गया. दो दशक पहले तक शहर व आसपास के इलाके में छठ घाट को लेकर सूर्यकुंड तालाब सबसे अधिक प्रसिद्ध था. यहां पर छठ पर्व में व्रती व श्रद्धालु लाखों की संख्या में अर्घ देने पहुंचते थे. यहां आसपास के ग्रामीण इलाकाें के लोग भी बड़ी संख्या में पहुंचते थे. भीड़ इतनी होती थी कि पुलिस व स्थानीय वाॅलेंटियर को नियंत्रण करने में काफी परेशानी होती थी. एक जगह से भीड़ को बांटने व लोगों को सहूलियत के अनुसार फल्गु नदी में कई जगहों पर घाट का निर्माण कराया गया. इसके बाद सूर्यकुंड घाट पर भीड़ कम आने लगी. 1955 से पहले से इस घाट का अस्तित्व बताया जाता है. इस तालाब के चारों ओर दीवारों पर मधुबनी पेंटिंग की गयी है. छठ के दौरान पूरे तालाब को लाइट से जगमगा दिया जाता है. इसके साथ ही रास्तों पर भी नगर निगम की ओर से विशेष सफाई करायी जाती है. ऐसे दीपावली के बाद से ही नगर निगम की ओर से इसकी सफाई व छठ पर्व को लेकर काम कराये जायेंगे. छठ के मौके पर इस जगह पर भीड़ नियंत्रित करना बहुत ही मुश्किल है. आसपास देखा जाये, तो दर्जनों घाट बन गये हैं. पितृपक्ष मेला के दौरान ही इस तालाब की सफाई व रंग-रोगन कराया गया है. ऐसे भी छठ से पहले नगर निगम की ओर से फिटकिरी व चूना डाल कर सफाई हर वर्ष करायी जाती है. यहां पर एसडीआरफ की तैनाती छठ पर्व को लेकर की जाती है. यहां पानी हर मौसम में ताजा रखने के लिए बोरिंग भी कराया गया है.
प्रमुख समस्याएं
गाड़ियों की पार्किंग की सुविधा नहींसंकीर्ण गलियां होने के चलते समस्याभीड़ नियंत्रण को लेकर होती है दिक्कत
आसपास में निकासी को लेकर स्थिति ठीक नहींडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है