ऐसा सत्य, जो सभी के हित में हो. किसी के लिए साहित्य मनोरंजन का साधन हो सकता है, लेकिन साहित्य संवेदना का विकास करता है. साहित्य केवल समाज को जोड़ने का काम करता है. पुरानी पीढ़ी को ध्यान में रख युवाओं के लिए साहित्य सृजन की जरूरत है. उक्त बातें बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष राजीवकांत मिश्रा ने शुक्रवार को तिलकामांझी चौक के समीप मनोरमा भवन परिसर में बोध फिल्म्स के तत्वावधान में आयोजित साहित्य और हम समारोह में कही.
साहित्य मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति : प्रो चंद्रेश
वरिष्ठ रंगकर्मी प्रो चंद्रेश ने साहित्य मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति है. यह राजनीति के पीछे चलने वाली चीज नहीं है. साहित्य आगे चलकर राजनीति को लड़खड़ाने से बचाने के लिए है. कहा कि पहले भागलपुर कोलकाता के बाद साहित्यकारों के नाम से मिनी कोलकाता कहलाता था. महापंडित राहुल सांकृत्यायन, शरतचंद्र, बनफूल, दिनकर, महावीर प्रसाद द्विवेदी, नेपाली सरीखे साहित्यकारों से भागलपुर जुड़ा है. अब साहित्यिक सन्नाटा की स्थिति है. ऐसा कार्यक्रम एक शुरुआत है. श्रीकृष्णा कलायन कला केंद्र की निदेशक श्वेता सुमन ने कहा कि साहित्य की रचना ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने के लिए की गयी थी. क्रांतिकारी लेखकों ने लोगों को अपनी लेखनी से जगाया. अब भी साहित्य के जरिये जागरण की जरूरत है. टीएनबी कॉलेज हिन्दी विभाग के अध्यापक अमलेंदु अंजन, सबौर कॉलेज के हिंदी विभाग के प्रमुख राकेश रंजन, एसएम कॉलेज के हिंदी विभाग की प्रो आशा ओझा, सेवानिवृत्त अध्यापक प्रेमचन्द पांडेय, रंगमंच क्षेत्र के डॉ चैतन्य प्रकाश, युवा साहित्यकार व शिक्षक प्रो मनजीत सिंह किनवार, भागलपुर मेडिकल कॉलेज के डॉ पीबी मिश्रा, डॉ अर्चना झा, गीतकार राजकुमार, मनोज मिश्र आदि ने अपने अनुभवों को साझा किया. समारोह में शहर ही नहीं, सुल्तानगंज, पीरपैती,कहलगांव, नवगछिया, खगड़िया के साहित्यकार व साहित्यप्रेमियों ने शिरकत किया. इस मौके पर डॉ विजय कुमार मिश्रा, अमित कुमार, उमा भारती, कुमार गौरव आदि उपस्थित थे.
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