रेजेडी के अधिकांश मामलों में जांच के दौरान जहरीले पेय में मेथेनॉल के ही अंश मिले हैं.
इथेनॉल व मेथेनॉल के रंग-गंध में कोई अंतर नहीं
दरअसल देशी शराब के निर्माण में मोलासिस या इथेनॉल (इएनए) का इस्तेमाल होता है. मोलासिस के फरमेंटेशन के दौरान बाय प्रोडक्ट के तौर पर मेथेनॉल व इथाइल एसिटेट जैसी चीजें निकलती हैं. इथेनॉल व मेथेनॉल में सामान्यत: देखने पर कोई अंतर नहीं होता. दोनों रंगहीन और गंधहीन होते हैं. सिर्फ केमिकल इक्वेशन के आधार पर उनकी पहचान होती है. ऐसे में माफिया तत्वों के द्वारा अज्ञानता में मेथेनॉल का इस्तेमाल किये जाने से भी बड़ी संख्या में लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है और उनको शरीर की क्षति उठानी पड़ रही है.शरीर के संपर्क में आकर मेथेनॉल हो रहा खतरनाक
विशेषज्ञों के मुताबिक मेथेनॉल खुद जहरीला नहीं होता, लेकिन इसे पीने पर यह शरीर के अंदर फॉर्मिक एसिड बनाता है, जिसकी वजह से मौत होती है. इसकी तुलना में इथेनॉल ज्यादा अच्छे से डिहाइड्रेट करता है. इथेनॉल के इस्तेमाल से शरीर के अंदर एसिटिक एसिड बनता है जो शरीर को बना नुकसान किये बाहर निकल जाता है. हालांकि, दोनों का निश्चित मात्रा से अधिक इस्तेमाल हानिकारक है.नशे के लिए यूरिया तक हो रही मिलावट
डिस्ट्रीलरी में बनने वाली शराब के मुकाबले स्थानीय स्तर पर बनने वाली शराब स्वास्थ्य पर काफी खराब असर डालती है. डिस्टलरी में लगे अच्छे उपकरणों की वजह से उससे मेथेनॉल निकाल लिया जाता है, लेकिन गांव-देहात में स्थानीय स्तर पर अवैध ढंग से बनायी जाने वाली शराब में जहरीले तत्व रह जाते हैं. मिलावट करते समय तापमान आदि तकनीकी पक्षों का भी ध्यान नहीं रखा जाता. इसका प्रयोग शरीर के नर्वस सिस्टम, आंख की रोशनी व फेफड़ों पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं. अधिक नशे के लिए माफिया लोग यूरिया आदि की मिलावट भी कर देते हैं, जिससे यह पूरी तरह जहर बन जाता है.80 से 85 फीसदी तक मेथेनॉल के मिले अंश
हाल ही में सीवान, सारण और गोपालगंज में हुई हूच ट्रेजेडी की मद्यनिषेध विभाग ने जांच की. सैंपलों की जांच में पाया गया कि लोगों ने जिस पेय को शराब समझ कर पिया, उसमें 80 से 85 फीसदी तक मेथेनॉल का समावेश था, जबकि मेथेनॉल तो दूर इसके संशोधित अंश इथेनॉल की 0.0001 फीसदी अंश की मिलावट को ही मान्य करार दिया गया है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है