Climate Change: क्लाइमेट चेंज का असर भारत में व्यापक तौर पर देखा जा रहा है. पिछले 9 महीने के कुल 274 दिनों में 255 दिन में क्लाइमेट चेंज के कारण सर्दी, गर्मी, चक्रवात, बिजली गिरना, भारी बारिश, बाढ़, भूस्खलन की घटनाएं सामने आयी जिसमें 3238 लोगों को जान गंवानी पड़ी. इसके कारण 32 लाख हेक्टेयर भूमि पर फसलों को नुकसान हुआ और 2.35 लाख से अधिक धर, लगभग 10 हजार मवेशी मारे गए. यह दावा सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट(सीएसई) द्वारा शुक्रवार को जारी रिपोर्ट में किया गया है.
सीएसई की रिपोर्ट ‘क्लाइमेट इंडिया 2024: एन असेसमेंट ऑफ एक्सट्रीम वेदर इवेंट’ भारतीय मौसम विभाग के आंकड़ों के आधार पर तैयार की गयी है, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2023 के पहले 9 महीने के कुल 273 दिन में से 235 दिन मौसम प्रतिकूल रहा, जिसके कारण 2923 लोगों और 92 हजार से अधिक पशुओं को जान गंवाना पड़ा. प्रतिकूल मौसम के कारण 18.4 लाख हेक्टेयर भूमि पर फसलों और 80 हजार से अधिक घरों को नुकसान हुआ.
अगर मौजूदा साल की बात करें तो यह वर्ष 1901 के बाद सबसे सूखा वर्ष रहा. रिपोर्ट जारी करते हुए सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि वर्ष 2024 में मौसम ने कई कीर्तिमान स्थापित किया है और इससे साफ जाहिर होता है कि क्लाइमेट चेंज का असर साफ तौर पर दिख रहा है.
वर्ष 2024 में मौसम में कई तरह के दिखे हैं बदलाव
मौजूदा साल में चक्रवात और बिजली गिरने के कई मामले राज्यों से सामने आये हैं. इसके कारण देश के 32 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश में 1021 मौत हुई और कई राज्यों में भारी बारिश के कारण बाढ़ के हालात पैदा हो गए. असम में भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के कुल 122 दिन देखे गए. इसके कारण असम का अधिकांश हिस्सा बाढ़ में डूबा रहा और आम लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. राष्ट्रीय स्तर पर बाढ़ के कारण 1376 लोगों को जान गंवानी पड़ी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि लू के कारण देश में 210 लोगों को जान गंवानी पड़ी, लेकिन लू के कारण लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर का विश्लेषण नहीं किया गया है. साथ ही भीषण ठंड के कारण होने वाली मौत और फसलों पर होने वाले असर का रिपोर्ट में जिक्र नहीं किया गया है. मौसम में हो रहे व्यापक बदलाव को देखते हुए किसानों को मुआवजा मुहैया कराने के लिए एक समग्र नीति बनाने की जरूरत है ताकि किसानों को उचित मुआवजा मिल सके. बिना सरकार के सहयोग के किसान कर्ज के जाल में फंस रहे हैं और इससे देश में गरीबी बढ़ने का खतरा है.