-ए वासुदेवन-
PM Modi visit to Nigeria : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नाइजीरिया यात्रा पिछले 17 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली नाइजीरिया यात्रा है. संघीय गणराज्य नाइजीरिया के राष्ट्रपति बोला अहमद तिंबु के आमंत्रण पर प्रधानमंत्री मोदी का यह दौरा, जाहिर हअफ द नाइजर’ से सम्मानित करने का फैसला किया है. इससे पहले ब्रिटेन की पूर्व महारानी क्वीन एलिजाबेथ को ही इस सम्मान से सम्मानित किया गया था.
नई पृष्ठभूमि में विकसित होगा भारत-नाइजीरिया संबंध
अगर मौजूदा 21वीं सदी वास्तविक रूप से ग्लोबल साउथ यानी आर्थिक और औद्योगिक रूप से कमतर प्रदर्शन करने वाले देशों का है, तो भारत-नाइजीरिया संबंधों को शैक्षणिक छात्रवृत्ति, कच्चे तेल और सैन्य अभ्यास के पुराने चश्मे से कतई नहीं देखा जाना चाहिए. दोनों देशों के आपसी जुड़ाव की नयी पृष्ठभूमि है और नये कारण भी. यह याद किया जाना चाहिए कि पिछले साल नयी दिल्ली में हुई जी-20 की बैठक में एक नया अध्याय तब जुड़ गया था, जब अफ्रीका के प्रतिनिधिमंडल का सम्मानपूर्वक स्वागत करते हुए उसे संगठन में स्थायी जगह दी गई थी.
वास्तविकता तो यह है कि भारत और नाइजीरिया सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर एक दूसरे को बहुत कुछ दे सकते हैं. जहां तक नाइजीरिया का सवाल है, तो डांगोटे रिफाइनरीज के प्रवेश के साथ वह पेट्रोलियम पदार्थों का उत्पादन आसानी से कर सकता है. ऐसा होते ही भारत के साथ, और दुनिया के साथ भी नाइजीरिया के संबंध पूरी तरह बदल जाने वाले हैं. हालांकि नाइजीरिया की यह कायापलट एक हद तक अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के सक्रिय होने और उसके रवैये पर भी निर्भर करेगी. इसकी वजह ट्रंप प्रशासन के बारे में यह आशंका है कि वह पूरी दुनिया पर वर्चस्ववादी निगाह रखेगा.
अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों के पीछे चीन
भारत के नजरिये से देखें, तो वैश्विक भू-राजनीति पश्चिम एशिया के तनाव, यूक्रेन-रूस विवाद और चीन की कूटनीति पर बहुत कुछ निर्भर करेगी. यह मानने का कारण है कि चीन के विस्तारवादी रवैये के कारण ही भारत ने अफ्रीका के साथ अपने पुराने संबंधों को नये सिरे से जिलाए रखने के बारे में सोचा है. वैसे भी अफ्रीका के साथ भारत के बेहद पुराने और आजमाए हुए रिश्ते हैं. अफ्रीकी देशों के बीच नाइजीरिया का आर्थिक दबदबा असंदिग्ध है. इसकी आबादी 22 करोड़ है, जो भारत की जनसंख्या का लगभग 16 फीसदी और अमेरिका की आबादी का करीब 60 प्रतिशत है.
वैज्ञानिक और अकादमिक क्षेत्रों में नाइजीरिया के अनेक लोग काम कर रहे हैं. अगर नाइजीरिया सरकार कौशल विकास के क्षेत्र में काम करती है और सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में सुधार कर उन्हें आधुनिक स्वरूप देती है, तो निश्चित तौर पर उसे अपनी विशाल जनसंख्या का लाभ मिल सकता है. दरअसल उसके चौतरफा विकास के रास्ते में बोको हराम जैसा कुख्यात आतंकवादी संगठन बाधक है. मानो एक आतंकी संगठन ही काफी न हो, नाइजीरिया से ताजा जानकारी यह है कि देश के उत्तर-पश्चिम में लकुरावा नाम का एक नया आतंकी संगठन हाल ही में सक्रिय हुआ है.
आर्थिक विकास के रास्ते में दूसरी बाधा नाइजीरिया का कमजोर राजनीतिक और आर्थिक शासन है, जिसमें दुर्योग से, भ्रष्टाचार बहुत बड़ी भूमिका निभाता है. न्यायिक तथा दूसरी महत्वपूर्ण संस्थाएं सत्ता से जुड़े ताकतवर संभ्रांतों की बंधक बनी हुई हैं. ऐसे में, यह आश्चर्य की बात नहीं कि उच्च मुद्रास्फीति, निम्न विकास दर और कमजोर विदेशी मुद्रा भंडार पिछले 10 वर्षों से नाइजीरिया की अर्थव्यवस्था की पहचान बने हुए हैं. अभी नाइजीरिया में सालाना मुद्रास्फीति 30 फीसदी, वार्षिक विकास दर औसतन तीन प्रतिशत और विदेशी मुद्रा भंडार मात्र 40 अरब डॉलर ही है.
अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद
विदेशी विनिमय बाजार में 1,660 नायरा एक अमेरिकी अमेरिकी डॉलर के बराबर है. जिस देश की मुद्रा डॉलर के मुकाबले इतनी कमजोर हो, वह आर्थिक विस्तार और अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण कच्चे माल और आवश्यक उपकरणों का आयात कर ही नहीं सकता. इसके बावजूद नाइजीरिया के मौजूदा प्रशासन की प्रतिबद्धता से सुधार की उम्मीद बनती है. यह उम्मीद इसके बावजूद है कि ईंधन में सब्सिडी खत्म कर दिए जाने से क्षुब्ध जनता सड़कों पर है. आर्थिक सुधार की उम्मीद इसलिए भी है कि नाइजीरिया के बैंक जितनी मजबूत स्थिति में इस समय हैं, पहले कभी नहीं थे. ऐसे में, नाइजीरियाई प्रशासन के पास अवसर है कि वह साइबर हमले और धोखाधड़ी रोकने के लिए नई तकनीकों के जरिये अपनी भुगतान प्रणाली को बेहतर कर सके.
दूसरी तरफ भारत ने पिछले एक दशक में आर्थिक क्षेत्र में जबर्दस्त प्रदर्शन किया है, और 2030 से पहले वह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है. उसकी आर्थिक विकास दर सालाना सात से आठ फीसदी और मुद्रास्फीति की दर मध्यम अवधि में चार प्रतिशत के आसपास रहने की उम्मीद है. लगभग 700 अरब डॉलर के साथ भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बेहद मजबूत स्थिति में है. नयी तकनीकों का देश में भारी विकास हुआ है, जो मध्यम तथा दीर्घावधि में संपूर्ण आर्थिक गतिविधियों को अपने दायरे में ले लेंगी. अलबत्ता भारत महत्वपूर्ण कच्चे माल और ऊर्जा आपूर्ति की कमी से जूझ रहा है. इस पृष्ठभूमि में नयी दिल्ली और अंबुजा के संबंधों को किस तरह आगे ले जाया जा सकता है? व्यापक तौर पर यह माना जा रहा है कि दोनों देश सुधार और आर्थिक शासन के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे.
भारत और नाइजीरिया के रिश्ते में ईंधन आपूर्ति सबसे ऊपर है. जब तक नाइजीरिया पेट्रोलियम पदार्थों के उत्पादन में पूरी तरह आत्मनिर्भर नहीं हो जाता, तब तक उसे भारत से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात करना होगा. उसके बाद दीर्घावधि में दोनों देश सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्रों में साझेदारी करने के बारे में भी सोच सकते हैं. दोनों देश महत्वपूर्ण खनिजों की उपलब्धता के क्षेत्र में विचार-विमर्श कर सकते हैं, क्योंकि आधुनिक विश्व में वही देश ताकतवर हैं, जिनकी चिप और सेमी कंडक्टर जैसी नयी तकनीकों तक पहुंच है. इस मामले में नाइजीरिया भारत से मदद ले सकता है. उद्योगों के क्षेत्र में लोहा-इस्पात और परिवहन के क्षेत्र में बस, मेट्रो और इंटरसिटी ट्रेनें नाइजीरिया की मुख्य गतिविधियां हैं. इन तमाम क्षेत्रों में भारत की मदद से नाइजीरिया ढांचागत सुधार कर सकता है. दोनों देश शैक्षणिक और सांस्कृतिक मोर्चे पर भी एक दूसरे से आदान-प्रदान कर सकते हैं. एक बार दोतरफा रिश्ते पटरी पर आ जाएं, तो इसका आगे बढ़ना तय है.
(ये लेखकद्वय के निजी विचार हैं.)