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परदेसियों के दीपावली व छठ महापर्व पर घर लौटने की कठिन हुई डगर

त्योहारों का मौसम अब अपनी परवान पर आ चुका है और शारदीय नवरात्र बीतने के बाद धनतेरस व प्रकाश पर्व दीपावली और इसके सात दिन बाद लोक आस्था का महापर्व कार्तिक छठ सामने है

भभुआ सदर. त्योहारों का मौसम अब अपनी परवान पर आ चुका है और शारदीय नवरात्र बीतने के बाद धनतेरस व प्रकाश पर्व दीपावली और इसके सात दिन बाद लोक आस्था का महापर्व कार्तिक छठ सामने है. इन त्योहारों की घर-घर तैयारी चल रही है. इसे लेकर शहर से लेकर गांव तक में लोगों के बीच गजब का उत्साह है. परदेशी घर लौटने को लेकर उत्साहित हैं. एक तरफ जगह-जगह जहां बड़े त्योहारों को लेकर उत्साह है, वहीं दूसरी ओर इस अवसर पर परदेसी पूतों के आगमन को लेकर लोगों का मन अभी से प्रफुल्लित नजर आ रहा है. लेकिन, इस बार भी दीपावली और छठ पूजा पर्व पर घर लौटना किसी चुनौती से कम नहीं है. दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद सहित महानगरों से पूर्वांचल की तरफ रुख करने वाली ट्रेनों से लोगों को घर लौटने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है. स्टेशन पर टिकट की मारामारी शुरू हो चुकी है. सबसे अधिक परेशानी दिल्ली के अलावा सूरत, अहमदाबाद, मुंबई, पुणे, बेंगलुरू जैसे बड़े शहरों के लिए है. रविवार को सूरत से लौटे छावनी मुहल्ला निवासी सुनील सिंह ने आपबीती सुनाते हुए बताया कि वह सूरत स्थित कपड़ा मिल में काम करता है. उन्हें सपरिवार घर लौटना था, लेकिन छह महीने पहले से ट्रेन में आरक्षण नहीं मिला. मजबूरन वह सपरिवार जनरल कम्पार्टमेंट में जैसे-तैसे घर लौट पाये है, इसके लिए उन्हें दो दिन तक सूरत रेलवे स्टेशन पर गुजारना पड़ा, तब जाकर वह तीसरे दिन किसी प्रकार से ट्रेन में घुस पाया. = बर्थ फूल होेने व वेटिंग टिकट नहीं मिलने से बढ़ी परेशानी दरअसल, दीपावली और छठ महापर्व के समय परदेसियों के आगमन को लेकर ट्रेनों में होली से भी काफी ज्यादा भीड़ बढ़ जाती है. यहां इस क्षेत्र के लोगों के लिए विशेषकर लंबे सफर के लिए ट्रेन ही एक मात्र सर्वसुलभ साधन है. अब एक साथ आगमन को लेकर ट्रेनों में आरक्षण उपलब्ध नहीं है और काफी पहले से ही सारे बर्थ बुक हो चुके हैं. लंबी दूरी की सभी ट्रेनों में बर्थ लगभग फूल चल रही है. एक माह से अधिक समय पहले से ही नो रूम का बोर्ड दिल्ली, मुंबई, सूरत और हैदराबाद से आने वाली कई प्रमुख गाड़ियों में लटका हुआ है. वहीं, अब ट्रेनों में वेटिंग टिकट नहीं मिलने से भी समस्या काफी विकट हो गयी है. = परिजनों को अपनों के आने का रहता हैं इंतजार दरअसल, दशहरा के बाद दीपावली और छठ में परदेश कमाने गये लोग अपने घर लौटते हैं, इन बड़े त्योहारों में घर गांव में भी वृद्ध मां-बाप सहित अपने एक ओर जहां अपनी बहू-बेटी के इस मौके पर आने को लेकर हर्षित नजर आते हैं, वहीं दूसरी ओर नाती-पोतों के आगमन का भी उन्हें बेसब्री से इंतजार रहता है. हालांकि, परदेसी पूतों को इस त्योहार के मौसम में अपनी जन्मभूमि वापस आना मुश्किल लग रहा है. कारण आगमन का सहज तथा मुख्य रूप से एक मात्र साधन ट्रेन में आरक्षण उपलब्ध नहीं है. जिन लोगों को अभी तक आरक्षण नहीं मिल सका है, वे काफी परेशान हैं. वैसे पहले से आरक्षण करा चुके लोग इस चिंता से निश्चिंत हैं. रेलवे ने इसके लिए पर्व त्योहार के मद्देनजर विशेष ट्रेनें तो दी हैं, लेकिन उसमें भी अधिकतर फुल हो चुके हैं या फिर ऐसे ट्रेनों की जानकारी ही परदेशियों को नहीं हो पा रही है. लिहाजा घर लौटने के लिए जो भी ट्रेन मिल रही है, उसके फर्श पर बैठकर या लटक कर जैसे-तैसे आने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं है. वैसे भी अपनों से मिलने और अपनी जन्मभूमि पर पहुंचने का एकमात्र मौका परदेशियों को होली, दशहरा और छठ पर ही मिलता है और लोग जैसे भी हो घर लौटने का प्रयास करते हैं. = छठ पर अपने गांव-शहर लौटते हैं परदेसी कैमूर जिले का शायद ही कोई ऐसा परिवार हैं, जिसके कम से कम एक सदस्य बाहर नहीं रहते हो. उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र के प्राय: सभी परिवार के सदस्य बाहर रहते हैं. कोई रोजी-रोटी के लिए बाहर गया हुआ है, तो कोई पढ़ाई लिखाई के लिए. कोई निजी तो कोई सरकारी नौकरी की वजह से परदेसी बना हुआ है. इस क्षेत्र में साल में दो अवसर ऐसे हैं जिस मौके पर परदेस रहनेवाले वापस अपने गांव लौटते हैं. इसमें होली के बाद दूसरा मौका यही है. यानी दुर्गापूजा, दीपावली व छठ. इन्हीं दो अवसर पर गांव अपने परदेसी पूतों से गुलजार होते हैं. देश और विदेश में रहनेवालों के फासले भी इन्हीं मौके पर मिटते हैं. एक-दूसरे से भेंट होती है. इस इलाके में अधिकांश लोग दुर्गापूजा पर घर आते हैं और इसके बाद छठ पूजन के पश्चात ही वापस लौटते हैं.

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