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Vidur Niti: ज्यादा बोलने वाले लोग पर क्यों नहीं किया जाता विश्वास, जानें क्या कहते हैं महात्मा विदुर

Vidur Niti: महात्मा विदुर कहते हैं कि बहुत अधिक बोलने वाला व्यक्ति विश्वसनीय नहीं होता, इसका एक अर्थ यह भी है कि वे वाक्यों के जाल में फंसाकर धोखा देते हैं.

Vidur Niti: महाराज विदुर अपने समय के सर्वश्रेष्ठ मनोवैज्ञानिक थे जो मानव स्वभाव को बहुत अच्छी तरह से जानते थे. विदुर नीति, चाणक्य नीति, पंचतत्र की कथाएं, हितोपदेश की कथाएं पढ़कर व्यक्ति अपने सामने वाले व्यक्ति के हाव-भाव और बातचीत से उसका सही आकलन कर सकता है. महात्मा विदुर कहते हैं, ‘जिनकी जीभ कतरनी की तरह चलती है, वे कभी विश्वसनीय नहीं होते.

जीभ के बारे में विदुर जी का कथन दुनिया के सभी लोगों के लिए अक्षरशः सत्य है. जीभ कतरनी की तरह चलने का मतलब है बहुत अधिक बोलना और अगर गहराई में जाएं तो इसका अर्थ वाक्यों के जाल में फंसाना होगा. महात्मा विदुर कहते हैं कि बहुत अधिक बोलने वाला व्यक्ति विश्वसनीय नहीं होता, इसका एक अर्थ यह भी है कि वे वाक्यों के जाल में फंसाकर धोखा देते हैं.

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कम बोलना बुद्धिमानी की निशानी

दूसरा अर्थ यह भी है कि वे बहुत अधिक बोलकर और मूर्खतापूर्ण बातें करके लोगों को मुसीबत में फंसाते हैं. कम बोलना बुद्धिमानी की निशानी मानी जाती है, कम बुद्धि वाले या मूर्ख लोग अधिक बोलते हैं, अगर पागल व्यक्ति की बात करें तो वह दिन-रात बड़बड़ाता या बकवास करता रहता है. इस प्रकार महात्मा विदुर अपने ज्ञान से भरे संक्षिप्त कथनों के माध्यम से मनुष्य के अंतर्मन का बोध कराते हैं.

जो व्यक्ति कम बोलता है

विदुर नीति में कहा गया है कि जो व्यक्ति कम बोलता है, वह अपने शब्दों का चयन सोच-समझकर करता है, जिससे उसके शब्दों में गंभीरता और सच्चाई होती है. ऐसा व्यक्ति बुद्धिमान और विश्वसनीय माना जाता है. विदुर के अनुसार अधिक बोलने वाले व्यक्ति में इस गंभीरता और स्थिरता का अभाव हो सकता है, जिसके कारण वह विश्वसनीय नहीं लगता.

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ऐसे लोग दूसरों के मन में शत्रुता या ईर्ष्या की भावना पैदा करते हैं

विदुर नीति में कहा गया है कि अधिक बोलने वाले लोग अक्सर दूसरों के मन में शत्रुता या ईर्ष्या की भावना पैदा कर सकते हैं, उनके शब्द दूसरों का अपमान या उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे समाज में अशांति पैदा हो सकती है. इस प्रकार अधिक बोलने वाला व्यक्ति अपने शब्दों से दूसरों के साथ संबंध खराब कर सकता है. धर्म, अध्यात्म के क्षेत्र में वर्षों का अनुभव बताता है कि संत मौन रहते हैं, बुद्धिमान लोग बोलते हैं और मूर्ख लोग बिना वजह बहस करते हैं.

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