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Rajmahal Vidhan Sabha: चुनाव प्रचार करने के लिए परमेश्वर मोदी ने का निकाला था अनूठा तरीका, साथ रखते थे सत्तू और मूड़ी

80 के दशक तक चुनाव मैदान में कभी बामफ्रंट से तो कभी निर्दलीय ताल ठोकने वाले परमेश्वर मोदी ने अपना चुनाव प्रचार या तो रिक्शा से करवाया या उनके प्रचार का मुख्य माध्यम बैलगाड़ी रहा.

Rajmahal Vidhan Sabha : आज भले ही चुनाव हाइटेक हो गए हों. चुनाव में हेलीकॉप्टर से लेकर फॉर्च्यूनर तक नजर आने लगे हों लेकिन एक समय था, जब बैलगाड़ी और रिक्शा चुनाव का मध्य हुआ करते थे. राजमहल विधानसभा क्षेत्र की अगर हम बात करें तो राजमहल विधानसभा क्षेत्र से लगातार चार बार अपनी किस्मत आजमाने वाले परमेश्वर मोदी के प्रचार का तरीका अनूठा रहा है.

निर्दलीय ताल ठोकते थे परमेश्वर मोदी

80 के दशक तक चुनाव मैदान में कभी बामफ्रंट से तो कभी निर्दलीय ताल ठोकने वाले परमेश्वर मोदी ने अपना चुनाव प्रचार या तो रिक्शा से करवाया या उनके प्रचार का मुख्य माध्यम बैलगाड़ी रहा. परमेश्वर मोदी के साथ काम करने वाले राजेंद्र शर्मा बताते हैं कि परमेश्वर मोदी के चुनाव का तरीका ही अलग था. वह प्रतिदिन सवेरे उठकर राजेंद्र शर्मा के आवास पर आधारित करते थे. वहां से यह दोनों बैलगाड़ी पर सवार होकर ग्रामीण क्षेत्र में निकल पड़ते थे.

खाने के लिए रखते थे सत्तू और चूड़ा

जहां ग्रामीणों से मिलते रहते और अपना चुनाव प्रचार करता है. इस बीच अगर भूख लग गयी तो साथ में सत्तू और चूड़ा मुड़ी का भी इंतजाम बैलगाड़ी पर ही रहता था. यही खाकर प्रचार करना और पूरे चुनाव तक लगभग सभी पंचायत और सभी गांव तक पहुंचाने का प्रयास बैलगाड़ी से ही होता था. राजेंद्र शर्मा बताते हैं कि आज भले ही जमाना हाईटेक हो गया हो परंतु उन दिनों का तरीका आज भी लोगों की याद को तारो ताजा कर देती है. आज के कार्यकर्ता महंगी लग्जरी गाड़ियां और सुविधा तलाशते हैं, तभी चुनाव प्रचार में जाते हैं.

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90 के दशक में कार्यकर्ता पूरी तरह थे समर्पित

लेकिन 90 के दशक तक में कार्यकर्ता पूरी तरह समर्पित होते थे और बिना किसी लालच के चुनाव प्रचार में खुल कर प्रत्याशी का समर्थन करते थे. श्री शर्मा बताते हैं कि आज ना तो प्रत्याशी अपने दल के प्रति वफादार होते हैं और ना ही समर्थक अपने प्रत्याशी के प्रति. उन्होंने बताया कि एक बार ये लोग ग्रामीण क्षेत्र में चुनाव प्रचार के लिए गये थे. संयोग से उसे दिन बैलगाड़ी पर खाने का सामान रखना भूल गये.

कार्यकर्ता के घर में खाई खिचड़ी

दोपहर में जब सभी को भूख लगी तो यह लोग ढूंढते हुए अपने एक कार्यकर्ता के घर पहुंचे. वहां पहुंचते-पहुंचते शाम हो गयी थी. चार लोग एक साथ थे. उन्होंने कार्यकर्ता से भोजन के प्रबंध की बात की तो कार्यकर्ता ने कहा कि भोजन बनाना पड़ेगा. तब कार्यकर्ता की मां ने खिचड़ी बनायी और खिलायी. उस समय हम लोग सुबह अल्पाहार करके घर से निकलते थे और फिर देर रात तक घर लौटते थे. कभी-कभी रात उधर गांव में ही काटनी पड़ती थी.

बैलों के पीठ पर चुनाव चिन्ह रहते थे

बैलगाड़ी को अच्छी तरह से सजाया जाता था. बैल की पीठ पर चुनाव चिन्ह विभिन्न रंगों से बना कर गाड़ी को पूर्ण रूप से प्रचार गाड़ी के रूप में बदल दिया जाता था. बैलों के गले में भी अतिरिक्त घुंघरू बांध दी जाती थी ताकि बेल के चलने से आवाज हो और लोगों को पता चल सके की प्रचार गाड़ी या प्रत्याशी गांव में आ रहे हैं.

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