दीपक सवाल, कसमार, मौजूदा दौर में लोग छोटे-छोटे पदों पर जाने के बाद भी बड़े-बड़े चार पहिया वाहनों में भ्रमण करना और आलीशान जिंदगी जीना शुरू कर देते हैं. ऐसे में गौर हरिजन जैसे किसी नेता अथवा विधायक अब शायद ही देखने को मिले. बोकारो जिले के चंदनकियारी विधानसभा से दो बार विधायक रहे गौर हरिजन ने 10 साल की विधायकी बाइक में घूम कर की थी. विधायक रहते हुए भी इनके पास केवल एक बाइक हुआ करती थी. उसी की डिक्की में अपना लैटर हेड, स्टांप व अन्य जरूरी कागजात रखते थे और जनता की सलाह व आग्रह पर जरूरतमंद योजनाओं की अनुशंसा के साथ-साथ अन्य कार्य निपटाया करते थे. जब विधानसभा के सत्रों व पार्टी की बैठकों में भाग लेने तथा अन्य कार्यों के लिए पटना जाना होता था, तब अपनी बाइक रेलवे स्टेशन पर रखकर ट्रेन से जाते थे एवं वापसी में स्टेशन में बाइक लेकर घर लौटते थे. श्री हरिजन ने 1990 व 1995 का विधानसभा चुनाव जीता था. 1990 में भाजपा के टिकट से लड़ते हुए झामुमो के हारू रजवार को 23 हजार 65 वोटों से हराया. इन्हें 25 हजार 782 तथा श्री रजवार को 23 हजार 417 वोट मिले थे. 1995 में निर्दलीय लड़ते हुए कांटे की टक्कर में पुनः हारू रजवार को महज 174 वोटों से पराजित किया. इस बार श्री रजवार ने भी बतौर स्वतंत्र उम्मीदवार चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में श्री हरिजन को 29 हजार 941 तथा श्री रजवार को 29 हजार 767 वोट मिले थे.
समरेश को मानते हैं राजनीतिक गुरु
श्री हरिजन बोकारो के पूर्व विधायक समरेश सिंह को अपना राजनीतिक गुरु मानते हैं. कहते हैं- राजनीति में जो कुछ भी मिला, उसमें श्री सिंह का योगदान सबसे अहम हैं. उनका मान रखने के लिए 1995 में भाजपा का टिकट ठुकरा दिया. हुआ यह कि उन दिनों राजनीतिक उथल-पुथल के बीच दादा (समरेश) ने भाजपा का साथ छोड़ दिया. इंदर सिंह नामधारी के साथ मिलकर झारखंड वनांचल कांग्रेस का गठन किया और स्वयं भी बोकारो से निर्दलीय चुनाव लड़ा. श्री हरिजन को जब यह बात मालूम हुई, तो स्वेच्छा से खुद भी भाजपा के टिकट से नहीं लड़ने का मन बना लिया. श्री हरिजन बताते हैं कि रात करीब 11 बजे तत्कालीन धनबाद सांसद प्रो रीता वर्मा एवं राजेंद्र अग्रवाल उनके घर आए और भाजपा के टिकट से लड़ने को कहा, लेकिन समरेश सिंह के सम्मान का ख्याल रखते हुए साफ तौर पर मन कर दिया. उसके बाद निर्दलीय लड़े और जीते भी.कसमार है जन्मभूमि, चंदनकियारी को बनाया कर्मभूमि
श्री हरिजन की जन्मस्थली कसमार प्रखंड का बगदा गांव है. उनका घर-जमीन यहां आज भी मौजूद है. जब वे छोटे थे, तो पिता स्वर्गीय मोती माली को इलाज के लिए बार-बार धनबाद जाना पड़ता था. इसी क्रम में केवड़ा कंपनी के अधीन कोलियरी में उनकी नौकरी लग जाने के बाद वहीं रहने लगे. श्री हरिजन को राजनीति में शुरू से दिलचस्पी थी. कक्षा छह में थे, उसी समय से युवा कांग्रेस में सक्रिय हो गये. मार्च 1974 में बीसीसीएल में इनकी भी नौकरी लग गयी. लेकिन राजनीतिक सक्रियता जारी रही. 1985 के चुनाव में कांग्रेस की लता देवी के विधायक बनने के बाद उनके क्षेत्र से दूर रहने से नाखुश थे. उनसे इसकी बार-बार शिकायत भी करते थे. चंदनकियारी के कोड़िया गांव में श्री हरिजन की बहन बसंती देवी (अब स्वर्गीय) का ससुराल है. इस कारण यहां आना-जाना रहता था. उस समय तक समरेश के कार्यकर्ता तो नहीं थे, लेकिन उनके पास भी आते-जाते थे. इसी बीच 1990 का चुनाव आया, तो भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता गड़गड़ी सिंह से समरेश के चाचा बदल सिंह, जो यहां के प्रमुख थे, को चंदनकियारी से भाजपा से लड़ाने के लिए गौर हरिजन का नाम सुझाया. श्री सिंह को भी इनका नाम सुझाया गया. इसके बाद इनका नाम फाइनल हुआ और प्रथम चुनाव में ही जीत दर्ज की. 1995 में निर्दलीय जीतने के बाद जब राज्य सभा सदस्य के लिए हुए चुनाव में सरयू राय को बिना शर्त समर्थन दिया, उसके बाद इन्होंने पुनः भाजपा के वापसी की.राजनीति के नाम पर अब दुकानदारी : गौर हरिजन
करीब 73 वर्षीय श्री हरिजन इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हैं. इस कारण इनकी राजनीतिक सक्रियता नहीं है. लेकिन इनकी सादगी व ईमानदारी की मिसाल दी जाती है. वह कहते हैं कि अब राजनीति पहले, जैसी नहीं रही. अब राजनीति के नाम पर दुकानदारी हो रही है. कहते हैं- एक जनप्रतिनिधि में सेवा और त्याग भावना सबसे जरूरी है. लेकिन, आजकल ये दोनों ही देखने की नहीं मिलते. विपक्ष की भूमिका भी बदल गयी है. गौर हरिजन कहते हैं- उन्हें खुशी है कि उन्होंने 10स साल की विधायकी में सिद्धांतों के साथ कभी समझौता नहीं किया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है