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असीम आस्था का केंद्र रसाढ़ गांव का दक्षिणेश्वर मां वन काली मंदिर

बनमनखी

महारानी लक्ष्मीवती ने सोना सुर्खियों से मंदिर का 1939 में कराया था निर्माण विजय साह, बनमनखी. बनमनखी अनुमंडल मुख्यालय से करीब 7 किलोमीटर दूर रसाढ़ गांव वार्ड नं 6 स्थित दक्षिणेश्वर मां वन काली असीम आस्था का केंद्र है. दक्षिणेश्वर मां वन काली की ख्याति दूर दूर तक फैली हुई है. इंडो नेपाल बार्डर से सटे कोशी-सीमांचल क्षेत्र में विख्यात है. दक्षिणेश्वर मां वन काली की शरण में आने वाले भक्त सच्चे दिल से जो मागंते हैं उन भक्तों की मुरादें अवश्य ही पूरी होती है. कहा जाता है कि दरभंगा के महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह की धर्मपत्नी महारानी लक्ष्मीवती का मायके रसाढ़ गांव में था.महारानी लक्ष्मीवती ने अपने मायके रसाढ़ में 1939 में दक्षिणेश्वर मां वन काली मंदिर का निर्माण कटिहार जिले के कारीगरों द्वारा सोना सुर्खियों से कराया था. 65 वर्षों से महारानी लक्ष्मीवती देवी के मायके के रिश्तेदार पूजा पाठ करते आ रहे हैं. यहां कोशी सीमांचल क्षेत्र ही नहीं देश विदेश के भक्त यहां श्रद्धा के साथ मां काली की पूजा पाठ करने आते हैं. महारानी लक्ष्मीवती देवी का रिश्तेदार बद्रीनाथ झा,अमरनाथ मिश्र ने बताया कि दरभंगा के महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह के निधन के बाद महारानी लक्ष्मीवती देवी को रात में साक्षात मां काली ने दर्शन दिया था. दर्शन देकर मां काली ने कहा कि गांव के कुछ दूरी पर वन में पीपल वृक्ष के नीचे खुले आसमान में रहती हूं. वहां तुम्हें मेरी उपस्थिति होने और पूजा पाठ आदि की सभी चीजें मिल जाएगी. तुम हमें स्थापित करो. लोगों का कल्याण होगी. महारानी मां काली का दर्शन पाकर बताए हुए जगह पर जाने की जिज्ञासा बढ़ गई. महारानी लक्ष्मीवती देवी दरभंगा से अपने सिपाहियों के साथ उस जगह पहुंची जहां सपनों में आकर कहा था. वन में पीपल वृक्ष के नीचे मां काली की पूजा पाठ आदि सामान मौजूद था. इसलिए दक्षिणेश्वर काली का नाम मां वन काली पड़ा. यहां मां भगवती प्रत्यक्ष रूप से विराजमान है. शिलापट पर दोहा में दर्ज है इतिहास दक्षिणेश्वर मां वन काली मंदिर में लगे दरभंगा के महाराजाधिराज के जमाने के शिलापट में दोहा के रूप में इसका इतिहास अंकित है. कहा गया कि पांच सौ वर्ष पहले कोशी की विभिषिका से त्रस्त होकर दो भाई रसाढ़ गांव रहने के लिए आए थे. दोनों भाई मिथिलांचल के एकहरे रूचोल ग्राम के रहने वाले थे. हरिश्वर मिश्र और टेकमनी ठाकुर गांव के विलिनियां नदी के तट पर रहने लगे थे. वहीं पीपल का वृक्ष के नीचे कुल देवी के रूप में मां काली का पूजा पाठ करने लगे. मां काली की कृपा से हरिश्वर मिश्र को लक्ष्मी रूपी बेटी का जन्म हुआ.हरिश्वर मिश्र ने बेटी का नाम लक्ष्मीवती रखा. 1930 में लक्ष्मीवती का विवाह दरभंगा के महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह के साथ हुआ था. सोने की मूर्ति अंग्रेज ले गये ग्रामीणों ने बताया कि शुरुआती दौर में इस मंदिर में सोने की मां काली की मूर्ति हुआ करती थी. बताया कि 1944- 45 में अंग्रेजों सोने की मूर्ति अपने साथ लेकर चले गए. तब से आज तक मां वन काली मूर्ति की प्रतिमा स्थापित कर पूजा अर्चना की जाती है . मिला राजकीय महोत्सव का दर्जा रसाढ़ गांव का लाल व स्थानीय विधायक कृष्ण कुमार ऋषि ने तत्कालीन बिहार सरकार के कला संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री रहते रसाढ गांव स्थित दक्षिणेश्वर मां वन काली को 2023 में राजकीय महोत्सव दर्जा दिलाया. फोटो परिचय – 25 पूर्णिया 18- दक्षिणेश्वर मां वन काली मंदिर 19- .शिलापट में अंकित कथाएं

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