रांची : छह महीने पहले घर की दहलीज से बाहर निकलीं, कल्पना सोरेन ने राजनीति के दावं-पेच और ग्रामर चंद दिनों में सीख लिये. इंडिया गठबंधन की धुरी बन गयीं. लोकसभा चुनाव में हेमंत सोरेन जब जेल में थे, तब पूरे राजनीतिक कौशल के साथ पार्टी और लोकसभा चुनाव का मोर्चा दोनों संभाला. इंडिया गठबंधन की सीट भी बढ़ी. विधानसभा चुनाव में कल्पना सोरेन की सभाओं में अच्छी-खासी भीड़ जुट रही है. भीड़ से संवाद का तरीका भी बेजोड़ है. कल्पना सोरेन खुद गांडेय विधानसभा से चुनाव लड़ रहीं हैं. वर्तमान राजनीतिक हालात व विधानसभा चुनाव को लेकर ‘प्रभात खबर’ संवाददाता राकेश सिन्हा ने श्रीमती सोरेन से विशेष बातचीत की. प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश…
सवाल : घर की दहलीज से निकल कर राजनीति में कदम रखा और विधायक बनीं. आपको काम करने के लिए काफी कम समय मिला. कैसा अनुभव रहा?
जवाब : पहले घर संभालती थी, पर अब दायरा बढ़ गया है. पार्टी के कई कार्यों के साथ गठबंधन दलों के लिए भी स्टार प्रचारक के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभा रही हूं. विधायक के तौर पर गांडेय का भी दायित्व संभाल रही हूं. पहले छोटा परिवार था, अब पूरा झारखंड देखना पड़ रहा है. काफी मेहनत और काफी काम करना है.
सवाल : झारखंड में चुनावी मुद्दे क्या हैं. आप किन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रही है?
जवाब : स्थानीय नीति, सरना धर्म कोड और पिछड़ों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण पर ध्यान देना होगा. झारखंड बनने के बाद पहली बार महिलाओं के लिए क्रांतिकारी योजना आयी है. महिला सशक्तीकरण के लिए हमलोगों ने मंईयां योजना को धरातल पर उतारा है. रोजगार हमारी प्राथमिकता होगी. हेल्थ, शिक्षा, इंफ्रास्ट्रचर के लिए अभी बहुत कुछ करना है. झारखंड की पहचान आज भी झारखंड के रूप में नहीं हो सकी है. लोग झारखंड को रांची के नाम से जानते हैं, जबकि भारत के मानचित्र पर झारखंड की अपनी एक जगह है. हेमंत सोरेन जी ने पांच वर्षों में जी-तोड़ मेहनत की है. उन्हीं कार्यों के बदौलत आज हम चुनाव में हैं. उनकी बातों और कामों को लेकर हम सब चुनाव क्षेत्र में जा रहे हैं.
सवाल : आपको अपनी सीट गांडेय के अलावा इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों के लिए मेहनत करनी पड़ रही है, कैसे मैनेज करती हैं?
जवाब : सुबह से ही गठबंधन साथियों के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में काम करना होता है. शाम में लौटने के बाद अपने क्षेत्र में भी जाना पड़ता है. अपने क्षेत्र में मात्र चार माह के कार्यकाल में ही मैंने सड़कों का जाल बिछाने का काम किया है. पुल-पुलिया बनवाया. स्टेडियम का शिलान्यास किया. मेरा एक सपना था कि गांडेय में बच्चियों के लिए डिग्री कॉलेज बनवाऊं, जिसका मैंने शिलान्यास भी कर दिया है. चार महीने में जी तोड़ मेहनत की है. मुझे इस क्षेत्र से काफी प्यार मिला है. इस क्षेत्र के विकास के लिए मैंने प्लान किया है और एक रोड मैप भी बनाया है, जिस पर काम करना है.
सवाल : विपक्ष लगातार इंडिया गठबंधन के नेताओं को घेर रहा है. गठबंधन के ही एक मंत्री रहे आज भी जेल में हैं, इस मुद्दे पर आप क्या सोच रखती हैं?
जवाब : भाजपा उन्हीं राज्यों को केंद्रित करती है, जहां उनकी सरकारें नहीं हैं. भाजपा देश की बहुत बड़ी पार्टी अपने को कहती है. बड़े-बड़े घोटालेबाज लोग जब वहां चले जाते हैं, तब उनके दाग धुल जाते हैं. बड़ी बात तो यह है कि ऐसे लोगों को उनके दल में महत्वपूर्ण पद भी मिल जाता है. स्पष्ट है कि आप भाजपा के साथ हैं, तो दागदार नहीं हैं और विपक्ष के साथ हैं या उनके खिलाफ बोल रहे हैं, तो वे फंसाने के लिए सारा षड्यंत्र रचने लगते हैं. हमारी सरकार के साथ भी ऐसा ही हुआ. हमारी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश की गयी.
सवाल : वर्तमान में चुनावी प्रचार की कमान हेमंत सोरेन और आपने संभाल रखी है, मुद्दों पर दोनों कैसे सामंजस्य बैठाते हैं?
जवाब : अभी मैं लर्नर हूं. हेमंत जी को इस क्षेत्र में काफी अनुभव और जानकारी भी है. वह हमें काफी चीजे बताते और सिखाते रहते हैं. चुनाव के दौरान मोबाइल पर बातचीत होती है. हमदोनों डे-टू-डे चुनावी मुद्दों पर और तैयारियों पर बातचीत करते रहते हैं. फिर मुझे जो जिम्मेदारी दी जाती है, उसे पूरा करने की कोशिश करती हूं.
सवाल : कई लोगों ने जेएमएम को छोड़ा. बागियों की एक फौज खड़ी हो गयी है. क्या संगठन में सब कुछ ठीकठाक चल रहा है? डैमेज कंट्रोल कैसे करेंगी?
जवाब : सिर्फ जेएमएम से लोग दूसरे दल में नहीं गये हैं, बल्कि भाजपा से भी लोग गये हैं. यदि किसी को किसी दल की विचारधारा पसंद नहीं है, तो वह लोकतंत्र में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है. इससे सिर्फ जेएमएम की तकलीफ नहीं बढ़ी है, बल्कि भाजपा की तकलीफें ज्यादा बढ़ी हैं. क्योंकि उनके घर को ज्यादा लोग छोड़कर हमारे घर में आये हैं. हम इन परिस्थितियों का डट कर मुकाबला करने को तैयार हैं.
सवाल : गुरुजी से लेकर दुर्गा सोरेन, हेमंत सोरेन, बसंत सोरेन, सीता सोरेन और अब कल्पना सोरेन राजनीति में हैं, तो क्या भविष्य में आपके बच्चे भी राजनीति में आयेंगे?
जवाब : पैरेंट्स और खासकर एक मां होने के नाते हम अपने बच्चों को जीने का ढंग सिखा सकते हैं. अच्छे संस्कार दे सकते हैं. अच्छी-बुरी चीजें बता सकते हैं. अच्छा एजुकेशन देना और उन्हें अच्छा इंसान बनाना हमारी प्राथमिकता रहती है. मैं अपनी ड्यूटी निभा रही हूं. मेरा मानना है कि इसके बाद बच्चे खुद निर्णय लें कि उन्हें आगे क्या करना है.
सवाल : राजनीति में आने से पहले आपका ड्रीम क्या था?
जवाब : मेरा कोई खास ड्रीम नहीं था. चूंकि घर में गुरुजी, हेमंतजी सभी लोग समाज के लिए काम कर रहे थे, तो मैं चाहती थी कि मैं परिवार के साथ मजबूती से खड़ी रहूं. घर में बच्चे हैं, सास-ससुर हैं. साथ में पैरेंट्स हैं. मैं चाहती थी कि उनके साथ मेरा क्वालिटी टाइम बीते. मैं बैक साइट से हमेशा हेमंतजी को पहले भी सपोर्ट करती थी, लेकिन आज परिस्थितियां कुछ अलग हैं. आज साथ रह कर हम लड़ाई लड़ रहे हैं.
सवाल : अब आप राजनीति में आ गयी हैं. इस बदली हुई परिस्थिति में आपका सपना क्या है?
जवाब : राजनीति में कोई खास सपना नहीं है. सिर्फ विधायक बनने नहीं आयी हूं, लोगों के लिए कुछ करना चाहती हूं. मैं जब गिरिडीह, गांडेय आती हूं, तो गजब का जुड़ाव देखती हूं. राजनीति संघर्ष, त्याग व तपस्या है. इसकी मिसाल खुद शिबू सोरेन जी हैं. उन्हें गुरुजी की उपाधि ऐसे ही नहीं मिली. जब गुरुजी के पिता की हत्या हुई, तो वे घर व पढ़ाई छोड़ कर निकल गये और महाजनी प्रथा के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया. एक दृढ़ संकल्प व सोच के साथ उन्होंने संघर्ष किया, जिसके कारण उन्हें गुरुजी की उपाधि मिली. शादी के बाद बाबा का संघर्ष और बढ़ा. पत्नी और बच्चों को छोड़ कर उन्हें घर से निकलना पड़ा. आज लोग सुनाते हैं कि वे जिस रास्ते से गुजरते थे, वहां की धूल को लोग प्रणाम करते थे और उस धूल को लोग अपने घर में रखते थे. आमलोगों की यह आस्था और विश्वास हमारे परिवार पर कायम रहे, इसके लिए हर वर्ग के लोगों की बेहतरी के लिए कुछ बेहतर करना है.
सवाल : हेमंत सोरेनजी से भी ज्यादा आय आपकी है, आप किस तरह का बिजनेस संभालती हैं और उसे कैसे मैनेज करती हैं?
जवाब : मेरा छोटा व्यवसाय है. मेरा अपना सोहराय भवन है और हमलोगों का लाइफ स्टॉक भी है. काम धीरे-धीरे बढ़ा रही हूं.
सवाल : राजनीति में भविष्य को लेकर आप अगली पीढ़ी को क्या कहना चाहेंगी?
जवाब : सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए अच्छे लोगों को राजनीति में आना चाहिए. राजनीति में अमर्यादित भाषाओं का इस्तेमाल हो रहा है. इससे दु:खित हूं. भाजपा के लोग चुनाव में सांप्रदायिक शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं. उन्हें मुद्दों की बात करनी चाहिए. अच्छे लोग आयेंगे, तो इसमें भी बदलाव आयेगा.