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Madhubani News. साम चके साम चके अबिह हे जोतला खेत में बसिह हे…

भाई-बहन के प्रेम का पर्व सामा-चकेवा शुक्रवार की देर शाम संपन्न हुआ.

Madhubani News. मधुबनी. भाई-बहन के प्रेम का पर्व सामा-चकेवा शुक्रवार की देर शाम संपन्न हुआ. साम चके साम चके अबिह हे जोतला खेत में बसिह हे जैसे पारंपरिक गीतों से मिथिला का हर घर आंगन गूंजायमान हो उठा. भाइयों द्वारा सामा फोड़ने के बाद बहनों ने समदाउन गाते हुए जोते हुए खेत में उसे विसर्जित किया. मिथिला में भाई-बहन का पर्व सामा- चकेवा अपना अलग महत्व रखता है. प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष सप्तमी से पूर्णिमा तक महिला एवं बालिकाओं द्वारा इसे खेला जाता है. इसको लेकर शहर से लेकर ग्रामीण इलाकों में उत्सवी माहौल रहा. भाई और बहन के अगाध प्रेम के अमर गाथा को प्रदर्शित करने के लिए मान्यता के अनुसार सामा-चकेबा, डिहुली, कचबचिया, चुगिला, हंस, सतभैया, वृंदावन की मूर्तियां बनाई गई थी. युवतियों व महिलाएं इस पर्व के लिए कई दिनों से तैयारी कर रही थी. प्रत्येक आंगन में नियमित रूप से महिलाएं पहले बटगवनी , ब्राह्मण गीत, गोसाउनीक गीत, समदाउन गाकर बनाए गए मूर्तियों को ओस चटाती है. इस अवसर पर बहन अपने भाई की लंबी उम्र व सुख समृद्धि की कामना करती है. प्रचलित कथा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सामा-चकेबा उत्सव का संबंध सामा की दु:ख भरी कहानी से है. मान्यता के अनुसार सामा कृष्ण की पुत्री थी. एक दिन एक दुष्ट चरित्र वाले व्यक्ति ने षडयंत्र के तहत उसने सामा पर गलत आरोप लगाया. जिससे पुत्री सामा के प्रति भगवान कृष्ण को बहुत ही गुस्सा आया. क्रोध में आकर कृष्ण ने सामा को पक्षी बन जाने का श्राप दे दिया. जब सामा के भाई चकेबा को इस प्रकरण की पूरी जानकारी हुई तो उसे अपनी बहन सामा के प्रति सहानुभूति हुई. अपनी बहन को पक्षी से मनुष्य रूप में लाने के लिए चकेवा ने तपस्या करके सामा को पक्षी रूप से पुन: मनुष्य रूप में लाया. अपने भाई के समर्पण व त्याग देखकर सामा द्रवित हो गई. जुताई की हुए खेत में किया गया विसर्जित कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि से सामा चकेवा के मूर्ति बनाने का काम शुरू होता है. शुक्रवार को पारंपरिक लोक गीत गाकर बनाई गई मूर्तियों को महिलाएं व युवतियां बांस के बने चंगेरा में रख कर ले गई. सामा चकेवा को विदाई के समय चूड़ा व गुड़ दिया गया. मिट्टी के बने पेटार में संदेश, दही-चूड़ा भरकर सभी बहनें सामा चकेवा को अपने भाई के ठेहुना से फोरवा कर श्रद्धा पूर्वक अपने खोंईंछा में ले लिया. बेटी की विदाई की तरह महिलाएं समदाउन गाते हुए विसर्जन के लिए घर से निकली. जोते हुए खेत में सामा को विसर्जित किया.

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