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स्कूलों में बनायी जायेगी एंटी चाइल्ड बुलिंग कमेटी

स्कूल जाने वाले बच्चे के सामने होमवर्क, अच्छे मार्क्स लाने और परीक्षा देने जैसी चुनौतियां ही नहीं होती. इनके अलावा और भी कई चीजें हैं जो बच्चे को परेशान कर सकती हैं.

मोतिहारी.स्कूल जाने वाले बच्चे के सामने होमवर्क, अच्छे मार्क्स लाने और परीक्षा देने जैसी चुनौतियां ही नहीं होती. इनके अलावा और भी कई चीजें हैं जो बच्चे को परेशान कर सकती हैं. होमवर्क, परीक्षा आदि तो सकारात्मक चुनौतियां हैं जो बच्चे के भविष्य को संवारने में मदद करती हैं लेकिन बुली से पीड़ित होने की स्थिति इसके उलट उसका वर्तमान और भविष्य दोनों बिगाड़ सकती है. रफ्तार से भरे दौर में जिस तेजी से संवेदनाएं खत्म हो रही हैं वहां बुली करने वाले लोग और ऐसी स्थितियां अब पहले से और अधिक बिगड़े स्वरूप में सामने आ रही हैं. शरीर के आकार, रंग-रूप, आर्थिक या पारिवारिक स्थिति, आदि जैसे कई पहलू हैं जिनको लेकर बच्चे को बुली किया जा सकता है. बुली करना यानी सामान्य भाषा में समझें तो किसी को परेशान करना, सताना, प्रताड़ना देना या दुर्व्यवहार करना. स्कूलों में आजकल इसकी घटनाएं बढ़ रही हैं और परेशान करने के तरीके पहले की तुलना में अधिक हिंसक होते जा रहे हैं. इसलिए जरूरी है कि अगर बच्चा इसका शिकार हो रहा है तो उसको समय पर मदद मिले.

बाल संरक्षण आयोग ने पॉक्सो एक्ट के तहत स्कूलों को जारी किया दिशा निर्देश

ऐसे में अब जिले के स्कूलों में एंटी चाइल्ड बुलिंग कमेटी बनेगी. इसके लिए राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पॉक्सो एक्ट के तहत सभी स्कूलों को दिशा निर्देश जारी किया है. सभी स्कूलों को इसी वर्ष कमेटी बनानी है जो तीन स्तरों पर काम करेगी. पहला मोरल वैल्यू बताना. दूसरा अन्य बच्चों के साथ व्यवहार करना और तीसरा बुलिंग करने पर सजा मिलने की जानकारी देगी. इस कमेटी के तहत बुलिंग करने वाले बच्चों को सजा के तौर पर सेक्सन बदलना, डांटना, अभिभावक से शिकायत करना आदि का प्रावधान है. माध्यमिक और उच्च माध्यमिक स्कूलों में एंटी बुलिंग सेल का गठन के बाद इसकी जानकारी राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को देनी है. बाल अधिकार संरक्षण आयोग की मानें तो स्कूलों में 70 फीसदी किशोर बुलिंग के शिकार होते हैं. ऐसे बच्चे विभिन्न तरह के मानसिक तनाव में रहते हैं. इसका असर जीवनशैली के साथ शैक्षणिक माहौल पर होता है. वे डरे सहमे रहते हैं. उनके स्वभाव और व्यवहार दोनों में बदलाव हो जाता है. वे आम लोगों से कटने लगते हैं और उनका आत्मविश्वास भी कमजोर होने लगता है.

जिंदगियों में मशीनीकरण व वर्चुअल दुनिया की हुई है घुसपैठ

विभाग की माने तो जिस तेजी से हमारी जिंदगियों में मशीनीकरण और वर्चुअल दुनिया की घुसपैठ हुई है, उसी तेजी से लोगों में भावनाओं और संवेदनाओं के स्तर में भी कमी आई है. इसका सबसे बुरा पहलू छोटे बच्चों में बढ़ती हिंसक घटनाओं और उनके व्यवहार में आये नकारात्मक परिवर्तन के रूप में सामने आ रहा है. स्कूलों में छोटी सी किसी बात को लेकर बच्चों में मार-पीट और दुर्व्यवहार आम होते जा रहे हैं. इन पर विचार करने और ठोस कदम उठाने की जरूरत है.

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