23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

छठ पर रोने वाला हूं , शूटिंग की वजह से घर नहीं जा पाऊंगा : चन्दन रॉय 

पंचायत फेम अभिनेता चन्दन रॉय कहते हैं कि छठ पूजा हम बिहारियों के लिए एक इमोशन है। छठ की धुन सुनकर ही एक बिहारी इमोशनल हो जाता है ।मेरे घर में पहले दादी ये व्रत करती थी ।अब मां करती हैं। बचपन में दिवाली के तीन दिन पहले से ही छठ पूजा का मुझे इंतज़ार रहता था।

पंचायत फेम अभिनेता चन्दन रॉय कहते हैं कि छठ पूजा हम बिहारियों के लिए एक इमोशन है। छठ की धुन सुनकर ही एक बिहारी इमोशनल हो जाता है ।मेरे घर में पहले दादी ये व्रत करती थी ।अब मां करती हैं। बचपन में दिवाली के तीन दिन पहले से ही छठ पूजा का मुझे इंतज़ार रहता था। छठ पूजा से जुड़ी अपनी ख़ास यादों के अलावा इस साल के छठ पूजा सेलिब्रेशन को लेकर भी उन्होंने उर्मिला कोरी से जानकारी साझा की. बातचीत के प्रमुख अंश  

हमारे गांव में छठ में हरियाली आती है 

आमतौर पर लोग कहते हैं कि सावन में हरियाली आती है, लेकिन  हमारे गांव में छठ पूजा में हरियाली आती है. बिहार और झारखण्ड में पलायन की समस्या रही है ।साल भर जो गांव वीरान से रहते थे.वह छठ में लोगों से भर जाता था. साल भर में जो लोग आपको नहीं दिखते थे. वे लोग आपको छठ पूजा में नजर आते थे. छठ बहाना है परदेस में रहने वाले लोगों के लिए अपनी मां, अपनी बाबूजी, अपनी पत्नी और अपने बच्चों का मुंह देखने का. वरना पूरे साल रोजी रोटी के लिए भाग दौड़ मची रहती है.

छठ एक इंसान को दूसरे इंसान से जोड़ता है 

यूं तो हर त्यौहार लोगों के बिना अधूरा है, लेकिन छठ पूजा का खासतौर पर सामाजिक महत्व बहुत ज्यादा है.यह पर्व एक इंसान को दूसरे इंसान से जोड़ता है. छठ पूजा के लिए घाट  बनाने की ही बात हो तो सभी के घर से कुदाल, बेलचा और पानी का बाल्टी निकल जाता था. जिसके बाद सब मिलकर घाट  बनाते थे,सिर्फ यही नहीं गांव से घाट तक पहुँचने वाले रास्ते को सभी लोग मिलकर पूरी तरह से साफ़ कर देते थे ताकि जो व्रती लेटकर घाट तक पहुंचते हैं. उन्हें किसी भी तरह की कोई दिक्कत ना हो.चूल्हा भी सबकोई मिलजुलकर बनाता था.

छठ पर रोने वाला हूं 

इस बार छठ पूजा को बहुत ज्यादा मिस करूंगा क्योंकि मैं शूटिंग में व्यस्त हूं। मां घर पर अकेली ही इस बार व्रत को करेगी क्योंकि बहनों की भी शादी हो गई है. भाई पढ़ाई की वजह से बाहर है और मैं पंचायत 4 की शूटिंग की वजह से नहीं जा पाऊंगा.हर बार हम सब साथ में होते थे ,तो बहुत अच्छा लगता था. छठ पूजा के बहाने ही सही हम सब मिल लेते थे.इस बार ऐसा नहीं हो पाएगा तो बुरा लग रहा है. मुझे तो सोचकर भी जी भर आ रहा है कि मां कैसे गेहूं सुखाने और पिसवाने जायेगी। घाट तक दउरी को कौन लेकर जाएगा। ये भी जानता हूं कि रिश्तेदार और पड़ोसी मदद करेंगे लेकिन फिर भी मेरा मन ये सब लगातार सोच रहा है. मुझे पता है कि छठ के दिन मैं रोने वाला हूँ. जो लोग छठ पर अपने घर नहीं जाते हैं.वो रोते ही हैं.मैं भी स्ट्रांग नहीं बनूंगा बल्कि खुद को रोने दूंगा। 

गेहूं पिसवाने नंगे पैर जाता था 

 मेरे पिताजी बिहार पुलिस में थे हम लोग चार भाई बहन थे. इतनी सैलरी नहीं थी कि सभी को नए कपड़े मिल सके. हम भाई लोग पापा को बोलते थे कि  बहनों को अपने कपड़े दिला दो. हम वही पहन लेंगे. मैं बताना चाहूंगा कि हम बहुत साधारण परिवार से आते हैं. हमारे यहां बीमार पड़ने पर बिस्कुट हमको मिलता था और रिश्तेदार लोग के आने पर ही अंगूर,संतरा, सेब घर पर आते थे.

घर में या फिर किसी रिश्तेदार की शादी होती थी तो ही हम लड़कों को महंगे कपड़े मिलते थे,तो उस कपड़े को बचाकर रखते थे और छठ पूजा पर वही पहनते थे. छठ पूजा कपड़े पहनने के लिए बल्कि उससे जुडी तैयारियों और पूजा के वक़्त सभी लोगों का एक साथ होने के लिए मुझे बहुत खास लगता है। मैं अपने दादाजी के साथ केले का घऊद खरीदने जाता था.300  रुपये में से अगर दो केले का घऊद आ जाता था तो मेरी मां बहुत खुश हो जाती थी.(हंसते हुए ) सच बताओ तो उसका क्वालिटी उतना अच्छा नहीं रहता था. लेकिन दो घऊद देखकर मेरी मां बहुत खुश हो जाती थी. छठ पूजा के कामों में मैं बहुत ही अच्छा हूं. चूल्हा बनाने से लेकर नंगे पैर गेहूं पिसवाने तक ये सब मेरा ही काम होता था.शारदा सिन्हा जी के गानों को सुनते हुए हम सारे काम कर लेते थे.

मांगूंगा नहीं मेहनत करके भगवान से लूंगा 

मेरी मम्मी और बहनें अक्सर यह बोलती हैं कि छठी मइया से यह चीज मांगे थे. पूरा हो गया. अपनी बात कहूं तो मैंने कभी छठी मईया या किसी भी देवी देवता से कुछ मांगा नहीं है.मेरा ऐसा है कि मैं मांगूंगा नहीं। जो मुझे लेना होगा मैं मेहनत करके ले तुमसे भगवान ले लूंगा. मैं इतनी मेहनत करूंगा कि तुम्हें मुझे देना ही पड़ेगा.

कल्चर को संजो कर रखें

 मैं बिहार के यूथ  से अपील करूंगा कि अपनी जड़ों से जुड़े रहे. जेंजी बनने में कुछ नहीं है. असली सुकून और खुशी जिस तरह से अपनी मां में है.उसी तरह अपने कल्चर में है. छठ पर्व का बहुत महत्व है.इसको ऐसे ही मत समझो. यह हमें प्रकृति से जोड़ता है. इसके साथ ही यह रिश्ते और अपनेपन की भी अहमियत को दर्शाता है. छठ में जो लोग घर से बाहर हैं.वह लोग छठ पूजा के दिन अपने घर वालों को वीडियो कॉल करें। शारदा सिन्हा के छठ के गाने सुने और हमेशा अपने कल्चर को संजो कर रखें.

Also read:Chhath Movies 2024: छठ पूजा पर सिनेमाघरों से लेकर टेलीविजन तक बहेगी भक्ति की धारा

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें