Rourkela News: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी), राउरकेला में ‘महानदी नदी बेसिन’ पर पांच दिवसीय कार्यशाला की शुरुआत मंगलवार को हुई. नौ नवंबर तक चलने वाली इस कार्यशाला का उद्देश्य महानदी नदी बेसिन की गतिशीलता की समझ को गहरा करना और टिकाऊपन का पता लगाना है. ओडिशा के सबसे महत्वपूर्ण जल संसाधनों में से एक को पुनर्स्थापित और प्रबंधित करने के समाधान तलाशना है. यह कार्यशाला एनआइटी राउरकेला के महानदी के नये केंद्र ‘नदी बेसिन प्रबंधन अध्ययन’ के उद्घाटन का भी प्रतीक है. यह केंद्र एक विशेष अनुसंधान केंद्र के रूप में स्थापित होगा. महानदी के समक्ष पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान के लिए नदी निगरानी, डेटा संग्रह और ज्ञान सृजन पर ध्यान केंद्रित करेगा. इस साल की शुरुआत (फरवरी में) में एनआइटी राउरकेला ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर इस उद्देश्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को औपचारिक रूप दिया था. भारत के जल शक्ति मंत्रालय के साथ इस समझौते के तहत, संस्थान ने यह कार्य किया है.
जैव विविधता और समुदायों का पोषण करती हैं नदियां : एनआइटी निदेशक
कार्यशाला का उद्घाटन भुवनेश्वर बेहेरा सभागार में आयोजित किया गया. एनआइटी राउरकेला में महानदी केंद्र के समन्वयक प्रो किशनजीत कुमार खटुआ ने कहा कि कार्यशाला शोधकर्ताओं, संकाय, इंजीनियरों, जलप्रबंधन पेशेवर, उद्योग जगत के लीडर के लिए डिजाइन की गयी है. इसमें विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को शामिल किया जायेगा. उपस्थित लोगों के पास ओडिशा के लोगों की जीवन रेखा महानदी को संरक्षित करने के लिए आवश्यक विशेषज्ञता है. प्रो सुरेश प्रसाद सिंह (सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख) ने महानदी की महत्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट किया. ओडिशा के पारिस्थितिक और आर्थिक परिदृश्य में इसके क्या मायने हैं, इस पर रोशनी डाली. एनआइटी के निदेशक प्रो के उमामहेश्वर राव ने बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय पहलों का समर्थन करने में संस्थान की सक्रिय भूमिका पर प्रकाश डाला. कहा कि नदियां जीवनदायिनी शक्ति हैं, जो जैव विविधता और समुदायों का पोषण करती हैं.
नदियों के स्वास्थ्य को बनाये रखने पर दिया गया जोर
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण मुख्य अतिथि प्रोफेसर विनोद तारे (राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के प्रमुख और सलाहकार) ने नदी बेसिन प्रबंधन में उनके व्यापक अनुभव को साझा किया. भावी पीढ़ियों के लिए नदी के स्वास्थ्य को संरक्षित करने के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि हमारा व्यवहार नदियों के संरक्षण के अनुरूप होना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे अपना अस्तित्व बनाए रखें आने वाली पीढ़ियों के लिए कार्यात्मक क्षमताएं, संरक्षण हमारी संस्कृति में गहराई से निहित है, और यह आवश्यक है कि हम इस विरासत का सम्मान करें. डॉ के मुरुगेसन (आइएफएस, ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव और महानदी नदी बेसिन के लिए नामित नोडल अधिकारी) अतिथि के रूप में मौजूद थे. डॉ मुरुगेसन ने प्रदूषण प्रबंधन की गंभीर चुनौतियों पर चर्चा की. जल संसाधन विभाग से आशुतोष दाश (इआइसी और विशेष सचिव-द्वितीय ओडिशा) भी सम्मानित अतिथि के रूप में इस कार्यक्रम में शामिल हुए. वक्ताओं ने कहा कि जल संसाधन प्रबंधन और बढ़ती मांगों के बीच नदी के स्वास्थ्य को बनाये रखना प्राथमिकता है.
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