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Jharkhand Election 2024: कभी धनबाद के इन 6 विधानसभा का था अस्तित्व, 1977 के बाद से कितना आया बदलाव ?

धनबाद जिले में 1977 से पहले बलियापुर, तोपचांची, केंदुआडीह, जोड़ापोखर, चास और कतरास सीट का अस्तित्व था. लेकिन आज ये अस्तित्व में नहीं है. उस वक्त बलियापुर विधानसभा भी इस जिले के अंतर्गत आता था.

Jharkhand Election 2024, अशोक कुमार, धनबाद : फिलहाल झारखंड के पांचवें विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया जारी है. लेकिन राज्य के सभी 81 विधानसभा क्षेत्रों का अस्तित्व झारखंड के गठन के पहले से है. एकीकृत बिहार के समय से ही वर्तमान के सभी 81 विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आ गये थे. इनका वर्तमान अस्तित्व 1977 से जस का तस बरकरार है. 1977 से अब तक इनके परिसीमन में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इससे पहले एकीकृत बिहार विधानसभा के लिए हुए हर चुनाव में किसी न किसी नये विधानसभा क्षेत्र का गठन होता था, तो कुछ का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता था. धनबाद जिला के अंतर्गत आनेवाले विधानसभा क्षेत्र भी इस बदलाव से अछूते नहीं थे. 1977 से पहले धनबाद जिला में छह ऐसे विधान सभा क्षेत्र थे, जो आज अस्तित्व में नहीं हैं.

1952 से 1957 तक अस्तित्व में थी बलियापुर सीट

बलियापुर विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व सिर्फ एक विधानसभा के लिए था. यह विधानसभा क्षेत्र केवल 1952 से 1957 तक अस्तित्व में था. इस विधानसभा क्षेत्र के एकमात्र विधायक झरिया राज परिवार के काली प्रसाद सिंह हुए थे. उन्होंने छोटानागपुर संताल परगना जनता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की थी. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के किशोरी लाल लोरिया को हराया था. लेकिन 1957 में विधानसभा चुनाव में इस क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया था.

टुंडी व निरसा एक विस क्षेत्र थे

1951 के पूर्व विधानसभा चुनाव में टुंडी और निरसा एक विधानसभा क्षेत्र हु्आ करते थे. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी. लेकिन तब ऐसी आरक्षित सीटों पर एक सामान्य श्रेणी के विधायक के लिए अलग से चुनाव हुआ था. तब इस क्षेत्र से दो विधायक हुए थे. एक एसटी श्रेणी से और एक सामान्य श्रेणी से. सामान्य श्रेणी से यहां के पहले विधायक राम नारायण शर्मा निर्वाचित हुए थे, जबकि एसटी श्रेणी से इस क्षेत्र से टीकाराम मांझी विधायक निर्वाचित हुए थे. 1957 में हुए अगले विधानसभा चुनाव में टुंडी और निरसा अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में बांट दिये गये. 1957 में निरसा एसटी के लिए आरक्षित था, लेकिन तब भी सामान्य श्रेणी के लिए अलग से विधायक थे. सामान्य श्रेणी से राम नारायण शर्मा दूसरी बार चुने गये, जबकि यहां से एसटी श्रेणी से लक्ष्मी नारायण मांझी ने जीत दर्ज की थी. 1962 के विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीट पर केवल उसी श्रेणी के उम्मीदवार को लड़ने का प्रावधान किया गया. उस वर्ष हुए चुनाव में इस सीट से लक्ष्मी नारायण मांझी ने दोबारा जीत दर्ज की. वहीं 1967 के विधानसभा चुनाव में निरसा विधानसभा क्षेत्र को सामान्य श्रेणी का क्षेत्र घोषित कर दिया गया. तब से आज तक यह क्षेत्र सामान्य श्रेणी का है.

कतरास सीट 1952 से 1957 तक अस्तित्व में थी

कतरास विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व सिर्फ एक विधानसभा के लिए था. यह क्षेत्र केवल 1952 से 1957 तक अस्तित्व में था. इस विधानसभा क्षेत्र की एकमात्र विधायक मनोरमा सिन्हा हुई थी. उन्होंने निर्दलीय विधायक के तौर पर जीत हासिल की थी. उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी सच्चिदानंद त्रिगुनायत को हराया था. लेकिन 1957 में हुए विधानसभा चुनाव में कतरास क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया था.

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तोपचांची सीट 1951 से 1972 तक रही

तोपचांची विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व 1951 से लेकर 1972 के विधानसभा चुनाव तक बरकरार था. 1977 में इसका अस्तित्व समाप्त कर दिया गया. 1951-52 में एकीकृत बिहार के पहले विधानसभा चुनाव में यहां से कतरास राज परिवार से पूर्णेंदु नारायण सिंह ने जीत हासिल की थी. उन्होंने छोटानागपुर संताल परगना जनता पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की थी. उन्होंने कांग्रेस पार्टी के बैकुंठ नाथ चौधरी को चुनाव हराया था. 1957 में तोपचांची को एससी के लिए आरक्षित कर दिया गया. इस वर्ष यहां सामान्य श्रेणी से मनोरमा सिन्हा, और आरक्षित श्रेणी से राम लाल दास चुनाव जीते थे. वहीं 1962 में इस सीट को सामान्य श्रेणी का कर दिया गया. उस वर्ष फिर से पूर्णेंदु नारायण सिंह ने जीत हासिल की थी. श्री सिंह ने फिर से 1967 और फिर 1969 में हुए मध्यावधि चुनाव में जीत हासिल की. 1972 में यहां से कांग्रेस के शंकरदयाल सिंह ने जीत हासिल की थी.

केंदुआडीह सीट का अस्तित्व 1962 में एक बार रहा

केंदुआडीह विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व 1962 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान सिर्फ एक बार के लिए आया था. तब यह विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रखा गया था. इस क्षेत्र से एकमात्र विधायक राम लाल दास हुए थे. 1967 के चुनाव में इस क्षेत्र का अस्तित्व समाप्त कर दिया गया था.

जोड़ापोखर सीट सिर्फ 1962 में अस्तित्व में रही

जोड़ापोखर विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व 1962 के विधानसभा चुनाव के दौरान आया था. इसका अस्तित्व सिर्फ इसी एकमात्र विधानसभा चुनाव के लिए हुआ था. तब यहां से राम नारायण शर्मा ने जीत हासिल की थी. श्री शर्मा निरसा सीट को केवल एसटी के लिए आरक्षित कर देने के कारण जोड़ापोखर से चुनाव लड़े थे.

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चास सीट 1957 से 1962 तक अस्तित्व में रही

आज का चास 1991 से पहले धनबाद जिले का हिस्सा हुआ करता था. 1991 में बोकारो जिले के गठन के बाद चास बोकारो का हिस्सा बन गया. 1957 के विधानसभा चुनाव में चास विधानसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया था. इसका अस्तित्व 1962 के विधानसभा चुनाव तक बरकरार था. 1957 में यहां हरदयाल शर्मा विधायक निर्वाचित हुए थे. जबकि 1967 में पार्वती चरण महतो विधायक चुने गये थे.

पहले विस चुनाव से है धनबाद विस क्षेत्र

वर्तमान में धनबाद जिला अंतर्गत धनबाद विधानसभा क्षेत्र का अस्तित्व पहले विधानसभा चुनाव से है. वहीं बाघमारा, झरिया और सिंदरी विधानसभा क्षेत्र का गठन 1967 में किया गया था. एकीकृत धनबाद में ( धनबाद व बोकारो मिला कर) चंदनकियारी विधानसभा क्षेत्र का गठन 1967 में और बोकारो विधानसभा क्षेत्र का गठन 1977 में हुआ था.

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