Indian Railways : लोग एक शहर से दूसरे शहर में जाने के लिए अक्सर ट्रेन का इस्तेमाल करते हैं. क्योंकि यह सस्ता और आरामदायक होता है. वहीं, रेलवे भी अपने यात्रियों की सुविधा के लिए एसी कोच में बेडरोल की सुविधा मुहैया कराती है. लेकिन क्या आप जानते है कि ट्रेन में मिलने वाले चादर और कंबल कितने दिनों पर धोया जाता है. अगर नहीं पता तो हाल ही में एक RTI यानी सूचना का अधिकार के जरिए इस सवाल का जवाब सामने आ गया है. जिसे जानकार आप चौंक जाएंगे.
इतने दिनों में धुला जाता है रेलवे का चादर और कंबल
अंग्रेजी अखबार द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने रेलवे के चादर और कंबल की सफाई को लेकर एक आरटीआई दाखिल किया था. जिस पर विभाग ने जवाब देते हुए बताया कि यात्रियों को दिया जाने वाला लिनन हर एक इस्तेमाल के बाद धोया जाता है. वहींं, ऊन के कंबलों को ‘महीने में कम से कम एक बार या दो बार धोया जाता है. यह इनके उपलब्ध होने और लॉजिस्टिक्स पर निर्भर करता है.’
जब तक बदबू न आए नहीं धुलते कंबल
लंबी दूरी की अलग-अलग ट्रेनों में काम करने वाले हाउसिंग स्टाफ के 20 सदस्यों ने अखबार को बताया कि कंबलों को महीने में सिर्फ एक बार धोया जाता है. जबकि ‘हर ट्रिप के बाद चादरों और पिलो कवर्स को बंडल में लॉन्ड्री के लिए दे देते हैं. कंबल के मामले में हम उन्हें लॉन्ड्री के लिए तब भेजते हैं, जब जब तक बदबू न आए या खाने का कोई दाग लगा हो.’
एक अन्य कर्मचारी ने अखबार को बताया, ‘इस बात कोई गारंटी नहीं है कि कंबल महीने में दो बार धोए जाते हैं. अधिकांश मामलों में हम कंबलों को धोने के लिए तभी देते हैं जब उनमें से बदबू, गीलापन आदि जैसी शिकायत होती है. अगर यात्री की तरफ से शिकायत की जाती है तो कुछ मामलों में हम तत्काल यह सुनिश्चित करते हैं कि साफ कंबल मुहैया कराई जाए.’
कंबल और चादर के लिए अलग से चार्ज करता है रेलवे
रिपोर्ट के मुताबिक, रेलवे की तरफ से दिए गए RTI के जवाब में बताया गया है, ‘यह सब रेल के किराये में शामिल होता है। गरीब रथ और दुरंतो जैसी ट्रेनों में टिकट बुक करने के साथ हर किट के हिसाब से चार्ज देकर बेडरोल हासिल किया जा सकता है।’