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15 नवंबर से शुरू होगी विश्व प्रसिद्ध गढ़ी माई मेला

नेपाल के सीमावर्ती बारा जिला मुख्यालय कलैया से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर गढ़ीमाई का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है.

मनोज कुमार गुप्ता, रक्सौल. नेपाल के सीमावर्ती बारा जिला मुख्यालय कलैया से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर गढ़ीमाई का ऐतिहासिक मंदिर स्थित है. शक्तिपीठ के साथ-साथ मन्नतों को पूरा करने वाली माता के रूप में प्रख्यात गढ़ीमाई के मंदिर में हर पांच साल पर मेला का आयोजन किया जाता है, जिसमें नेपाल के साथ-साथ भारत और विश्व के कई देशों से लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते है. गढ़ीमाई का पंच वर्षीय मेला इस साल आयोजित होना है. मेला आयोजन को लेकर तैयारियां अंतिम चरण में है. 2019 में आयोजित हुए मेले के आंकड़े को देखते हुए मेला समिति इस बार एक माह के अंदर पचास लाख से अधिक भक्तों के पहुंचने की उम्मीद कर रही है. एक आंकड़ा बढ़ भी सकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए यहां महागढ़ीमाई नगरपालिका के द्वारा तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है. महागढ़ीमाई नगरपालिका के मेयर उपेंद्र यादव के नेतृत्व में तैयारियों को फाइनल टच दिया जा रहा है. उन्होंने बताया कि मेला में 70 प्रतिशत से अधिक भक्त भारत से आते है. नेपाल के मधेश प्रदेश के साथ-साथ पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, शिवहर, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, वैशाली, बगहा, गोरखपुर के अलावे कई जगह से भक्त यहां मेला में आते है. मेला के दौरान कलैया से ही लोगों की भीड़ दिखती है, वहीं बॉर्डर के इलाके में वाहनों से लोगों की भारी भीड़ नेपाल के तरफ जाते हुए दिखायी देती है.

15 नवंबर से ही लग जायेगा मेला

पांच साल पर लगने वाले गढ़ीमाई मेला की शुरूआत 15 नवंबर के आसपास से हो जायेगी. हालांकि औपचारिक तौर पर मेला का आरंभ 2 दिसंबर से होगा. 8 दिसंबर से 10 दिसंबर के बीच विशेष पूजा होगी और इसी दौरान बलिदान दिया जायेगा. विशेष पूजा के दौरान लकड़ी के घर्षण से अग्नि प्रकट होती है, इसके बाद बलिदान की शुरूआत होती है. विशेष पूजा के बाद, 15 दिसंबर को मेले का समापन होगा. वैसे यहां मेला में मकर संक्रांति तक लोग आते रहते है.

बलि के लिए विश्व प्रसिद्ध है मेला

पूरे एशिया महादेश में पशुबलि के लिए गढ़ीमाई का मेला प्रसिद्ध है. मन्नत पूरी होने पर भक्त यहां अपने मन्नत के अनुसार पशु की बलि चढ़ाते है. बलि के साथ-साथ कुछ लोग पशुओं को मेले के सिवान में लाकर छोड़ भी जाते है. इसके अलावा परेवा उड़ाने की भी मान्यता है. जिस भी भक्त की जैसी मन्नत होती है, पांच साल पर लगने वाले इस मेले में आकर अपनी मन्नत के अनुसार प्रसाद मां को अर्पण करते हैं.

20 किलोमीटर के दायरे में लगता है मेला

गढ़ीमाई मेला आयोजन मूल समिति के अध्यक्ष मेयर उपेन्द्र यादव ने बताया कि जो भी भक्त यहां मेला के दौरान आयेंगे, उनकी पूरी सुरक्षा, रहने और शुद्ध पेयजल की व्यवस्था समिति के द्वारा की जा रही है. चिन्हित जगहों पर टंकी के साथ समरसेबुल पंप लगाया जा रहा है ताकि लोगों को परेशानी न हो. नेपाल पुलिस, नेपाल सशस्त्र पुलिस के साथ-साथ नगर पुलिस और स्वयं सेवकों की तैनाती की जा रही है ताकि भक्तों को किसी तरह की सुरक्षा संबंधी परेशानी न हो. अस्थायी टेंट भी बनवाए जा रहे है जहां पर लोग आराम से रह सकते है, इसके अलावा ठंड के मौसम को देखते हुए जगह-जगह पर अलाव की भी व्यवस्था कराने का निर्णय लिया गया है. भारत के तरफ से आने वाले श्रद्धालुओं के वाहन को मेला तक आने में किसी तरह की परेशानी नहीं होगी, केवल इंट्री पास लेकर वाहन आ सकते है.

रक्सौल से 51 किलोमीटर है दूरी

गढ़ीमाई मंदिर की रक्सौल से दूरी 51 किलोमीटर है. रक्सौल-वीरगंज-कलैया होकर बरियापुर में गढ़ीमाई मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. वहीं दूसरे भारत के नजदीकी रेलवे स्टेशन आदापुर से गढ़ीमाई मंदिर की दूरी 39 किलोमीटर है, यहां से मटिअरवा बॉर्डर के रास्ते गढ़ीमाई मंदिर तक पहुंचा जा सकता है.

मेला में आने वाले श्रद्धालुओं की हर सुविधा का ख्याल रखने का प्रयास हमलोग कर रहे है. व्यवस्था में किसी तरह की कमी नहीं रहने दी जायेगी. जो भी भक्त मेले के दौरान यहां आयेगें, उनकी पूरी सुरक्षा की व्यवस्था की जा रही है.

उपेन्द्र यादव, मेयर महागढ़ीमाई नगरपालिका, नेपाल

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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