कोलकाता.
आरजी कर कांड के बाद ”थ्रेट कल्चर” की घटनाएं सामने आयी हैं. इसे लेकर कलकत्ता हाइकोर्ट ने भी आदेश पारित किये हैं, लेकिन अब हाइकोर्ट में ही थ्रेट कल्चर का मामला सामने आया है. हाइकोर्ट के कुछ जूनियर अधिवक्ताओं पर आरोप है कि उन्होंने अदालत से संबंधित कार्यालय के कर्मचारियों को निर्देश की सर्वर प्रति के बिना मामलों को स्वीकार करने और सूचीबद्ध करने की धमकी दी थी. बुधवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम ने यह मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि संबंधित विभाग के अधिकारियों को धमकाया गया, ताकि उनके मामले को इस बांड पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाये कि आदेश की सर्वर कॉपी सुनवाई के समय प्रस्तुत की जायेगी. अपील मामले में एकल पीठ के आदेश को चुनौती देते हुए आदेश की प्रमाणित प्रति डिविजन बेंच में दाखिल करना आवश्यक है. यदि तत्काल आवेदन की आवश्यकता होती है, तो कई डिविजन बेंच प्रमाणित प्रति के बिना आवेदन की अनुमति दे देते हैं. लेकिन निर्देशों की सर्वर प्रति उपलब्ध कराना अनिवार्य है.हालांकि प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त करने में समय लगता है. सर्वर प्रतिलिपि हमेशा उच्च न्यायालय की अपनी साइट पर उपलब्ध होती है. यह पता चला है कि न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य ने याचिकाकर्ता को प्रमाणित प्रति के बिना याचिका दायर करने की अनुमति दी थी, क्योंकि मामले में तत्काल सुनवाई होनी थी. ऐसे में केस के साथ सर्वर कॉपी का होना जरूरी है. लेकिन देखने में आया है कि वह भी नहीं दिया गया. इसके बजाय, जूनियर वकीलों ने विभाग के कर्मचारियों को इस गारंटी के आधार पर मामलों को सूचीबद्ध करने की धमकी दी कि सुनवाई के दौरान सर्वर कॉपी दी जायेगी.
बुधवार को मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में एक मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने मामले की सर्वर कॉपी संलग्न करने के लिए समय देने की अर्जी दी. तभी मुख्य न्यायाधीश ने धमकियों का मुद्दा उठाया और वकील से कहा कि यह सही नहीं है. न्यायालय कार्यालय महत्वपूर्ण है. वे न्याय व्यवस्था को सही ढंग से चलाने के लिए काम करते हैं. वे एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं. अगर वकील हाइकोर्ट के कर्मचारियोंं को धमकी देंगे, तो क्या होगा. हालांकि, डिविजन बेंच ने वकील की याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर नहीं किया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है