मोरवा : प्रखंड क्षेत्र में धान की खरीदारी शुरू होने की घोषणा होते ही पैक्सों की खेल सामने आना शुरू हो गया है. खेत में धान की कटनी अभी शुरू भी नहीं हो पायी है. वहीं, कागज पर खरीदारी देखने को मिलने लगी है. सबसे ज्यादा गड़बड़ी वैसे पंचायत में देखी जा रही है. जहां वास्तविक किसान के बदले बटाईदार या भूमिहीनों से हर साल धान की खरीदारी होने की शिकायत मिलती रही है. किसानों के द्वारा अब तक धान तैयार नहीं किया गया है. लेकिन, बड़े पैमाने पर कागजी घोड़ा दौड़ने लगा है. जैसा कि हर बार होता आया है. पैक्सों की नजर वैसे किसानों पर टिकी है, जो अपनी क्षमता से ज्यादा धान की सप्लाई पैक्सों को करते आये हैं. बताया जाता है कि वैसे किसने की संख्या बहुत ज्यादा है, जिनके पास जमीन तो नहीं है. लेकिन, धान की उपज और बिक्री सैकड़ों क्विंटल में दिखाई जाती है. इस बाबत कई पंचायत के वास्तविक किसानों के द्वारा बताया गया कि धान की उपज इस बार अन्य साल की वनस्पति काफी खराब है. लेकिन, अभी तैयार होने में काम से कम एक महीने का समय लगेगा. एक नवंबर से ही प्रखंड क्षेत्र में धान की खरीदारी की बात की जा रही है. ऐसे में व्यापक गड़बडी का मामला सामने आता नजर आ रहा है. पैक्सों के द्वारा वैसे किसानों से संपर्क किया जा रहा है. जिससे हर साल पैक्स बड़ी मात्रा में कागज पर ध्यान खरीदती रही है. प्रखंड क्षेत्र में करीब 10,000 एकड़ में धान की खेती हुई है. इसमें ठेका व बटाईदार किसानों की संख्या काफी कम बताई जाती है. लेकिन, पैक्सों में जिन किसानों के नाम सर्वाधिक बेचे जाने वाले में सामने आते हैं. उनमें उन्हीं किसानों का नाम दर्ज है, जिनके पास जमीन नहीं है. हर साल पैक्सों को धान की खरीदारी करने के लिए कैश क्रेडिट की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है.
वास्तविक किसान इससे रह जाते हैं वंचित
48 घंटे में ही किसानों के खाते में भुगतान की बात बताई जाती है. लेकिन, वास्तविक किसान इससे वंचित रह जाते हैं और कागजी किसानों से पैक्सों का टारगेट पूरा कर लिया जाता है. विगत कई सालों में ऐसे कई मामले सामने आये हैं जब वास्तविक किसानों के दरवाजे पर धान का ढेर लगा रहा और पैक्सों के द्वारा खरीदारी बंद कर दी गई. पैक्सों के द्वारा बताया गया कि उनका लक्ष्य पूरा हो चुका है. वैसे इस साल बिचौलिए भी पैक्सों से पहले ही हावी है. किसानों को एडवांस बुकिंग कर धान खरीदारी की कवायद शुरू कर दी गई है. किसानों का कहना है कि नयी फसल लगाने के लिए उन्हें पैसों की दरकार है. ऐसे में फसल में देरी होने से अगली फसल की रोपने में विलंब हो जायेगा. इसको लेकर बिचौलिया के माध्यम से ही धान बेचकर खेती की जायेगी. मोरवा के किसान धर्मेंद्र कुमार ने बताया कि हर साल बड़े पैमाने पर ऐसी गड़बड़ी की शिकायत प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी से लेकर जिला सहकारिता पदाधिकारी तक की जाती है. लेकिन, उस पर ध्यान नहीं दिया जाता. यही कारण है कि पैक्सों के द्वारा लगातार फर्जी किसानों से धान खरीदी का मामला तेज होता जा रहा है. वास्तविक किसान सरकारी अनुदान की राशि से वंचित हो रहे हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है