Jharkhand news : टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा बिष्टुपुर के गोपाल मैदान में आयोजित पांच दिवसीय जनजातीय कार्यक्रम ”संवाद” के तीसरे दिन रविवार को नागालैंड की सुप्रसिद्ध जनजातीय फोल्क कलाकार गुरु रिबेन ने अपनी विशिष्ट प्रस्तुति से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. उनकी लोककला की गूंज ने परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया. गुरु रिबेन ने अपने गीतों और संगीत के माध्यम से न केवल नागालैंड की सांस्कृतिक धरोहर को उजागर किया, बल्कि उसमें छिपी प्रकृति और मानवता की गहरी संवेदनाओं को भी सजीव कर दिया. यह सांस्कृतिक संगम न केवल मनोरंजन का माध्यम बना, बल्कि श्रोताओं को अपनी विरासत से जुड़ने का अद्वितीय अवसर भी प्रदान किया.
”रिदम ऑफ अर्थ” गीत संग्रह का हुआ विमोचन
”संवाद” के भव्य आयोजन में संगीत प्रेमियों के लिए विशेष आकर्षण के रूप में ”रिदम ऑफ अर्थ” गीत संग्रह का विमोचन रहा. यह अद्वितीय एलबम लद्दाख आधारित बैंड दा शुग के सहयोग से तैयार किया गया है. यह संग्रह प्रकृति, संस्कृति और मानवीय भावनाओं का ऐसा संगम है, जो सुनने वालों को हिमालय की वादियों में ले जाने का अहसास कराता है. कार्यक्रम के प्रमुख आकर्षण के रूप में प्रस्तुत इस एलबम ने जनजातीय संगीत की समृद्ध विरासत को एक नयी ऊंचाई प्रदान की है, जो दर्शकों को लंबे समय तक मंत्रमुग्ध रखेगा. संवाद कार्यक्रम में भारत के विभिन्न जनजातीय समुदायों के कलाकारों ने मंच साझा किया. एक सांगीतिक मंच पर विभिन्न लोक वाद्ययंत्रों की मधुर धुनों के साथ कलाकारों ने अपनी-अपनी संगीत और गायन प्रस्तुतियां दीं. प्रत्येक कलाकार ने अपनी कला से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया. लोक संस्कृति और परंपराओं से ओतप्रोत इस कार्यक्रम ने सामूहिक ऊर्जा और संगीत का अनोखा अनुभव प्रदान किया.
आदिवासी फिल्म निर्माण पर किया मंथन
रविवार को आदिवासी सिनेमा निर्माण व उसका भविष्य विषय पर चिंतन किया गया. इसमें वक्ताओं ने कहा कि सिनेमाई सिद्धांतों के अंतर्गत आदिवासी फिल्म निर्माण की अवधारणा सांस्कृतिक पहचान, स्वायत्तता और वैकल्पिक दृष्टिकोण को प्रकट करने का एक सशक्त माध्यम है. यह मुख्यधारा के सिनेमा की सीमाओं को तोड़ते हुए आदिवासी समुदायों की जटिलता, उनकी परंपराओं, संघर्षों और जीवन दर्शन को प्रामाणिक स्वर में प्रस्तुत करता है. आदिवासी सिनेमा महज मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक संवाद और सामाजिक जागरुकता का एक सशक्त माध्यम है. इसका स्थान मुख्यधारा के सिनेमा के हाशिये पर नहीं, बल्कि समानांतर सिनेमा की विधा में है, जहां यह सृजनात्मक स्वतंत्रता और स्थानीय अनुभवों को प्राथमिकता देता है. उन्होंने बताया कि यह न केवल वंचित आवाजों को स्थान देता है, बल्कि बाहरी दृष्टिकोण से उत्पन्न विकृत छवियों को चुनौती देकर, आदिवासी जीवन की वास्तविकता को उभारताहै. इस तरह, आदिवासी फिल्म निर्माण सिनेमाई सिद्धांतों को विविधता, समावेश और सांस्कृतिक संवेदनशीलता से समृद्ध करता है.
पारंपरिक खेल सेकोर व काती हुआ आयोजित
गोपाल मैदान गीत-संगीत कार्यक्रम शुरू होने से पूर्व आदिवासियों के पारंपरिक खेल सेकोर व काती खेल का आयोजन किया गया. ये दोनों खेल आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं. यह आदिवासियों के जीवन के आनंद व उत्सव का प्रतीक हैं.सेकोर विशेष रूप से संताल और हो जनजातियों का एक पारंपरिक खेल है. इसे सामूहिकता, ताकत और कौशल का प्रतीक माना जाता है. यह न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि टीम वर्क और शारीरिक फिटनेस को भी बढ़ावा देता है. काती खेल संताल समाज का एक और पारंपरिक खेल है. यह खेल बच्चों और युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय है और इसे खुले मैदान में खेला जाता है. काती खेल न केवल मनोरंजन का माध्यम है, बल्कि परंपराओं को जीवित रखने और समाज में सामूहिकता के भाव को बढ़ावा देने का भी कार्य करता है.