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मछली पालन में रोजगार की असीम संभावनाएं

मांग के अनुरूप जिले में एक तिहाई मछली का भी नहीं हो रहा उत्पादन

नवादा कार्यालय. मछली पालन में रोजगार की बहुत अधिक संभावनाएं हैं. सरकारी योजनाओं को धरातल पर उतारकर जरूरतमंद लोगों को रोजगार उपलब्ध कराये जाए, तो इसका लाभ स्थानीय लोगों को मिलेगा. मछली पालन के कई आयाम है. इन सभी आयामों का समन्वित रूप से विस्तार और विकास करना होगा. मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए योजनाओं के बारे में जानकारी होना आवश्यक है. मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए केंद्र व राज्य सरकार की ओर से सभी वर्गों के लोगों को मदद पहुंचाने के लिए योजना शुरू की गयी है. इसके तहत से अधिक तालाब बनाने को लेकर सब्सिडी दी जाती है. मछली पालन के लिए मछली बीज बनाने की व्यवस्था, बेचने के लिए वाहन की उपलब्धता, आइस फैक्ट्री जैसे कई प्रोजेक्ट में मदद की जाती है. विभिन्न मछली उत्पादन से जुड़े कार्यों के लिए आवेदन लिये जा रहे हैं. ऑनलाइन तरीके से होने वाले इस आवेदन में नये तालाब का निर्माण, पुराने तालाब का जीर्णोद्धार, मछली के विपणन को लेकर तीनपहिया, दोपहिया और चारपहिया वाहनों की खरीदारी, आइस प्लांट जैसे अन्य कार्यों के लिए एससी-एसटी एवं महिला आवेदकों को 60% तथा सामान्य और ओबीसी कोटि के लोगों को 40% अनुदान दिया जाता है.

पांच यूनिट बनाने के लिए 13 लाख रुपये का लोन:

जिला में लघु सिंचाई विभाग की ओर से लगभग 100 से अधिक बड़े तालाबों का निर्माण किया गया है. जिला मत्स्य पालन विभाग के माध्यम से प्रधानमंत्री संपदा योजना के तहत आवेदन ऑनलाइन लिया गया है. इस योजना के तहत अधिकतम दो हेक्टेयर व न्यूनतम एक एकड़ जमीन पर तालाब बनाने के लिए सब्सिडी दी जाती है. यदि प्रशिक्षित युवक के पास अपना जमीन नहीं है, तो लीज या पट्टा पर नौ साल के लिए जमीन लेकर तालाब बनाकर मछली पालन किया जा सकता है. इसके अलावा प्रथम वर्ष इनपुट योजना के तहत एक हेक्टेयर के तालाब में डेढ़ लाख रुपये का लोन दिया जाता है. इसमें भी सब्सिडी दी जायेगी. कम जमीन पर तालाब बना कर रोजगार शुरू करने की योजना रखने वाले लोगों के लिए बायो फ्लॉक यूनिट के तहत पांच यूनिट बनाने के लिए 13 लाख रुपये का लोन उपलब्ध कराया जायेगा. इसमें प्रत्येक यूनिट को 10 गुणे 10 या 20 गुणे 10 का सीमेंट टैंक से बनाया जायेगा. इसमें मछली पालन के लिए सामान्य कोटि के लोगों को 50% तथा एससी-एसटी कोटि के लोगों को 75% सब्सिडी दी जानी है.

मांग के अनुरूप नहीं होता है मछली का उत्पादन

मछली उत्पादन के मामले में जिला काफी पीछे है. मांग के अनुरूप यहां एक तिहाई मछली का भी उत्पादन नहीं हो पा रहा है. दूसरे राज्यों से जिले में मछलियों की आपूर्ति की जाती है. जिले में मछली उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पशुपालन विभाग की ओर से कई योजनाएं चलायी जा रही हैं. बावजूद जल संचयन की क्षमता कम होने के कारण मछली का उत्पादन काफी कम मात्रा में होता है. वर्ष 2011 के आंकड़े के अनुसार जिले में लगभग एक करोड़ 22 लाख 5 हजार 303 किलोग्राम मछली की खपत प्रति वर्ष है. लेकिन, जिले में महज 4.5 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हो पाता है. शेष मछली उत्पादन के लिए जिला के लोगों को बाहर से आने वाली मछलियों पर निर्भर करना पड़ता है. ध्यान रहे कि यह आंकड़ा पुरानी जनगणना के अनुसार ही है, जबकि नये स्थिति में आबादी बढ़ने के साथ मांग और भी अधिक बड़ी है, लेकिन जिला में संसाधनों के अभाव के कारण ही इस मांग की आपूर्ति नहीं हो पाती है. हालांकि, किसानों के लिए अपनी खेती के साथ मछली पालन व पशुपालन एक बेहतर विकल्प है, जो उनकी आमदनी को बढ़ा सकता है. इधर, नया तालाब बनाने, मछली पालन के इच्छुक लोगों को ट्रेनिंग देने, उन्हें अनुदान उपलब्ध कराने की बात विभाग के अधिकारी कहते हैं.

496 सरकारी तालाबें, वर्षा जल पर निर्भर

मत्स्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, जिला में कुल 496 सरकारी तालाब, आहर, पईन हैं. इसका कुल क्षेत्रफल 786.77 हेक्टेयर व प्राइवेट स्तर पर कुल 1004 तालाब है, जिसका क्षेत्रफल 1560 हेक्टेयर हैं. तालाब के सही रखरखाव नहीं होने के कारण कई स्थानों पर इसका अतिक्रमण भी हो गया है. सरकारी स्तर पर जो समितियां बनी हुई हैं, वहां तो सभी तालाबों का टेंडर होता है. लेकिन, कई ऐसे स्थान है जहां पर टेंडर भी नहीं हो पाता. विभाग की रिपोर्ट के अनुसार तालाबों का टेंडर हुआ ह, जो कि तीन साल के लिए निबंधित किया जाता है. जिले में तालाबों के रखरखाव के लिए पानी की सबसे बड़ी समस्या है. सुखाड़ क्षेत्र होने के कारण वर्षा जल पर पूरी तरह निर्भरता होती है, इसके अलावा कई प्राइवेट स्तर पर मछली पालन करने वाले लोग मोटर पानी का भी इस्तेमाल करते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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