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Jharkhand Election 2024: सत्ता का रण शुरू, 43 सीटों पर बिछ गयी बिसात, पूर्व CM समेत कई के भाग्य का फैसला

Jharkhand Election 2024: झारखंड विधानसभा चुनाव की 43 सीटों पर कल वोटिंग होना है. इसमें पूर्व सीएम चंपाई सोरेन समेत कई मंत्रियों के भाग्य का फैसला होना है.

रांची : पहले चरण में झारखंड की 43 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जायेंगे. 13 नवंबर को झारखंड में सत्ता का रण शुरू हो जायेगा. इसको लेकर राजनीति की बिसात बिछ गयी है. एक-एक सीट पर दलों और प्रत्याशियों के सामने चुनौती है. झामुमो, भाजपा, कांग्रेस व आजसू सहित कई दल आमने-सामने हैं. पहले चरण में कई दिग्गजों की भी परीक्षा होनी है. पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन और सरकार में शामिल कई मंत्रियों के भाग्य का फैसला होना है. ऐसी लगभग एक दर्जन सीटें हैं, जिस पर सबकी नजर है. यही 43 सीट झारखंड में सत्ता की तस्वीर और दलों की तकदीर तय करेगी.

सातवीं बार सीपी सिंह मैदान में महुआ माजी दे रहीं चुनौती

रांची विधानसभा सीट पर भाजपा का पिछले 28 वर्षों से कब्जा है. यहां से भाजपा प्रत्याशी वर्ष 1996 से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं. सीपी सिंह को भाजपा ने सातवीं बार प्रत्याशी बनाया है. पिछले चुनाव में इस सीट पर झामुमो की महुआ माजी ने उन्हें कड़ी चुनौती दी थी. सीपी सिंह सिर्फ 5904 वोट से जीते थे. एक बार फिर महुआ माजी झामुमो के टिकट से मैदान में उतरी हैं. ऐसे में जनता की निगाहें इस सीट पर बनी हुई हैं. महुआ माजी फिलहाल राज्यसभा की सदस्य हैं.

नवीन जायसवाल को चुनौती देंगे अजयनाथ शाहदेव

हटिया से नवीन जायसवाल पिछले 12 वर्षों से विधायक हैं. वह अलग-अलग दल से चुनाव लड़ कर इस सीट से जीत दर्ज करते रहे हैं. वर्ष 2012 में हुए उप चुनाव में नवीन जायसवाल पहली बार विधायक बने थे. इसके बाद वे 2014 में जेवीएम के टिकट से चुनाव जीते. वर्ष 2019 के चुनाव में वे भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते. इस बार भी भी उन्हें भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है. इनके खिलाफ कांग्रेस के अजयनाथ शाहदेव चुनाव मैदान में हैं.

कांके में पिछले चार चुनावों से लगातार भाजपा को मिल रही है जीत

कांके सीट से अभी भाजपा के समरी लाल विधायक हैं. पिछले चार चुनावों में यह सीट भाजपा के खाते में गयी है. चार चुनावों में भाजपा ने दो बार रामचंद्र बैठा को यहां से टिकट दिया और वे विधायक बने. फिर 2014 में जीतू चरण राम को टिकट दिया, तो वे भी विधायक बने. वर्ष 2019 में समरी लाल को टिकट दिया, तो वे भी चुनाव जीते. इस बार फिर से जीतू चरण राम को यहां से टिकट दिया गया है. वहीं, कांग्रेस ने यहां से इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में सुरेश कुमार बैठा को उतारा है.

मांडर में कांग्रेस की शिल्पी नेहा तिर्की और भाजपा के सन्नी टोप्पो में टक्कर

इस सीट पर 2005 से लेकर अब तक हुए चार चुनावों में तीन बार बंधु तिर्की विजयी हुए हैं. वर्ष 2005 में वह यूजीडीपी से विधायक बने. फिर 2009 में जेएचजेएएम से विधायक चुने गये. वहीं, वर्ष 2014 में इस सीट से भाजपा की गंगोत्री कुजूर जीतीं. वहीं, 2019 में बंधु तिर्की जेवीएम से चुनाव जीत गये. फिलहाल इस सीट से कांग्रेस की शिल्पी नेहा तिर्की विधायक हैं. इस बार कांग्रेस ने उन्हें टिकट दिया है. वहीं, भाजपा ने सन्नी टोप्पो को टिकट दिया है. दोनों के बीच सीधी टक्कर है.

विकास के सामने होंगे गोपाल कृष्ण पातर, होगी सीधी टक्कर

इस सीट से अभी झामुमो के विधायक विकास सिंह मुंडा हैं. श्री मुंडा वर्ष 2014 में यहां से विधायक रहे हैं. तब वह आजसू से जीते थे. यहां चार चुनावों में दो बार सीट जदयू के खाते में गयी, लेकिन प्रत्याशी अलग-अलग रहे. एक बार रमेश सिंह मुंडा व एक बार गोपाल कृष्ण पातर जीते. रमेश सिंह मुंडा की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दो बार विधायक बने हैं. इस बार भी झामुमो ने विकास सिंह मुंडा को टिकट दिया है. वहीं, जदयू से फिर गोपाल कृष्ण पातर मैदान में हैं. जेएलकेएम ने दमयंती मुंडा को उतारा है.

वर्ष 2000 से लगातार विधायक हैं भाजपा के नीलकंठ सिंह मुंडा

खूंटी विधानसभा सीट भाजपा की सेफ सीटों में एक रही है. वर्ष 2000 से लगातार इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी नीलकंठ सिंह मुंडा जीत दर्ज कर रहे हैं. रघुवर सरकार में नीलकंठ सिंह मुंडा मंत्री भी बने थे. एक बार फिर भाजपा ने नीलकंठ सिंह मुंडा पर भरोसा जताया है. वहीं, इस सीट पर झामुमो ने राम सूर्य मुंडा को प्रत्याशी बनाया है. वह महागठबंधन के प्रत्याशी हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान खूंटी विस क्षेत्र में कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा को 47 हजार से अधिक की बढ़त मिली थी.

चार चुनावों में दो बार भाजपा और दो बार झामुमो जीता

तोरपा सीट से अभी भाजपा के कोचे मुंडा विधायक हैं. इस बार भी भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया है. वहीं, झामुमो ने सुदीप गुड़िया को उतारा है. जेएलकेएम व झारखंड पार्टी ने भी अपना उम्मीदवार दिया है. कोचे मुंडा वर्ष 2005 में भी यहां से विधायक बने हैं. इसके बाद वर्ष 2009 व 2014 में यह सीट झामुमो के खाते में चली गयी थी, लेकिन फिर वर्ष 2019 में यह सीट भाजपा के पास आ गयी. इस तरह चार चुनावों में दो बार झामुमो व दो बार भाजपा के खाते में यह सीट गयी है.

झामुमो-भाजपा के बीच सपा बना कोण, रोचक होगा मुकाबला

वर्तमान मंत्री मिथिलेश ठाकुर गढ़वा से महागठबंधन के उम्मीदवार हैं. वहीं, भाजपा ने पूर्व विधायक सत्येंद्र तिवारी को मैदान में उतारा है. पूर्व मंत्री गिरिनाथ सिंह ने सपा से चुनावी मैदान में उतर कर मुकाबले को रोचक बना दिया है. तीनों एक-दूसरे का खेल बिगाड़ने में लगे हैं. इस सीट पर मंत्री मिथिलेश ठाकुर की प्रतिष्ठा दांव पर है. श्री तिवारी इस सीट से 2009 व 2014 में विधायक का चुनाव जीत चुके हैं. गिरिनाथ सिंह 2000 व 2005 में चुनाव जीत चुके हैं.

भाजपा ने भानु और झामुमो ने अनंत प्रताप पर जताया भरोसा

भवनाथपुर से तीन बार विधायक रह चुके भानु प्रताप शाही एक बार फिर मैदान में हैं. इन्हें भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है. श्री शाही वर्ष 2005 में ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक के टिकट से चुनाव लड़ कर विधायक बने थे. 2009 में श्री शाही कांग्रेस प्रत्याशी अनंत प्रताप देव से हार गये थे. वर्ष 2014 में श्री शाही एक बार फिर नवजवान संघर्ष मोर्चा के टिकट से चुनाव लड़ कर विजयी हुए थे. 2019 में श्री शाही भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ कर विधायक बने थे. वहीं, झामुमो ने अनंत प्रताप देव को उतारा है.

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दिलीप सिंह के मैदान में रहने से कड़ा हो गया मुकाबला

डाल्टेनगंज में चुनावी मुकाबला रोचक हो गया है. पहले स्पीकर रहे इंदर सिंह नामधारी के पुत्र दिलीप सिंह नामधारी के चुनावी मैदान में आने से मुकाबला कड़ा हो गया है. चुनावी दिग्गज भी कुछ निर्णय देने की स्थिति में नहीं है. कहीं भी बाजी पलटने की बात कह रहे हैं. अंतिम समय तक लोगों पर सबकी नजर है. भाजपा ने आलोक चौरसिया को रिपीट किया है. कांग्रेस ने केएन त्रिपाठी को टिकट दिया. 2009 में श्री त्रिपाठी विधायक रहे थे. सरकार में मंत्री भी थे.

त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी है यह सीट, सबकी नजर

पांकी सीट त्रिकोणीय संघर्ष में फंसी दिख रही है. यहां पूर्व विधायक विदेश सिंह के बेटे देवेंद्र सिंह उर्फ बिट्टू सिंह निर्दलीय मैदान में हैं. भाजपा के कब्जे वाली सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के लिए भी मुश्किल खड़ी कर रहे हैं. भाजपा ने विधायक कुशवाहा शशिभूषण मेहता और कांग्रेस ने पूर्व मंत्री मधु सिंह के पुत्र लाल सूरज को प्रत्याशी बनाया है. श्री मेहता पहली बार यह सीट 2019 में जीते थे. बिट्टू सिंह यहां से उप चुनाव जीतकर 2016 में विधायक बने थे.

कांग्रेस और राजद प्रत्याशी के बीच होगा दोस्ताना संघर्ष

इस सीट पर महागठबंधन में दोस्ताना संघर्ष है. कांग्रेस और राजद दोनों ने प्रत्याशी दिया है. 2005 में राजद और 2014 व 2019 में भाजपा से जीतने वाले रामचंद्र चंद्रवंशी को इसी संघर्ष से उम्मीद है. राजद ने नरेश सिंह व कांग्रेस ने सुधीर चंद्रवंशी को प्रत्याशी बनाया है. सपा की प्रत्याशी अंजु सिंह और बसपा के प्रदेश अध्यक्ष राजेश मेहता भी चुनावी मैदान में हैं. 2019 में श्री मेहता दूसरी नंबर पर थे. अंजु सिंह को 24 हजार से अधिक मत मिले थे. यहां बहुकोणीय मुकाबले में दिख रहे हैं.

भाजपा ने फिर पुष्पा पर जताया भरोसा, किशोर भी मैदान में

भाजपा ने एक बार फिर पुष्पा देवी पर भरोसा जताया है. वहीं, राधाकृष्ण किशोर इस बार कांग्रेस से प्रत्याशी हैं. श्री किशोर 2014 में भाजपा व 2005 में जदयू से विधायक रहे हैं. इससे पहले वह 1980, 1985 और 1995 में कांग्रेस के टिकट से विधायक रहे हैं. पुष्पा देवी के पति मनोज कुमार पलामू के सांसद और छतरपुर के विधायक भी रहे हैं. दोनों बार वह राजद के टिकट से जीते थे. इन दोनों के बीच की पारंपरिक लड़ाई को विजय राम मजेदार बना रहे हैं. पिछली बार विजय राम दूसरे स्थान पर रहे थे.

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1990 के बाद कमल नहीं खिला है, इस बार कमलेश पर भरोसा

35 साल से भाजपा यहां कमल खिलाने के लिए तरस रही है. इस बार भाजपा ने वर्तमान विधायक कमलेश सिंह को अपने पाले में कर लिया है. वहीं, राजद के प्रदेश अध्यक्ष संजय सिंह यादव व पूर्व विधायक बसपा के कुशवाहा शिवपूजन मेहता इनकी राह में रोड़ा अटकाने में लगे हैं. श्री यादव यहां से 2000 और 2009 में विधायक रह चुके हैं. वहीं कमलेश सिंह को 2005 और 2019 में इस सीट का नेतृत्व करने का अनुभव है. इस सीट पर भाजपा के बागी विनोद सिंह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं.

सीट बचाने के लिए पूरी ताकत से जुटा है इंडिया गठबंधन

मनिका क्षेत्र में भाजपा वापसी की लड़ाई लड़ रही है. राज्य गठन के बाद हुए पहले चुनाव में राजद के टिकट पर विधायक बने रामचंद्र सिंह मनिका से कांग्रेस पार्टी के निवर्तमान विधायक हैं और फिर से चुनावी मैदान में हैं. उनको चुनौती दे रहे भाजपा के हरिकृष्ण सिंह पर जनता 2009 व 2014 के चुनाव में भरोसा जता चुकी है. वह एक बार फिर से जनता का विश्वास हासिल करने की कोशिश में हैं. वहीं, इंडिया गठबंधन अपनी सीट बचाने के लिए एकजुट होकर चुनावी दंगल में जुटा हुआ है.

डॉ रामेश्वर उरांव के सामने आंदोलनकारी की पत्नी नीरू

लोहरदगा में मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव की साख दांव पर है. यहां उनके सामने झारखंड आंदोलनकारी रहे कमल किशोर भगत की पत्नी नीरू शांति भगत हैं. नीरू को एनडीए ने अपना प्रत्याशी बनाया है. वह आजसू कोटे से चुनाव लड़ रही हैं. कमल किशोर भगत इस विधानसभा क्षेत्र का दो-दो बार नेतृत्व कर चुके हैं. राज्य गठन के बाद कांग्रेस का भी दो बार कब्जा रहा है. श्री उरांव लोहरदगा संसदीय क्षेत्र से सांसद भी रहे हैं. श्री उरांव वर्ष 2019 में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ कर विधायक बने.

जनता ने झामुमो और भाजपा को दिया है बराबरी का मौका

गुमला में झामुमो और भाजपा प्रत्याशी आमने-सामने हैं. 2005 से अब तक भाजपा और झामुमो दोनों ही दलों को जनता ने दो-दो बार मौका दिया है. 2009 और 2014 में गुमला से भाजपा के विधायक चुने गये हैं, जबकि गुमला के निवर्तमान विधायक झामुमो के भूषण तिर्की को जनता ने 2005 और 2019 में मौका दिया. श्री तिर्की इस बार भी मैदान में हैं. उनके सामने भाजपा के सुदर्शन भगत ताल ठोक रहे हैं. भाजपा के बागी मिसिर कुजूर भी यहां निर्दलीय मैदान में हैं.

खोई सत्ता पाने और गद्दी बचाने की है इस बार की लड़ाई

बिशुनपुर में राज्य गठन के बाद (2005) भाजपा को एक ही बार सफलता मिली है. गत तीन चुनावों में झामुमो के चमरा लिंडा ने जीत की हैट्रिक लगायी है. उन्होंने एक बार निर्दलीय और दो बार झामुमो के टिकट पर चुनाव जीता है. श्री लिंडा इस बार भाजपा के समीर उरांव चुनौती दे रहे हैं. खोई सत्ता पाने के लिए भाजपा के लोग जोर लगाये हुए हैं. उधर, झामुमो भी अपनी गद्दी बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. इधर, झामुमो के बागी जगन्नाथ उरांव निर्दलीय मैदान में हैं और जोरदार टक्कर दे रहे हैं.

यहां हर विधानसभा चुनाव में बदलते रहे हैं विधायक

सिसई की जनता ने अब तक किसी एक पार्टी या व्यक्ति पर भरोसा नहीं दिखाया है. राज्य गठन के बाद से हुए चुनावों में सिसई की जनता ने हर बार विधायक बदला है. चुनाव में जनता ने यू-टर्न लेते हुए भी अपना फैसला सुनाया है. गत चार चुनावों में दो बार भाजपा और एक-एक बार कांग्रेस व झामुमो के टिकट पर विधायक चुने गये हैं. इस बार भी यहां एनडीए व इंडिया गठबंधन आमने-सामने है. चुनावी दंगल में निवर्तमान विधायक झिगा सुसारन होराे को भाजपा के अरुण उरांव चुनौती दे रहे हैं.

कांग्रेस व भाजपा की लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास

सिमडेगा विधानसभा सीट पर कांग्रेस व भाजपा परंपरागत प्रतिद्वंद्वी है. राज्य बनने के बाद सिमडेगा की जनता ने दो बार कांग्रेस और दो बार भाजपा के विधायक चुने हैं. इस बार भी कांग्रेस के निवर्तमान विधायक भूषण बाड़ा के सामने भाजपा के श्रद्धानंद बेसरा हैं. भाजपा ने दो बार विधायक रही महिला प्रत्याशी को बदलते हुए श्री बेसरा को उम्मीदवार बनाया है. वहीं, कोलेबिरा के पूर्व विधायक एनोस एक्का की बेटी आयरीन एक्का झारखंड पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के प्रयास में हैं.

भाजपा पर जीतने और इंडिया गठबंधन पर सीट बचाने का दबाव

कोलेबिरा में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं. 2005 से लगातार तीन बार विधायक चुने गये एनोस एक्का से इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस प्रत्याशी नमन विक्सल कोंगाड़ी ने गत चुनाव में यह सीट छीन ली थी. इस बार एनोस एक्का के पुत्र विभव संदेश एक्का झारखंड पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ कर मुकाबला को त्रिकोणीय बना रहे हैं. पिछले चुनावों से दो नंबर पर रह रही भाजपा के सुजान जोजो पर जीत हासिल करने और इंडिया गठबंधन पर सीट बचाने का दबाव है.

लोजपा और राजद प्रत्याशी के बीच होगा सीधा मुकाबला

राज्य गठन के बाद हुए चार विधानसभा चुनाव में चतरा सीट पर भाजपा व राजद को जीत मिली है. इस सीट से दो बार भाजपा व दो बार राजद के विधायक चुने गये हैं. इस वर्ष एनडीए गठबंधन के तहत इस सीट से लोजपा चुनाव लड़ रही है. वहीं, इंडिया गठबंधन से राजद को सीट मिली है. राजद ने मंत्री सत्यानंद भोक्ता की बहू रश्मि प्रकाश को टिकट दिया है. वहीं, लोजपा (आर) से जनार्दन पासवान चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में दोनों प्रत्याशियों के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है.

भाजपा ने उम्मीदवार बदला झामुमो से होगा मुकाबला

सिमरिया विधानसभा सीट पर झामुमो व भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है. इस सीट पर पिछले चार चुनाव में दो बार भाजपा व दो बार झाविमो को जीत मिली है. इस चुनाव में भाजपा ने वर्तमान विधायक को टिकट नहीं दिया है. भाजपा ने उज्ज्वल दास को प्रत्याशी बनाया है. जबकि, झामुमो ने मनोज चंद्रा को प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में दोनों के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है. 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में इस सीट से भाजपा के उपेंद्र दास व 2019 में भाजपा के ही किशुन दास जीते थे.

भाजपा से चुनाव लड़ रहे चंपाई सोरेन, गणेश महली से चुनौती

सरायकेला में पिछले चुनाव में पहले और दूसरे स्थान पर रहने वाले दोनों प्रत्याशी फिर मैदान में हैं. पिछली बार भाजपा के प्रत्याशी इस बार झामुमो के उम्मीदवार हैं. वहीं, झामुमो के टिकट से लगातार पांच बार जीतने वाले चंपाई सोरेन भाजपा के प्रत्याशी हैं. भाजपा उनको आदिवासी के बड़े नेता के रूप में पेश कर रही है. वहीं. भाजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण गणेश महली झामुमो में शामिल हो गये. दोनों दलों को अपने ही दल से नाराज कार्यकर्ताओं का सामना करना पड़ रहा है.

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