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जियसु रे मोरे भइया, जियअ भइया लाख बरिश हो ना…

भाई दूज के दिन बहनें तड़के चार बजे उठ जाती हैं और सबसे पहले सूप से दरिद्र को खदेड़ती हैं.

राज्यभर में धूमधाम से मना भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक पर्व

प्रशांत चतुर्वेदी, कोलकाता

भाई दूज और रक्षाबंधन दोनों ही भाई-बहनों के पवित्र रिश्ते को दर्शाने वाले पर्व हैं. लेकिन दोनों के विधि-विधान में थोड़ी पृथकता है. रक्षाबंधन में जहां बहन अपने भाई की कलाई पर रेशम की डोर बांध अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करती है, वहीं भाई दूज में वह अपने भाई के दीर्घायु होने की कामना करती है. भाई दूज के दिन बहनें तड़के चार बजे उठ जाती हैं और सबसे पहले सूप से दरिद्र को खदेड़ती हैं. इसके बाद उक्त सूप को घर से बाहर ले जाकर जला देती हैं. फिर स्नान कर पकवान बनाने में जुट जाती हैं. इस विशेष दिन के व्यंजन में गोझा, दाल पूड़ी, रसियाव का विशेष महत्व होता है.

यह कार्य संपन्न होने के बाद बहनें पूजन विधि में जुट जाती हैं. सर्वप्रथम रेंगनी के कांट अपनी जीभ में चुभो कर भाई को श्राप देती हैं. फिर लोकगीतों को गाते हुए उस जगह की गोबर से लिपाई करती हैं, जहां पूजा करनी होती है. लिपाई के बाद गोबर से राजा-रानी, उनकी दो दासियां (चेरिया-लौड़ियां), जांत, ओखल, सिलवट, लोढ़ा, मूसल, सांप, गोजर, बिच्छू, चूल्हा, बर्तन आदि की कलाकृत्तियां बनाती हैं. फिर इन कलाकृतियों पर हांडी रख उसे मूसल से कूटती हैं. इस दौरान लोकगीत गाती हैं, मसलन- चलले कवन भइया हेरिया, कवन बहिना देली आशीष हो राम…, जियसु रे मोरे भइया, जियअ भइया लाख बरिश हो ना…

गोधन(गोवर्धन)की कुटाई के बाद एक बहन मूसल पर पानी डालती है, जिसे अन्य बहनें अपने-अपने बर्तन में बटोरती हैं. यह पानी पीने के वक्त पूछा जाता है-का पियतारू? बहन कहती है- आंवरा-भांवरा के रक्त. जस-जस सरपनी, तस-तस आवो बाल, आंवरा-भांवरा के लागो जार. पानी पीने के बाद बहनें अपने भाई को श्रापमुक्त कर आजीवन निरोग एवं दीर्घायु होने का आशीर्वाद देती हैं.

इसके बाद सभी बहनें मिलकर कथाएं (अमावसा के रात में परुआ के दिन ह…, राजा की बिटिया, भाट की बिटिया…) सुनती हैं. इसके बाद गोझा-रसियाव (अमर पीठा) खाकर व्रत का पारण करती हैं. फिर भाई को रोली-दही-चावल का टीका लगा आरती करती हैं और पांच चने निगलवा मिठाई खिलाती हैं. इसके साथ ही भाई-बहन का यह पर्व संपन्न होता है.

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