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आखिरी चुनाव लड़ रहे सीपी सिंह पहली बार कैसे बने थे रांची के विधायक, जानें पूरी कहानी

Jharkhand Chunav: Jharkhand Chunav: रांची विधानसभा सीट पर आखिरी बार चुनाव लड़ रहे सीपी सिंह पहली बार कब और कैसे बने थे विधायक? पढ़ें, यशवंत सिन्हा के इस्तीफे से सीपी सिंह को टिकट मिलने तक की पूरी कहानी.

Jharkhand Chunav: रांची विधानसभा के विधायक चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह (सीपी सिंह) वर्ष 1996 में पहली बार विधायक बने थे. तब से वह लगातार जीत रहे हैं. झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 को उन्होंने अपना आखिरी चुनाव बताया है. आइए, आज आपको बताते हैं कि सीपी सिंह पहली बार विधायक कैसे बने थे. किसकी सिफारिश पर उनको टिकट मिला था.

साफगोई पसंद और सर्वसुलभ नेता हैं सीपी सिंह

झारखंड भाजपा के सबसे वरिष्ठ विधायक सीपी सिंह के आखिरी चुनाव में उनका प्रचार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आ रहे हैं. वह शाम को रोड शो करेंगे. सीपी सिंह को विधानसभा चुनाव का टिकट कैसे मिला, इसको जानने से पहले थोड़ा उनके व्यक्तित्व के बारे में जान लीजिए. झारखंड के पूर्व नगर विकास मंत्री सीपी सिंह साफगोई पसंद और सर्वसुलभ नेता हैं. बेबाकी के लिए जाने वाले चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह के विधानसभा पहुंचने का रास्ता बहुत आसान नहीं था. यशवंत सिन्हा के इस्तीफा के बाद उपचुनाव लड़कर वह विधायक निर्वाचित हुए थे. तब से वह लगातार जीत रहे हैं.

1995 में हवाला कांड के बाद यशवंत सिन्हा ने दे दिया इस्तीफा

वर्ष 1995 में विधानसभा चुनाव हुए थे. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कद्दावर नेता यशवंत सिन्हा रांची विधानसभा सीट से निर्वाचित हुए थे. कुछ ही दिनों बाद हवाला का मामला सामने आया और यशवंत सिन्हा ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.

1996 में रांची विधानसभा उपचुनाव में हुआ सीपी सिंह का विरोध

वर्ष 1996 में रांची विधानसभा सीट पर उपचुनाव की घोषणा हुई. यशवंत सिन्हा, गोविंदाचार्य और बिहार प्रदेश के तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष ने सीपी सिंह को चुनाव लड़ाने की सिफारिश की. उनको टिकट दे दिया गया. सिंबल भी मिल गया. लेकिन, पार्टी के अंदर सीपी सिंह का विरोध होने लगा.

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अटल बहारी वाजपेयी ने पूछा- किसको दिया गया है टिकट?

सीपी सिंह को टिकट दिए जाने से नाराज कुछ लोगों ने इसकी शिकायत की. बात तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तक पहुंची. कई शिकायतें मिलने पर अटल बिहारी वाजपेयी ने यशवंत सिन्हा, बिहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और गोविंदाचार्य को दिल्ली तलब किया. पूछा- किसको टिकट दिया गया है.

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गोविंदाचार्य, यशवंत सिन्हा ने कहा – कार्यकर्ता को दिया है टिकट

तीनों नेताओं ने अटलजी को बताया कि पार्टी के एक कार्यकर्ता को टिकट दिया गया है. वाजपेयी ने इनसे फिर पूछा कि किसी अन्य नेता को टिकट का वादा तो नहीं किया था. तीनों नेताओं ने बताया कि किसी से ऐसा वादा नहीं किया गया. इस पर अटलजी ने उनसे कहा कि वे लाल कृष्ण आडवाणी से इस विषय में बात कर लें.

आडवाणी बोले – रांची से सीपी सिंह ही चुनाव लड़ेंगे

तीनों नेता आडवाणी के पास पहुंचे. पूरी बात बतायी. आडवाणी ने सिर्फ एक सवाल किया – क्या सिंबल दे दिया गया है. यशवंत सिन्हा समेत सभी 3 नेताओं ने कहा – हां. सीपी सिंह को सिंबल दिया जा चुका है. इस पर आडवाणी ने कहा कि अब कोई फेरबदल करने की जरूरत नहीं है. सीपी सिंह ही चुनाव लड़ेंगे.

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…और युवा टोली के साथ चुनाव के मैदान में कूद गए सीपी सिंह

इसके बाद लाल राजेंद्र नाथ शाहदेव और दुती पाहन ने सीपी सिंह को बताया कि उनका विधानसभा चुनाव लड़ना फाइनल हो गया है. इसके बाद सीपी सिंह युवा कार्यकर्ताओं की टोली के साथ मैदान में कूदे और पहले ही चुनाव में बाजी मार ली. इसके बाद से वह लगातार रांची विधानसभा सीट से चुनाव जीत रहे हैं. अब तक उनको कोई नहीं हरा पाया. रघुवर दास सरकार में नगर विकास एवं आवास मंत्री बनने से पहले वह विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे.

अलग झारखंड राज्य के लिए आंदोलन में निभाई थी सक्रिय भूमिका

सीपी सिंह ने अलग झारखंड राज्य के लिए होने वाले आंदोलनों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. एकीकृत बिहार में पार्टी के अंदर तर्कसंगत तरीके से अपनी बातें केंद्रीय नेतृत्व के समक्ष रखीं. अलग राज्य की मांग पर जब आर्थिक नाकेबंदी की गयी, तो सीपी सिंह ने मुरी स्टेशन पर नाकेबंदी को सफल बनाने में अहम भूमिका निभायी. 15 नवंबर 2000 को जब झारखंड अलग राज्य बना, उस वक्त नये प्रदेश की राजधानी रांची के विधायक सीपी सिंह ही थे.

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झारखंड विधानसभा में बने पार्टी के मुख्य सचेतक

बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना, तो झारखंड विधानसभा में सत्तारूढ़ दल का पहला मुख्य सचेतक सीपी सिंह को बनाया गया. मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी बने थे. इतना ही नहीं, वर्ष 2019 में जब झारखंड विधानसभा चुनाव खत्म हुए, तो बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष की मान्यता स्पीकर ने नहीं दी थी. भाजपा के नेता के रूप में स्पीकर ने सीपी सिंह को ही बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया था.

नक्सलियों को राजनीतिक संरक्षण का हमेशा किया विरोध

नक्सलियों को राजनीतिक संरक्षण के सीपी सिंह घोर विरोधी रहे. उनका कहना था कि नक्सलियों को राजनीतिक संरक्षण मिलना बंद हो जाये, तो काफी हद तक इस समस्या का निदान संभव है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में गुमराह हो चुके युवाओं को रोजगार से जोड़ना होगा. ग्रामीणों को जान-माल की सुरक्षा की गारंटी देनी होगी.

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