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Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद महाराज ने बताया धर्म और कर्म में क्या अंतर है  

Premanand Ji Maharaj: कई लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें धर्म और कर्म के बीच सही अंतर का पता नहीं होता है. इस लेख में आपको यह बताया गया है कि प्रेमानन्द जी महाराज के अनुसार धर्म और कर्म में क्या अंतर होता है.

Premanand Ji Maharaj: हर व्यक्ति जो भक्ति के मार्ग में आगे बढ़ना चाहता है, उनके मन में कई ऐसे प्रश्न होते हैं, जिनका उत्तर खोज पाना उनके लिए संभव नहीं हो पाता है. अपने इन्हीं जटिल प्रश्नों का उत्तर खोजने के लिए वो ऐसे संत या महात्मा का साथ चाहते हैं, जो उनका मार्गदर्शन कर सके. प्रेमानन्द जी महाराज से मिलकर कई लोग अपने मन में चल रहे, इन्हीं जटिल सवालों का उत्तर जानना चाहते हैं. महाराज जी भी अपने धर्म से संबंधित ज्ञान और अपने जीवन के अनुभवों का इस्तेमाल करते हुए, भक्त के मन में चल रहे हर जटिल प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करते हैं. इस लेख में आपको यह बताया जा रहा है कि प्रेमानन्द जी महाराज के अनुसार धर्म और कर्म में क्या अंतर है.

यह होता है धर्म

महाराज जी का यह मानना है कि कई लोगों को धर्म का सही मतलब पता नहीं है, वे केवल भगवान की आरती उतारने को ही धर्म से जोड़कर देखते हैं, जबकि ऐसा नहीं है धर्म शब्द का अर्थ बहुत विस्तृत है. पूजा-पाठ करना, मंदिर जाना, आरती उतारना यह सब धर्म का एक अंग है, लेकिन धर्म का अर्थ है, आपके उठने से लेकर सोने तक, जीवन से लेकर मरण तक, आपके सारे आचरण धर्म के अनुसार होने चाहिए.

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धर्म और कर्म में है यह अंतर

प्रेमानन्द जी महाराज का यह मानना है कि कर्म वही है, जो धर्म से युक्त हो और अगर कोई भी कर्म, धर्म युक्त नहीं है तो वह कुकर्म कहलाता है, इसलिए व्यक्ति को हमेशा यह प्रयास करना चाहिए कि उसके सारे कर्म, धर्म के अनुसार ही हो. 

धर्म ही जीवन है

महाराज जी का यह मानना है कि व्यक्ति का पूरा जीवन ही धर्म को समर्पित होना चाहिए. अपने उत्तर को आगे बढ़ाते हुए महाराज जी ने एक उदाहरण भी दिया कि अगर आपके पास कोई व्यक्ति आए और यह कहे कि उसकी जान को खतरा है, तो आपको उसकी जान बचाने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए और अगर इस प्रयास में आपको कुछ हानि भी होती है तो उसे तकलीफ की तरह नहीं देखना चाहिए.

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