Chhath Puja 2024: बिहार में लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ मंगलवार को नहाय-खाय के साथ आरंभ हो गया. नहाय-खाय के दिन व्रतियों ने सबसे पहले पवित्र स्नान कर कद्दू और चना का दाल सहित अन्य सामग्री तैयार की. सबसे पहले व्रती ने ग्रहण किया. इसके बाद घर के अन्य सदस्य व आस-पास के लोगों के बीच प्रसाद के रूप में बांटा गया. चार दिवसीय महापर्व छठ के दूसरे दिन आज यानि बुधवार को खरना पूजा किया जायेगा. आज मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी के जलावन से खरना का प्रसाद बनेगा. पूरे दिन उपवास के बाद व्रती रात में खरना का प्रसाद ग्रहण करेंगी. वहीं महापर्व छठ की खरीदारी को लेकर बाजार में लोगों को भारी भीड़ रही.
फल सहित अन्य सामग्रियों से बाजार पट गया है. चार दिनों का इस त्योहार को लेकर लोगों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है. मालूम हो कि छठ का त्योहार सूर्योपासना का पर्व है. प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि दृष्टि डालें तो यह पूजा महाभारत काल के समय से देखा जा रहा है. छठ देवी सूर्यदेव भगवान की बहन हैं और उन्हें प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती हैं. इसके साथ ही गंगा यमुना या किसी भी पवित्र नदी व पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न की जाती है. वहीं प्रत्येक घरों में छठ मैया पर आधारित लोक गीतों से माहौल भक्ति मय बना हुआ है.
खरना पूजा के साथ आज देवी षष्ठी का होगा आगमन
ऐसी मान्यता है कि खरना पूजन के साथ घर-घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है, जिसकी तैयारियों पूरी कर ली गयी है. आज रात में खरना पूजन किया जायेगा. खरना पूजन में प्रसाद के रूप में गन्ने की रस से बनी चावल की खीर, चावल का पिट्ठा बनाकर छठ व्रती भगवान को भोग लगायेंगे. इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा गया है. खरना का प्रसाद ग्रहण करके छठ व्रती 36 घंटा निर्जला उपवास में रहेगी. खरना के दिन रात्रि में जब प्रसाद ग्रहण करती है तो उनके कानों तक किसी प्रकार की आवाज नहीं जानी चाहिए.
जिसे देखते हुए लोग पूजा के समय में व्रती घर के आस-पास में शोर-गुल नहीं करते हैं. इसके दूसरे दिन अर्घ्य का सूप सजाया जायेगा और छठ व्रती के साथ सपरिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने के लिए घाट पर पहुंचेंगे. इसके साथ सभी छठ व्रती तालाब या नदी किनारे इक्ट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ दान संपन्न करेंगे. इसके साथ छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जायेगी. भगवान सूर्य को जल एवं दूध का अर्घ्य दिया जायेगा. वहीं चौथा दिन छठ पर्व अंतिम दिन होता है. इस दिन उगते सूर्य की अर्घ दिया जायेगा और इस महाव्रत का पारण किया जायेगा.
सुख-समृद्धि व संतान प्राप्ति के लिए महिलाएं करती हैं व्रत
बौसी गुरुधाम के पंडित गोपाल शरण ने बताया कि शास्त्र व पौराणिक कथा के अनुसार हजारों साल पहले प्रियव्रत नाम का एक राजा था. उनकी पत्नी का नाम मालिनी था. राजा और रानी दोनों की कोई संतान नहीं थी. दोनों इस बात से दुखी रहते थे. दोनों संतान प्राप्ति के लिए दर-दर भटक रहे थे. बाद में वे महर्षि कश्यप की शरण में गये और माहर्षि कश्यप के कहे अनुसार राजा प्रियव्रत ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. राजा का यह यज्ञ सफल हुआ और रानी गर्भवती हुई. रानी ने नव महीने बाद एक लड़के को जन्म दिया. लेकिन रानी को मरा हुआ पुत्र पैदा हुआ. यह बात सुनकर राजा और रानी दोनों बहुत दुखी हुए और उन्होंने संतान प्राप्ति की आशा छोड़ दी.
राजा प्रियव्रत तो इतने दुखी थे कि उन्होंने आत्महत्या करने का मन बना लिया. लेकिन जैसे ही वो खुद को मारने के लिए आगे बढ़े तभी छठी मईया प्रकट हुई और राजा को भली भांति समझाया और कहा कि जो भी व्यक्ति मेरी सच्चे मन से पूजा करता है में उन्हें पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. यदि तुम भी मेरी पूजा करोगे तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. राजा प्रियव्रत ने बात मानी और कार्तिक शुक्ल की षष्ठी को राजा प्रियव्रत ने छठी मइया की पूजा-अर्चना शुरू की और देवी षष्ठी की व्रत कथा सुनी, जिसके बाद षष्टी ने राजा और रानी को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया. इसके बाद राजा के घर में एक स्वस्थ्य सुंदर बालक ने जन्म लिया. तभी से यह पर्व श्रद्धा व धूम-धाम से मनाया जाता है.