पीरीबाजार. भारत वर्ष में दीपों का त्योहार दिवाली बड़े धूमधाम से मनायी जाती है. यहां देशभर के लोगों के साथ-साथ अन्य कई धर्मों के लोग भी दीपावली का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं. दीपावली के इस पर्व पर घरों में लोग मिट्टी के दीपक जलाते हैं, भगवान राम के अयोध्या वापसी की खुशी में यह त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाने की परंपरा चली आ रही है लेकिन, गुजरते वक्त व आधुनिक जमाने के साथ इस त्योहार को मनाने का तरीका भी बदलता गया. आधुनिकता में हम सबने अपनी पौराणिक परंपरा को छोड़कर दीपावली पर बिजली के लाइटिंग के साथ तेज ध्वनि वाले पटाखे फोड़ने शुरू कर दिये. इससे एक तरफ मिट्टी के कारोबार से जुड़े कुंभकार के घरों में अंधेरा रहने लगा, तो ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलने वाले पटाखों को अपनाकर लोग अपनी सांसों को ही खतरे में डाल रहे हैं. इधर, दीपावली पर्व निकट देख लोगों को जागरूक करने के लिए लोगों का संकल्प है कि परिवार, विद्यालय द्वारा पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक अभियान आओ दीप जलायें, पर्यावरण बचायें का नारा के तहत लोगों में जागरूकता फैलायें.
परंपरा व पर्यावरण के संरक्षण के लिए हम मिट्टी के दीये जलायेंगे. इनसे कोई प्रदूषण नहीं होता, जबकि कृत्रिम रोशनी आंखों और त्वचा के लिए हानिकारक होती है. मिट्टी के दीये की रोशनी आंखों को आराम पहुंचाती है. मिट्टी के दीये हमारी संस्कृति का एक अहम अंग हैं. दिवाली पर इसे जलाकर हम अपनी परंपराओं को याद रखते हैं, साथ ही इससे पर्यावरण की सुरक्षा होती है.जेवा जाहिद, शिक्षिका, प्राथमिक विद्यालय, बंगाली बांध
आधुनिकता के दौर में दीपोत्सव पर मिट्टी की दीये जलाने की परंपरा विलुप्त होती जा रही है, जिसे हम सबको बचाने की जरूरत है. कृत्रिम रोशनी व पटाखों से पर्यावरण पर गलत प्रभाव पड़ने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता है. पर्यावरण को बचाने के लिए जरूरी है कि आमजन दीपावली पर मिट्टी के दीये जलायें और पटाखे नहीं जलाने का संकल्प लें.दिनेश सिंह, सेवानिवृत शिक्षक
इस दीपावली सिर्फ मिट्टी के दीये जलायें, तभी पर्यावरण बचाने में हम कामयाब होंगे. मिट्टी के दीपक जलाने से सुखद शांति की अनुभूति होती है. घरों में शांति और अपनापन के एहसास के लिए इस बार सभी लोग दीपावली पर मिट्टी के दीये जलायें और दूसरे को भी इसके लिए प्रेरित करें.
ममता देवी, गृहिणी
सदियों से दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीये जलते आ रहे हैं. पूरे परिवार के साथ इस बार हम सब दीपावली में सिर्फ मिट्टी के दीये ही जलायेंगे और दूसरे को भी प्रेरित करेंगे. दीये तीसी व तील के तेल से जलायेंगे, इससे एक तरफ प्रकाश मिलता है तो दूसरे तरफ प्रदूषण से भी रक्षा होती है. किसी भी कीमत पर हम पटाखे नहीं छोड़ेंगे और हरित दिवाली मनायेंगे.आनंदी उपाध्याय, समाजसेवी
बदलते दौर में दीपावली पर अपने घरों को बिजली के झालरों से रोशन करते हैं, इससे बिजली की बरबादी होती है. झालर का उपयोग कर हम सब अपने इलाके में बेरोजगारी और गंदगी बढ़ा रहे हैं. लाइट का उपयोग करने से मिट्टी के दीये बनाने वाले बेरोजगार होते जा रहे और साथ ही हमारा पर्यावरण भी दूषित हो रहा है.कन्हैया जी, समाजसेवी
दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने से पर्यावरण संरक्षण के साथ किट पतंगों व हानिकारक कीटों का नाश होता है, इससे बिजली की भी बरबादी नहीं होती है. वर्षा पुरानी परंपरा जो वैज्ञानिक रूप से भी उचित है, उसे हम सबको सहेजने की जरूरत है. साथ ही पर्यावरण की रक्षा के लिए किसी भी कीमत पर हम पटाखे नहीं छोड़ेंगे और हरित दिवाली मनायेंगे.
अशोक कुमार, प्रधानाध्यापक, लहसोरवाB
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