राकेश वर्मा, बेरमो/दीपक सवाल : पांच दफा विधायक रहे छत्रुराम महतो सियासत के क्षेत्र में गोमिया विधानसभा के ”पितामह” के रूप में जाने जाते हैं. इन्होंने करीब पांच दशक तक बड़ी शालीनता से राजनीति की है. शिक्षक की नौकरी छोड़ कर राजनीति में आये छत्रुराम महतो ने अविभाजित बिहार की राजनीति में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी थी. गोमिया विधानसभा के साथ-साथ अपने गृह प्रखंड पेटरवार को भी इन्होंने एक पहचान दिलायी है.
इन्होंने 1959 में संत कोलंबस कॉलेज हजारीबाग से स्नातक करने के बाद रामरूद्र उच्च विद्यालय, चास (बोकारो) में शिक्षक की नौकरी शुरू की थी. 1968 में इनकी राजनीतिक गतिविधियां शुरू हुई. कुर्मी विकास समिति का गठन कर तत्कालीन गिरिडीह और हजारीबाग जिला के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी सामाजिक सक्रियता बढ़ायी. समाज के लोगों को संगठित कर राजनीतिक रूप से जागृत करने एवं समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने का अभियान छेड़ा. गोला-चितरपुर के चर्चित समाजसेवी एवं राजनीतिज्ञ रिझुनाथ चौधरी समेत कई लोग इनके साथ उस मुहिम में जुड़े थे. यह वह दौर था, जब इस पूरे क्षेत्र में पदमा राजा कामाख्या नारायण सिंह की राजनीतिक पार्टी छोटानागपुर संथाल परगना जनता पार्टी, जो आम लोगों के बीच अमूमन ‘राजा पार्टी’ के नाम से जाना जाता था, का वर्चस्व था. क्षेत्र के अधिकतर विधानसभा क्षेत्रों में उनकी पार्टी के ही उम्मीदवार जीता करते थे. इधर, करीब एक दशक की सामाजिक गतिविधियों के कारण छत्रुराम महतो की मजबूत राजनीतिक जमीन तैयार हो चुकी थी. जनता के आग्रह पर 1969 के चुनाव में तत्कालीन जरीडीह विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ा, पर शशांक मंजरी से मात्र 425 वोटों के अंतर से हार गये. तीन साल बाद ही 1972 में पुनः चुनाव हुआ. इस बार छत्रुराम महतो ने जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. इस चुनाव में श्री महतो ने कम्युनिस्ट नेता मजहरुल हसन खान को पराजित किया था.इंदिरा सरकार में 21 महीना जेल में रहे
1974-75 में इंदिरा गांधी की सरकार के कार्यकाल में आपातकाल लागू हुआ, तब मीसा कानून के तहत जेल जाने वाले नेताओं में छत्रुराम महतो भी शामिल थे. 1975 से लेकर 1977 तक करीब 21 महीना इन्हें सेंट्रल जेल हजारीबाग में रहना पड़ा. 1977 में लोकसभा चुनाव से पहले रिहा होकर निकले. 1977 के विधानसभा चुनाव में जरीडीह विधानसभा का अस्तित्व खत्म हो गया और गोमिया के रूप में एक नया विधानसभा बना. इस चुनाव में छत्रुराम महतो ने बतौर भाजपा उम्मीदवार लड़ते हुए कांग्रेस के रामाधार सिंह को करीब 1100 वोटों के अंतराल से पराजित किया. इसी दौरान 1979-80 में करीब आठ महीना अविभाजित बिहार सरकार में राज्य वित्त मंत्री बनाये गये. तब रामसुंदर दास बिहार के मुख्यमंत्री एवं कैलाशपति मिश्र वित्त मंत्री थे.टीटीपीएस की स्थापना में निभायी अहम भूमिका
गोमिया विधानसभा क्षेत्र के ललपनिया में तेनुघाट थर्मल पावर स्टेशन श्री महतो और तत्कालीन स्थानीय सांसद रामदास सिंह के प्रयास से ही स्थापित हो पाया था. यह प्लांट फरक्का (पश्चिम बंगाल) में स्थापित होना था. उन दिनों चंदनकियारी निवासी झा जी विद्युत बोर्ड के चेयरमैन थे. उन्होंने छत्रुराम महतो को इस प्रोजेक्ट के बारे में बताया और कहा कि अपने क्षेत्र में स्थापित करने के लिए इसे विधानसभा में उठाएं. 16 जून 1979 को ललपनिया में प्लांट निर्माण के लिए अन्य औपचारिकता पूरी की. बेरमो सबडिवीजन मुख्यालय तेनुघाट लाने में भी इन्होंने प्रयास किया था. इन कार्यों की बदौलत छत्रुराम महतो ने क्षेत्र की जनता के दिलों में और मजबूत जगह बना ली. 1980 के चुनाव में पुनः जीत दर्ज की और फिर 1995 और 2005 के चुनाव में भी भाजपा के टिकट पर लड़ते हुए विधायक बने. 2005 के कार्यकाल में झारखंड राज्य कृषि विपणन बोर्ड के चेयरमैन भी बनाये गये थे. 2009 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया. इससे नाराज होकर झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़े, पर सफलता नहीं मिली. एक साल बाद इनकी पुनः भाजपा में वापसी हुई, पर उसके बाद के किसी भी चुनाव या उपचुनाव में इन्हें कभी उम्मीदवार नहीं बनाया गया.सादगी की होती है चर्चा
गोमिया विस समेत राज्य की राजनीति में छत्रुराम महतो की निष्ठा, समर्पण एवं ईमानदारी के सभी कायल रहे हैं. विरोधी दलों के नेता व कार्यकर्ता भी इनका उतना ही सम्मान करते हैं. इन्होंने चुनाव जिस सादगी और शालीनता से लड़ा, उसकी चर्चा आज भी की जाती है. उनके समय तक गोमिया विधानसभा में धनबल का प्रभाव भी नहीं था. बल्कि लोग खुद चंदा करके छत्रुराम को दिया करते थे. उम्र के अंतिम दौर में गुजर रहे छत्रुराम इन दिनों अस्वस्थ हैं और रांची के अस्पताल में भर्ती हैं. ‘प्रभात खबर’ से बातचीत में श्री महतो ने कहा कि वह जनता की सेवा के लिए ही राजनीति में आये थे. मौजूदा दौर में इसका अभाव है.चुनाव में पैदल व साइकिल से घूमा करते थे
जिस वक्त जरीडीह विधानसभा से छत्रुराम महतो चुनाव लड़ा करते थे, उस वक्त गोला-पेटरवार के उनके अजीज मित्र नागेश्वर साव उन्हें क्षेत्र में घूमने के लिए अपनी मोटरसाइकिल देते थे. कभी-कभार अपनी जीप भी दिया करते थे. राजनीति के शुरुआती दिनों में श्री महतो पैदल या साइकिल से क्षेत्र में घूम कर चुनाव प्रचार किया करते थे. 1972 में उन्होंने पांच हजार रुपये में बुलेट मोटरसाइकिल खरीदी. 77 में बेरमो के एक व्यक्ति से 14 हजार रुपये में एक पुरानी जीप खरीदी. बाद में 80 में जीप को बेच कर बोकारो से 21 हजार में एक कार खरीदी. 1972 का पहला चुनाव मात्र सात हजार रुपये खर्च कर जीता था.जब वाजपेयी ने कहा : छत्रु बाबू को हमलोग शुरू से जानते हैं
एक बार एकीकृत बिहार सरकार में भाजपा नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल वनांचल गठन की मांग को लेकर दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व मोरारजी देसाई से मिलने गये. सेंट्रल हॉल में अटल बिहारी वाजपेयी भी मौजूद थे. यहां बिहार के उस वक्त के सभी जनसंघी विधायकों से परिचय हो रहा था. जब छत्रुराम महतो की बारी आयी तो वाजपेयी ने कहा कि छत्रु बाबू को कौन नहीं जानता है, ये तो काफी पुराने और सीनियर लीडर रहे हैं. छत्रुराम महतो का भाजपा व जनसंघ के कई नेताओं से गहरे ताल्लुकात रहे थे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, कैलाशपति मिश्र, ताराकांत झा आदि से उनका गहरा संबंध था. वनांचल अलग राज्य की मांग को लेकर श्री महतो ने कई आंदोलन में शिरकत की थी.11 बार लड़े चुनाव
छत्रुराम महतो पेटरवार प्रखंड के गागी गांव के रहने वाले हैं. इनके परदादा का नाम बैचू महतो, दादा का नाम लोचन महतो तथा पिता का नाम सीताराम महतो था. छत्रुराम महतो के पुत्र प्रह्लाद भाजपा के बोकारो जिलाध्यक्ष के अलावा वर्तमान में जिला परिषद के सदस्य हैं. छत्रुराम महतो ने 11 बार चुनाव लड़ा. 1967 व 1969 में स्वतंत्र रूप से, 1977 में जनसंघ से 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर, 1980 से लेकर 2005 तक भाजपा से, 2009 में झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ा था.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है