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चाइनीज सामानों से कड़ा मुकाबला कर रहे हैं कुंभकार

चाइनीज सामानों से कड़ा मुकाबला कर रहे हैं कुंभकार

दीपावली में होने वाली कमाई पर भी लगने लगा है ग्रहण पतरघट. मिट्टी के बर्तन, दीप, ढिबरी बनाने के लिए अपने पुश्तैनी धंधे से जुड़े कुम्हार जाति के लोगों को बाजारवाद की होड़ में इन दिनों चाइनीज सामानों से कड़ा मुकाबला करना पड़ रहा है. दशहरा, दीपावली, छठ पूजा सहित विभिन्न धार्मिक आयोजन व शादी समारोह के लिए उपयोगी सामानों को बनाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करने वाले कुंभकारों को बाजार में चाइनीज आइटमों के उपलब्ध रहने से भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. पहले दीपावली में सभी लोग मिट्टी के दीये जलाते थे. जिसके कारण कुंभकारों का जीवन बड़े आराम से चलता था. मांग कम होने से अब हालात ऐसे हो गये हैं कि साल में कम से कम एक बार दीपावली में होने वाली कमाई पर भी ग्रहण लगने लगा है. इधर हाल के दिनों से मोमबत्ती जलाने के साथ साथ ज्यादातर लोग चाइनीज इलेक्ट्रॉनिक सामानों से अपने घरों को सजाते हैं. बाजारों में चाइनीज सामान सस्तीं व खबसूरत होने के कारण खरीद तो लेते हैं, लेकिन इसके दुष्प्रभाव से अंजान बने रहते हैं. चाइनीज आइटमों की तुलना में देसी कलाकारों द्वारा मिट्टी से बनाये गये खिलौने और मूर्तियों की अब डिमांड काफी कम हो गयी है. मिट्टी के खिलौने के साथ-साथ दीप, कड़ाही, धूपदानी, घड़ा, सुराही सहित अन्य सामग्री बनाने के लिए एक तो मिट्टी भी अब बहुत मुश्किल से मिलती है ओर अगर मिल भी जाती है तो काफी महंगी तथा ऊंची कीमतों पर खरीदना पड़ता है. जिसके कारण क्षेत्र के सभी कुंभकार परिवारों के समक्ष भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गयी है. कम आय होने से देसी कलाकारों की यह जमात अभी भी गरीबी का दंश झेलने को विवश है. स्थानीय गोपाल प्रजापति, विपिन प्रजापति, नरेश प्रजापति सहित अन्य ने बताया कि मिट्टी की बनीं सामग्री की बाजार में इधर हाल के दिनों में मांग कम होने से हम सबों को बहुत समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. इसलिए लाचारी में अब नयी युवा पीढ़ी अपने पुश्तैनी धंधे में जाने के नाम पर ही भड़क जाती है. इस बाबत प्रखंड कुंभकार संघ के प्रखंड अध्यक्ष शिवशंकर प्रजापति ने बताया कि हम सब देसी कलाकार हैं. हम सब विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक उत्सवों के लिए देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का निर्माण कार्य करते हैं. लेकिन सरकार के द्वारा हम सबों को कोई सुविधा व सहयोग नहीं दिया जा रहा है. न हीं कोई जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है. सिर्फ मौखिक आश्वासन देकर बहलाने का काम किया जा रहा है.

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